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आग की एक चिंगारी

सियासत के तूफानी थपेड़े झेल ,

फैली मीलो एक चिंगारी,

मिटाने को आतुर ,

निगल लेने को सबकुछ,

अंतर न अपने का ना पराये का ,

ना जातिवाद कोई ना ही कोई धरम ,

मुंह खोल आगे को बढ़ी आती ,

ना देखती दोष किसी का ,

न निर्दोष की चिंता ,

ना कोई लालच न कोई गम ,

चिरनिंद्रा में सुलाने को आतुर ,

एक छोटी सी चिंगारी ,

ये दोष है हम सबका ,

या नियति का लिखा ,

एक भूल है हम सबकी ,

जो इसके शिशु काल में ,

इसको नही मिटाया है ,

आज आहुति दे अपनों की ,

हमने अग्निकुंड जलाया है ,

भुला दिया सब प्यार प्रेम ,

और आपसी भाईचारा ,

अहम् अपना बचाने को ,

अपनों ने अपनों को ललकारा ,

कैसा बीज बो गयी ,

ये छोटी सी चिंगारी ,

सबकुछ निगल लेने को,

 आतुर है ये चिंगारी !

मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश की घटना से प्रेरित ...................ये कविता ..........................

 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on September 14, 2013 at 10:54pm

भाई जी घटना से प्रेरित होकर रचना को लिखने का सुन्दर प्रयास किया है किन्तु मैं भी आदरणीय बागी भ्राताश्री जी सहमत हूँ शिल्प अभी और कसावट की मांग कर रहा है आपने न के साथ ना का प्रयोग किया है इससे बचें. रचना पर बधाई स्वीकारें.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2013 at 1:11pm

एक दुखद सच को बयान करती सुंदर रचना ..सादर बधाई आदरणीय अनुराग जी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 13, 2013 at 10:39pm

रचना मे कथ्य उभर कर आ रहे हैं किन्तु शिल्प पर और मेहनत की आवश्यकता है, बधाई स्वीकार करें । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 13, 2013 at 9:45pm

आदरणीय अनुराग भाई , बहुत सुन्दर रचना , दंगों के अन्दर का सच बयान करती !! वाह !!

भुला दिया सब प्यार प्रेम ,

और आपसी भाईचारा ,

अहम् अपना बचाने को ,

अपनों ने अपनों को ललकारा ,

कैसा बीज बो गयी ,

ये छोटी सी चिंगारी ,

सबकुछ निगल लेने को,

 आतुर है ये चिंगारी ! ----------------------------- वाह !! बधई !!

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