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अहसास की ग़ज़ल : मनोज अहसास

2×11

बदहाली का एक समंदर सर पर है।
शहर की हालत वीरानों से बदतर है।

जिद पर तो बेशक मैं भी आ सकता हूँ ,
लेकिन मुझको बात बिगड़ने का डर है।

जो आँखों की भाषा समझ नहीं पाते,
उन लोगों से कुछ ना कहना बेहतर है।

लूट लिया जिसने आपस के रिश्तों को,
तुम लोगों की आँखों मे वो रहबर है?

नीव हिलाकर चीख रहे हैं झूठे लोग,
उनके पास योजना सबसे बढ़कर है।

एक इमारत है बनने की कोशिश में,
उसकी खातिर मुश्किल में मेरा घर है।

मुश्किल है अब पूरा होना साझा गीत
राग रंग की महफ़िल ही अब बेघर है।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by Aazi Tamaam on June 5, 2021 at 10:27pm

सादर प्रणाम आ मनोज जी

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है

Comment by Ravi Shukla on June 5, 2021 at 9:35pm

आदरणीय मनोज कुमार अहसास जी , ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें । छठे शेर का कथ्य खास पसंद आया 

Comment by मनोज अहसास on June 4, 2021 at 12:02pm

आदरणीय मुसाफिर जी हार्दिक आभार

सादर

Comment by मनोज अहसास on June 4, 2021 at 12:01pm

आदरणीय समर कबीर साहब हार्दिक आभार

सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 1, 2021 at 9:10pm

आ. भाई मनोज जी, गजल का प्रयास अच्छा हुआ है । हार्दिक बधाई। आ. समर जी की बात का संज्ञान लें..

Comment by Samar kabeer on May 31, 2021 at 2:38pm

जनाब मनोज कुमार अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'उनके पास योजना सबसे बढ़कर है'

इस मिसरे की बह्र देखें ।

'राग रंग की महफ़िल ही अब बेघर है'

इस मिसरे की भी तक़ती'अ कर के देखें ।

Comment by मनोज अहसास on May 29, 2021 at 11:28pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीय चेतन प्रकाश जी

Comment by Chetan Prakash on May 29, 2021 at 1:56pm

आदाब! ग़ज़ल  का प्रयास  किया  है, आपने ! पहले  शे'र में किंचित भटकाव है ! और  आखिरी  शे'र में भी ! किन्तु नजर में  बहुत ज्यादा  नहीं चुभता ! हाँ दोनों मिसरों में 'अब' का दोहराव  नहीीं होना चाहिए  !

'

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