१२१ २२ १२१ २२ यूं कतरा कतरा शराब पीकर हैं जिन्दा अब तक जनाब पीकर सवाल मुश्किल थे जिन्दगी के मगर दिए सब जवाब पीकर ये मय लगी कडवी सच के जैसी न कह सका मैं ख़राब पीकर पहाड़ सीने पे दर्दो गम के नहीं रहा कोई दवाब पीकर जिन्हें मयस्सर न रोटियाँ… |
Added by Dr Ashutosh Mishra on May 12, 2015 at 1:54pm — 20 Comments
पार्टी में दुल्हन को गहने से सजी देखते ही बस देखते ही रह गया । उसके देह पर सजे गहने मानो एक एक कर कह उठे कि मुझसे ही दुल्हन की खूबसूरती है । हर श्रंगार की बस्तु मुझसे बात कर रही थी कि अचानक कुछ खुसुर पुसुर हुई । मेरा ध्यान भंग हुआ ।
"क्या हुआ शर्माइन जी ? "
"कुछ नही रे ..! ये लड़का पागल है । सुंदरता के चक्कर में पड़ गया रे.! ये लड़की तीन घरोँ को बर्बाद करके आई है इसकी ये चौथी शादी है। अब न जाने यहाँ क्या गुल खिलायेगी ! "
"ओहो क्या ....?"
मैने पुनः उन सभी जेवरों से कहा…
Added by babita choubey shakti on May 12, 2015 at 1:00pm — 5 Comments
बह्र : २१२२ ११२२ ११२२ २२
मैं तो नेता हूँ जो मिल जाए जिधर, खा जाऊँ
हज़्म हो जाएगा विष भी मैं अगर खा जाऊँ
कैसा दफ़्तर है यहाँ भूख तो मिटती ही नहीं
खा के पुल और सड़क मन है नहर खा जाऊँ
इसमें जीरो हैं बहुत फंड मिला जो मुझको
कौन जानेगा जो दो एक सिफ़र खा जाऊँ
भूख लगती है तो मैं सोच नहीं पाता कुछ
सोन मछली हो या हो शेर-ए-बबर, खा जाऊँ
इस मुई भूख से कोई तो बचा लो मुझको
इस से पहले कि मैं ये…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 12, 2015 at 12:38pm — 16 Comments
22/22/22/22/22/2 (सभी कॉम्बिनेशन्स)
दिल के ओहदेदारों का अब क्या करिये.
बचपन के उन यारों का अब क्या करिये.
.
तुम कब तुम थे- मैं कब मैं, वो कहानी थी
उन मुर्दा क़िरदारों का अब क्या करिये.
.
राजमहल था जिस्म, ये दिल था शाह कभी
इन वीरां दरबारों का अब क्या करिये.
.
मान गए वो आख़िर में जब बात अपनी
पहले के इन्कारों का अब क्या करिये.
.
उसके क़दमों पे धर आए सर ही जब
फिर महँगी दस्तारों का अब क्या करिये.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 12, 2015 at 10:30am — 26 Comments
इनकार कितना भी कर लें
दिल पर हाथ रख कर पूरी इमानदरी से सोचेंगे तो आप भी कहेंगे
हम भावनाओं की दुनिया में जीते हैं
और ये सच हो भी क्यों न , एकाध अपवाद छोड़कर
हम सब दो पवित्र भावनाओं के मिलन का ही तो परिणाम हैं
भावनायें गणितीय नहीं होतीं
कारण और परिणाम दोनों का गणितीय आकलन नामुमकिन है
हम सब ये जानते हैं , फिर भी
दूसरों के मामले में हम सदा गणितीय हल चाहते हैं ,
अक्सर रोते बैठते हैं , दो और दो चार न पा के
उत्तर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 12, 2015 at 9:15am — 15 Comments
धरा में कम्पन होते हुए एक सैलाब सा उमड़ पड़ा। सामने से आती उत्ताल नदी का वेग फट पड़ा था जमीन पर .....
धरा का हृदय विभक्त हो उठा दो किनारों में । धरा का खुद के अंश से अलगाव सहना ...!!
धरा का रूदन अब कौन सुने ..?
उन्मुक्त नदी अपनी ताव में जमीन की छाती चीरती हुई बढ़ चली थी ।
उसे क्या परवाह थी कि किसने चोट खाई .... !
बेबस थे दोनों किनारे ....बरसों,जो रहे थे एक दुसरे में समाहित ... वो आज .... !!
अब जीवन भर देखते ही रहना है एक दुसरे को.....यूँ ही ।
किनारे नदी की…
Added by kanta roy on May 11, 2015 at 10:00pm — 21 Comments
कैसे जाएगी याद दिल को बताऊं कैसे
मेरी नजरों में बसी तस्वीर हटाऊं कैसे।
उसने आवाज तलक भी नहीं दी मुझे
खुद के जीने के लिए सांस जुटाऊं कैसे।
की बड़ी दूर से थी मौहब्बत हमने
जख्म उनको मैं दिखाकर रूलाऊं कैसे।
अब हवाओं से दीवार यहां हिलती है
अपने सपनों की तस्वीर लगाऊं कैसे।
उनकी हर बात का हमने तो भरम रखा है
तोड़कर वो ही कसम आंख मिलाऊं कैसे।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by shivendra on May 11, 2015 at 5:00pm — 8 Comments
2122/ 2122/ 2122/212
है कहाँ पहचान तेरी सादगी को क्या हुआ
शोखियों को क्या हुआ तेरी हँसी को क्या हुआ
मुब्तला खुदगर्ज़ियों में हो गये जज़्बात सब
क्या कहूँ अब आजकल की दोस्ती को क्या हुआ
रास्ते भी थम गये हैं मंज़िलें भी खो गईं
रुक गई इक मोड़ पर ये ज़िन्दगी को क्या हुआ
अपनी हस्ती को मिटाता जा रहा है बेखिरद
किसको फुरसत सोचने की आदमी को क्या हुआ
सुब्ह पहले सी नहीं मौसम भी पहले सा नहीं
हो गई…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on May 11, 2015 at 4:30pm — 32 Comments
“साहब एक जरूरी बात करनी है !”
“देख नहीं रहे हो कितना व्यस्त हूँ ,अभी मेरे पास किसी भी बात के लिए समय नहीं है,जाओ बाद में आना !”
“पर साहब लगता है आपकी पत्नी के पास भी समय नहीं है, उनका अभी कुछ देर पहले ही एक्सिडेंट हो गया है, और मैं उनको अस्पताल में.. और उनके पर्स से आपका विजिटिंग कार्ड मिला, आपका फ़ोन बंद था ,तभी मुझे अपने सब काम छोड़कर आपको बताने आना पड़ा !”
“अरे भाईसाहब जल्दी ले चलो मुझे आपका बहुत एहसान होगा !”
“समय की परिभाषा बदल चुकी थी !”
© हरि प्रकाश…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on May 11, 2015 at 9:04am — 13 Comments
हम बड़े हो रहे थे
लेकिन आप हमें
बच्चा ही समझती थीं
और जब हम अकड दिखाते
बात-बेबात बहस करते
तो आप खामोश हमें ताकते रहतीं
हम अपने मन की करते
और आपकी खामोश आँखें करतीं
हमारी सलामती की दुवाएं..
आज आप नहीं हैं
और इस संसार में
हम यूँ फिर रहे हैं
जैसे कोई फल हों
सड़क किनारे पेड़ के
जिसपर हर कोई
आजमाता है पत्थर...
हम बड़े ज़रूर हुए हैं अम्मी
लेकिन ममता की ऊष्मा से
वंचित हैं…
Added by anwar suhail on May 10, 2015 at 7:00pm — 5 Comments
Added by मनोज अहसास on May 10, 2015 at 5:20pm — 5 Comments
Added by Jitendra Upadhyay on May 10, 2015 at 4:30pm — 4 Comments
मातृ दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
जग की वह आधार (दोहें)
माँ ममता ही कोख में, सहती रहती पीर
माँ का जैसा कौन है, जिसमें इतना धीर |- 1
माँ ही ईश की प्रतिनिधि, देवी सा सम्मान
ब्रह्मा विष्णु महेश भी, करते है गुणगान |-2
उठते ही नित भोर में, माँ को करें प्रणाम,
माँ के चरणों में बसे, चारों तीरथ धाम | - 3
पलता माँ की गोद में, बालक एक अबोध,
माँ से ही होता उसे, सब रिश्तों का बोध | -…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 10, 2015 at 2:30pm — 12 Comments
Added by Samar kabeer on May 10, 2015 at 1:54pm — 17 Comments
"भैया, इनके पेट में असहनीय दर्द हो रहा है, शराब मांग रहे हैं|"
"भाभी, पहले कितनी पीते थे, छुड़ा रहे हैं तो थोड़ा दर्द होगा ही|"
"आप सही कह रहे हैं...हम नहीं पीने देंगे, अरे माँ जी!" दरवाजे पर सासुमाँ को शराब की बोतल के साथ देखकर बहू आश्चर्यचकित रह गयी|
"माँ ये क्यों लाई? और पैसे कहाँ से लाई?"
"मेरी दवाई लौटा दी मैनें बेटा, उसका दर्द सहन नहीं हो रहा...."
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on May 10, 2015 at 1:30pm — 8 Comments
:: 1 ::
मॉं तू माने या न माने !
तेरी वाणी-वीणा के स्वर ।
रस-वत्सल के बहते निर्झर ।
मै अबोध तन्मय सुनता था वह सारे कलरव अनजाने ।
मॉं तू माने या न माने !
वह तेरे पायल की रून-झुन ।
मै बेसुध घुंघुरू की धुन सुन ।
मेरे मुग्ध मन:स्थिति की गति अन्तर्यामी ही जाने ।
मॉं तू माने या न माने !
सरगम सा आँखो का पानी ।
तू कच्छपि रागो की रानी ।
इन तारो की ही झंकृति…
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 10, 2015 at 1:03pm — 6 Comments
सब कुछ
है तेरा
तुझ पर, तेरे कारण ही
और तेरे ही लिए हैं
अपने दामन में पाले हैं तूने
समान, असमान भाव से
कांटे भी, फूल भी
देव और दानव
जल भी तेरा, थल भी
मरुस्थल और तेरे ही है पर्वत
तेरी ही नदियाँ
तेरा ही आश्रय है, सागर को
अश्विन से फाल्गुन तक
सिकुड़ती है, तू
ज्येष्ठ की दहक में
तपती और पिघलती रही
अथाह सहनशीलता है, तुझमे
इस तरह सिकुड़ने और
पिघलने के…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on May 10, 2015 at 11:26am — 12 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on May 10, 2015 at 10:00am — 14 Comments
Added by shashi bansal goyal on May 10, 2015 at 9:57am — 12 Comments
Added by shashi bansal goyal on May 10, 2015 at 9:56am — 10 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |