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हम होगें कामयाब

लेन देन जगत में, कुदरत रखे सब हिसाब ।

मिलता न कुछ मुफ्त में, हम हो कामयाब ॥

अपने आतीत से सीख लें,

पलटकर देख लो इतिहास

मुसीबतों से कुछ सबक ले,

रख सुखी भविश्य की आस ।

हर बाधा की दिशा मोड दो,

कर जीवन में सतत प्रयास ।

विपत्ती में धैर्य से निर्णय लें,

ह्र्दय जगे सफलता की आस ।

मन में जगा विश्वास, आंखों से देखे ख्वाब !

टूटे न मन से आस, लोग होगें कामयाब !!

वक्त रहते आज तू संवार ले,

कल तेरा होगा न उपहास ।

दुख में हिम्मत हार…

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Added by Ram Ashery on May 15, 2021 at 9:30am — No Comments

पावन छंद "सावन छटा"

(पावन छंद)

सावन जब उमड़े, धरणी हरित है।

वारिद बरसत है, उफने सरित है।।

चातक नभ तकते, खग आस युत हैं।

मेघ कृषक लख के, हरषे बहुत हैं।।

घोर सकल तन में, घबराहट रचा।

है विकल सजनिया, पिय की रट मचा।।

देख हृदय जलता, जुगनू चमकते।

तारक अब लगते, मुझको दहकते।।

बारिस जब तन पे, टपकै सिहरती।

अंबर लख छत पे, बस आह भरती।।

बाग लगत उजड़े, चुपचाप खग हैं।

आवन घर उन के, सुनसान मग हैं।।

क्यों उमड़ घुमड़ के, घन व्याकुल…

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Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 13, 2021 at 9:00am — 1 Comment

देना कब सीखेंगे हम-कविता

नदी जीवन देती है

नदी पालती है

नदी सींचती है

नदी बहना सिखाती है

नदी सहना सिखाती है

नदी बदलाव समझाती है

नदी ठहराव समझाती है

नदी हंसना सिखाती है

नदी अंत तक साथ देती है.



पहाड़, धरती, प्रकृति भी

हमें यही सब सिखाते हैं,

लेकिन हम क्या कर रहे हैं?

हम नदी को धीरे धीरे,

तिल तिल कर मार रहे हैं,

हम अपना सारा कचरा

बेदर्दी से इसमें उड़ेल रहे हैं,

हम प्रकृति को बर्बाद कर रहे हैं

हम धरती को बंजर बना रहे हैं

हम पहाड़ों को…

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Added by विनय कुमार on May 12, 2021 at 3:59pm — 2 Comments

हम क्यों जीते हैं--कविता

हम सांस लेते हैं, हम जीते हैं

और एक दिन आखिरी सांस लेते हैं

इस आखिरी सांस के पहले

हमारे पास वक़्त होता है

अपनों के लिए कुछ करने का

समाज को कुछ लौटाने का

ऐसी वजह बनाने का

जिससे लोग याद रखें

आखिरी सांस लेने के बाद भी,

मगर अमूमन हम

बस अपने लिए ही जीते हैं

और अंत में मर जाते हैं

बिना किसी के लिए कुछ किये.

हम पेड़ पौधों से नहीं सीखते

हम तमाम जानवरों से भी नहीं सीखते

हम नहीं सीखते औरों के लिए जीना

हमारी दुनिया वास्तव में…

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Added by विनय कुमार on May 11, 2021 at 6:10pm — 6 Comments

नग़मा: माँ की ममता

22 22 22 22 22 22 22

माँ की ममता सारी खुशियों से प्यारी होती है

माँ तो माँ है माँ सारे जग से न्यारी होती है

मैंने शीश झुकाया जब चरणों में माँ के जाना

माँ के ही चरणों में तो जन्नत सारी होती है

दुनिया भर की धन दौलत भी काम नहीं आती जब

माँ की एक दुआ तब हर दुख पे भारी होती है

माँ से ही हर चीज के माने माँ से ही जग सारा

माँ ख़ुद इक हस्ती ख़ुद इक ज़िम्मेदारी होती है

और बताऊँ क्या मैं तुमको आज़ी माँ की…

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Added by Aazi Tamaam on May 9, 2021 at 3:29pm — 6 Comments

अनजाना उन्माद

अनजाना  उन्माद

 

मिलते ही तुमसे हर बार

नीलाकाश सारा

मुझको अपना-सा लगे

बढ़ जाए फैलाव चेतना के द्वार

कण-कण मेरा पल्लवित हो उठे

कि जैसे नए वसन्त की नई बारिश

दूर उन खेतों के उस पार से ले आती

भीगी मिट्टी की नई सुगन्ध

कि जैसे कह रही झकझोर कर मुझसे ....

मानो मेरी बात, तुम जागो फिर एक बार    

सुनो, आज प्यार यह इस बार कुछ और है

 

और तुम ...…

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Added by vijay nikore on May 9, 2021 at 2:30pm — 2 Comments

मातृ दिवस पर ताजातरीन गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



नौ माह जिसने कोख में पाला सँभाल कर

आये जो गोद  में  तो  उछाला सँभाल कर।१।

*

कोई  बुरी  निगाह  न  पलभर  असर  करे

काजल हमारी आँखों में डाला सँभाल कर।२।

*

बरतन घरों के  माज  के पाया जहाँ कहीं

लायी बचा के आधा निवाला सँभाल कर।३।

*

सोये अगर  तो  हाल  भी  चुप के से जानने

हाथों का रक्खा रोज ही आला सँभाल कर।४।

*

माँ ही थी जिसने प्यार से सँस्कार दे के यूँ

घर को बनाया  एक  शिवाला सँभाल कर।५।

*

सुख दुख में राह देता…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 9, 2021 at 6:59am — 10 Comments

जग में नाम कमाना है....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

22 22 22 2

जग में नाम कमाना है

इक दिन तो मर जाना है. (1)

अपना दर्द छुपा कर रख

दिल में जो तहख़ाना है. (2)

ग़ैर समझता है मुझको

जिसको अपना माना है. (3)

मार नहीं सकती है भूख

गर क़िस्मत में दाना है. (4)

नई सुराही ले आए

पानी मगर पुराना है. (5)

चिड़िया उड़ जाए न कहीँ

इक पिंजरा बनवाना है. (6)

शक्ल ज़रा सी है बदली

पर जाना-पहचाना है. (7)

*मौलिक…

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Added by सालिक गणवीर on May 8, 2021 at 9:00am — 6 Comments

दोहे

देना दाता वर यही, ऐसी हो पहचान | 
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख सब, बोलें यह इंसान ||
कभी धूप कुहरा घना, कभी दुखी मुस्कान | 
खेल खेलती जिंदगी, कभी मान अपमान ||…
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Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on May 6, 2021 at 4:00pm — 4 Comments

दस वर्षीय का सवाल

सपूत को स्कूल वापिसी पर उदास देखा

चेहरा लटका हुआ आँखों में घोर क्रोध रेखा

कलेजा मुंह को आने लगा

कुछ पूछने से पहले जी घबराने लगा

 

आखिर पूछना तो था ही

जवाब से जूझना तो था ही

जवाब मिला

ग्लोबल वार्मिंग !!

 

ग्लोबल वार्मिंग ??

माथा ठनका !

बेचारी उषमिता ने ऐसा क्या कर दिया

कि लाल को इतना लाल कर दिया

 

जवाब जारी था कि

आपकी पीढी का सब किया कराया है

पारे को इतना ऊपर पहुँचाया…

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Added by amita tiwari on May 4, 2021 at 9:30pm — 3 Comments

मुहब्बतनामा (उपन्यास अंश)

दूसरी मुहब्बत के नाम

मेरे दूसरे इश्क़,

तुम मेरे जिंदगी में न आते तो मैं इसके अँधेरे में खो जाता, मिट जाता। तुम मेरी जिन्दगी में तब आये जब मैं अपना पहला प्यार खो जाने के ग़म में पूरी तरह डूब चुका था। पढ़ाई से मेरा मन बिल्कुल उखड़ चुका था। स्कूल बंक करके आवारा बच्चों के साथ इधर-उधर घूमने लगा था। घर वालों से छुपकर सिगरेट और शराब पीने लगा था। आशिकी, पुकार और भी न जाने कौन-कौन से गुटखे खाने लगा था। मेरे घर के पीछे बने ईंटभट्ठे के मजदूरों के साथ जुआ खेलने लगा था। दोस्तों के साथ मिलकर…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 3, 2021 at 10:30pm — No Comments

कुछ उक्तियाँ

पृथ्वी सम्हलती नहीं

मंगल सम्हालेंगे

यहाँ ऑक्सीजन नष्ट की

वहाँ डेरा डालेंगे

बहुत मनाईं देवियाँ

बहुत मनाए देव

कर्म-लेख मिटता कहाँ ?

भाग्य लिखा सो होय

बुज़ुर्ग बेमिसाल होते हैं

समस्त जीवन के अनुभवों की

अलिखित किताब होते हैं

बुज़ुर्ग बेमिसाल होते हैं

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on May 3, 2021 at 8:04pm — No Comments

जो पेड़ शूल वाले थे-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



किस्मत कहें न कैसे सँवारी गयी बहुत

हर दिन नजर हमारी उतारी गयी बहुत।१।

*

जो पेड़ शूल  वाले  थे  मट्ठे से सींचकर

पत्थर को चोट फूल से मारी गयी बहुत।२।

*

भूले से अपनी ओर  न  आँखें उठाए वो

जो शय बहुत बुरी थी दुलारी गयी बहुत।३।

*

धनवान मौका  मार  के  ऊँचा चढ़ा मगर

निर्धन के हाथ आ के भी बारी गयी बहुत।४।

*

बेटी का ब्याह शान से करने को बिक गये

ऐसे भी  बाजी  मान  की …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2021 at 9:25pm — No Comments

आशा ......



आशा .......

बहुत कोशिश की

मगर हार गई मैं

उस अनुपस्थिति से

जो हर लम्हा मेरे जहन में जीती है

एक खौफ के लिबास में

मुझे ठेंगा दिखाते हुए

भोर से लेकर साँझ तक

दिनभर की व्यस्ततम गतिविधियों के बीच

हमेशा झकझोरती है

किसी ग़ैर की मौजूदगी

मेरे अंतःस्थल को

उस की अनुपस्थिति के लिए

निराशा की स्वर वीचियों के बीच कहाँ लुप्त होते हैं

आशा को प्रज्वलित करते अनुपस्थिति के स्वर

थकान की पराकाष्ठा पर

जब बदन निढाल होकर…

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Added by Sushil Sarna on April 30, 2021 at 4:15pm — 3 Comments

नग़मा: जगाकर दिल में उम्मीदें दिलों को तोड़ने वालो

1222 1222 1222 1222

जगाकर दिल में उम्मीदें दिलों को तोड़ने वालो

हमारा क्या है हम तो बेसहारा हैं सो जी लेंगे

तुम्हारा दिल अगर टूटा तो फ़िर तुम जी न पाओगे

मिरे लख़्त-ए-जिगर सुन लो गमों को पी न पाओगे

जरा सा नर्म रक्खो इस गुमाँ के सख़्त लहजे को

ये चादर फट गयी गर ज़िंदगी की सी न पाओगे

यहाँ हर शय पे रहता है मिरी जाँ वक़्त का पहरा

अगर जो वक़्त बदला तो बचा हस्ती न पाओगे

हमें आदत है पीने की सो हम तो…

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Added by Aazi Tamaam on April 30, 2021 at 11:22am — No Comments

विसंगति —डॉo विजय शंकर

बीते कुछ दिनों में लगा
कि हम कुछ बड़े हो गये ,
अहंकार से फूलने लगे
और फूलते...चले गए।
फूले इतना कि हर समस्या
के सामने बौने हो गये।
यकीन नहीं होता कि
आदमी खुद कुछ नहीं होता ,
ये जानने के बाद भी ,
कुछ का ख्याल हैं कि
लूटो-खाओ, पाप-पुण्य
कहीं कुछ नहीं होता ,
भगवान भी कहीं नहीं होता।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on April 30, 2021 at 10:48am — 2 Comments

सायली (कोरोना)

सायली (कोरोना)

आसुरी

कोरोना मगरूरी

कायम रखें दूरी

मास्क जरूरी

मजबूरी!

*****

महाकाल

कोरोना विकराल

देश पर भूचाल

सरकारी अस्पताल

बदहाल।

*****

चमगादड़ी

कोरोना जकड़ी

संकट की घड़ी

आफत बड़ी

पड़ी।

*****

भड़की

कोरोना कलंकी

चमगादड़ से फड़की

मासूमों की

सिसकी।

*****

लाचारी

कोरोना महामारी

भर रही सिसकारी

दुनिया…

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Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 29, 2021 at 10:18am — 4 Comments

सवालों का ऐसे बता हल किधर है.

 मापनी १२२ १२२ १२२ १२२ 

नदी का वो बहता हुआ जल किधर है.

सवालों का ऐसे बता हल किधर है. 

 

घुसी जा रहीं आज खेतों में सडकें,

डराता था हमको वो जंगल किधर है. 

 

कहाँ से पवन अब बहे मंद शीतल, 

चमेली, ये बेला, ये…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on April 29, 2021 at 9:26am — 2 Comments

एक अवांछित सफर कोरोना के साथ

होम-क्वारंटाइन में मैं चेतन और अवचेतन के बीच झूल रहा था I मेरा बड़ा बेटा रमेश रंजन (कुशी) दिन भर ऑक्सीमीटर से मेरा ऑक्सीजन-लेवल और पल्स-रेट चेक करता रहा I चार बजे सायं तक ऑक्सीजन लेवल 91 हो गया I बहुत कम नहीं था पर बेटा चिंता में पड़ गया I उसने सीधे अपने मामा श्री अवधेश कुमार श्रीवास्तव, जिन्हें हम ‘कुँवर  जी’ कहते हैं, उन्हें फोन लगाया I कठिन क्षणों में कुँवर  जी और उनका परिवार ही हमेंशा हमारा संकटमोचक रहा  है और यही बड़ा विश्वास हमें और हमारे बच्चों को दुविधा की स्थिति में उनके पास ले जाता है…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 29, 2021 at 6:30am — No Comments

मानता हूँ तम गहन सरकार लेकिन-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२



किसलिए भण्डार अपने भर रहे हो

देश बेबस को  निवाला  कर रहे हो।१।

*

रंग पोते धर्म  का  बाहर से अपने

आप केवल पाप के ही घर रहे हो।२।

*

निर्वसनता  चन्द  लोगों  को सुहाती

इसलिए क्या चीर सब का हर रहे हो।३।

*

कत्ल का आदेश तुमने ही दिया जब

खून के छींटों से क्योंकर  डर रहे हो।४।

*

व्यर्थ है  उम्मीद  पिघलोगे  कभी ये

है पता  हर  जन्म  में  पत्थर…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 29, 2021 at 5:40am — 6 Comments

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