Added by Samar kabeer on May 17, 2015 at 11:19am — 39 Comments
" साहब , पइसा जमा करना है , पर्ची नाहीं दिखत है | मिल ज़ात त बड़ा मेहरबानी होत ", डरते डरते उसने कहा |
" अब केतना पर्ची छपवायें हम लोग , पता नाहीं कहा चुरा ले जाते हैं सब ", बड़बड़ाते और घूरते हुए हरिराम स्टेशनरी रूम में घुसे | थोड़ी देर बाद जमा पर्ची लाकर उसके सामने पटक दिया और बोले " बस एक ही लेना , कुछ भी नहीं छोड़ते लोग यहाँ "|
पूरे गाँव को पता था , हरिराम के व्यवहार के बारे में लेकिन सब झेल जाते थे | एक ही तो शाखा थी बैंक की वहां और सबको वहीँ जाना होता था | एकाध ने मैनेजर से शिकायत की…
Added by विनय कुमार on May 17, 2015 at 2:48am — 15 Comments
Added by मनोज अहसास on May 16, 2015 at 11:30pm — 8 Comments
हमें ईश से ढेर सारे गिले |
नहीं अब सहारा कहीं पे मिले |
प्रभो शक्ति जितना हमें है दिया |
बड़ी मुश्किलों से सहारा किया ||
प्रकृति की पड़ी मार सबने सहा |
महल स्वप्न का देखते ही ढहा |
छिना छत्र माता पिता का कहाँ ?
बची फ़िक्र भूखी बहन का यहाँ ||
अभी गति हमारी बड़ी दीन है |
बिना नीर जैसे दिखे मीन है |
प्रकृति के कहर से बहन भी डरी |
बड़ी मुश्किलों से डगर है भरी ||
मौलिक व…
ContinueAdded by SHARAD SINGH "VINOD" on May 16, 2015 at 7:47pm — 2 Comments
(१)
दो पहाड़ियों को सिर्फ़ पुल ही नहीं जोड़ते
खाई भी जोड़ती है
- गीत चतुर्वेदी
कोई किसी से कितनी नफ़रत कर सकता है? जब नफ़रत ज़्यादा बढ़ जाती है तो आदमी अपने दुश्मन को मरने भी नहीं देता क्योंकि मौत तो दुश्मन को ख़त्म करने का सबसे आसान विकल्प है। शुरू शुरू में जब मेरी नफ़रत इस स्तर तक नहीं पहुँची थी, मैं अक्सर उसकी मृत्यु की कामना करता था। मंगलवार को मैं नियमित रूप से पिताजी के साथ हनुमान मंदिर में प्रसाद चढ़ाने जाता था। प्रसाद पुजारी को देने के…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 16, 2015 at 6:29pm — 14 Comments
तुम चढ़ान हो जीवन की
मैं उतरान पे आ गया हूँ
चलो मिलकर समतल बना लें
हर अनुभूति
हर तत्व की
मिलकर औसत निकालें
कहीं तुम में उछाल होगा
कहीं मुझमें गहन बहाव होगा
चलो जीवन के चिंतन को
मिलकर माध्य सार बनालें
कभी तुम पर्वत शिखर पर हिम होगी
मैं ढलता सूरज होकर भी
तुम्हें जल जल कर जाऊँगा
चलो मिलकर जीवन को
अमृत धार बनालें
कभी तुम भैरवी सा राग होगी
मैं तुम्हारे सुर के पृष्ठाधार में ताल दूंगा
चलो मिलकर जीवन काया को
समझौतों का एक मधुर…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 16, 2015 at 5:50pm — 6 Comments
चुने कंट............शक्ति छंद
दिये से दिये को जलाते चलें।
बढी आग दिल की बुझाते चलें।।
रहे प्रेम का जोश-जज्बा सदा।
चुने कंट सत्यम गहें सर्वदा।।1
नहीं दीन कोई न मजबूर हों।
सभी शाह मन के बड़े शूर हों।।
न कामी न मत्सर सहज प्यार हो।
बहन-भ्रात जैसा मिलन सार हो।।2
यहां सिंधु भव का बड़ा क्रूर है।
लिए तेज सूरज मगर सूर है।।
यहाँ तम मिटा कर खड़ा नूर जो।
बुलाता उन्हे पास, हैं दूर जो।।3
भिगोते रहे अश्रु…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 16, 2015 at 5:00pm — 2 Comments
२१२ २१२२ १२२२
गम नही मुझको तो फ़र्द होने पर (फ़र्द = अकेला)
दिल का पर क्या करूं मर्ज होने पर
उनको है नाज गर बर्क होने पर
मुझको भी है गुमां गर्द होने पर
चारगर तुम नहीं ना सही माना
जह्र ही दो पिला दर्द होने पर
अपनी हस्ती में है गम शराबाना
जायगा जिस्म के सर्द होने पर
डायरी दिल की ना रख खुली हरदम
शेर लिख जाऊँगा तर्ज होने पर
तान रक्खी है जिसने तेरी…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 16, 2015 at 10:30am — 20 Comments
11212 11212 11212 11212
कभी इक तवील सी राह में लगी धूप सी मुझे ज़िन्दगी
कभी शबनमी सी मिली सहर जिसे देख के मिली ताज़गी
कभी शब मिली सजी चाँदनी , रहा चाँद का भी उजास, पर
कभी एक बेवा की ज़िन्दगी सी रही है रात में सादगी
कभी हसरतों के महल बने, कभी ख़ंडरों का था सिलसिला
कभी मंज़िलें मिली सामने , कभी चार सू मिली ख़स्तगी
कभी यार भी लगे गैर से , कभी दुश्मनों से वफ़ा मिली
कभी रोशनी चुभी बे क़दर , तो दवा बनी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 16, 2015 at 9:30am — 17 Comments
सिंदूर की लालिमा (अंतिम भाग )........ गतांक से आगे.......
मेरा मन सिर्फ मनु को सोचता था हर पल सिर्फ मनु की ख़ुशी देखता था हर घड़ी अन्जान थी मैं उन दर्द की राहों से जिन राहों से मेरा प्यार चलकर मुझ तक आया था ! मेरे लिये तो मनु का प्यार और मेरा मनु पर अटूट विस्वास ही कभी भोर की निद्रा, साँझ का आलस और रात्रि का सूरज, तो कभी एक नायिका का प्रेमी, जो उसे हँसाता है, रिझाता है और इश्क़ फरमाता है, कभी दुनियाभर की समझदारी की बातें कर दुनिया को अपने…
ContinueAdded by sunita dohare on May 16, 2015 at 1:30am — 2 Comments
“वो देख सामने जहां सूरज निकल रहा है , वहीँ अपना घर है, बेकार में भटका मैं दर –दर, सबने कितना समझाया था, मां - पिता और पत्नी कितना रोई थी, पर मुझे तो भगवान की तलाश करनी थी, पर कहीं नहीं मिला बल्कि लोगों ने कभी भिखारी तो कभी ढोंगी समझा, अरे भगवान् कहीं होगा तो घर में भी मिल जाएगा, अब चल वहीँ काम और ध्यान करेंगे ,चल बेटा अब घर चलें ,तूने भी बड़ा साथ निभाया , वो देख सामने नाव भी आ रही है चल तेज़ चल, और आज ही ये गेरुआ वस्त्र इसी गंगा माँ को समर्पित कर दूंगा !”
“इतना सुनते ही उस साधु का…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on May 15, 2015 at 9:00pm — 14 Comments
Added by shree suneel on May 15, 2015 at 5:02pm — 35 Comments
प्यासी देह .....
मन की कंदराओं में किसने .......
अभिलाषाओं को स्वर दे डाले .......
किसकी सुधि ने रक्ताभ अधरों को ......
प्रणय कंपन के सुर दे डाले//
मधुर पलों का मुख मंडल पर ........
मधुर स्पंदन होने लगा .........
मधुर पलों के सुधीपाश में ........
मन चन्दन वन होने लगा//
नयन घटों के जल पर किसकी .......
स्मृति से हलचल होने लगी ........
भाव समर्पण का लेकर काया .......
मधु क्षणों में खोने लगी//
किसको…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 15, 2015 at 9:53am — 26 Comments
आ दुआ करें
आ दुआ करें मिलजुल,
निःस्वार्थ हो बिलकुल,
प्रभु!रचना तेरी चुलबुल,
हँसने दे अभी खुलखुल।…
Added by Manan Kumar singh on May 15, 2015 at 8:30am — 3 Comments
“पापा, मुझे ज्वाइंट और न्युक्लियर फ़ैमिली के मेरिट्स-डिमेरिट्स के बारे में पढ़ना है.” राजू ने अपने पापा से कहा.
फिर, चहकते हुये पूछा, "पापा, ज्वाइंट फ़ैमिली में बडा मजा आता होगा न.. सब एक साथ रहते होंगे. खेलने को बाहर भी नहीं जाना पड़ता होगा”,
“हाँ, बेटा मजा तो बहुत आता था. तेरे दादा-दादी, चाचा-चाची, हमसभी एक साथ रहते थे.. हरतरह से सुख-दुःख में एक साथ.. पर तेरे जन्म के बाद से हम भी न्युक्लियर फ़ैमिली हो गये.”
तभी किचेन से राजू की…
Added by Shubhranshu Pandey on May 14, 2015 at 10:30pm — 23 Comments
Added by मनोज अहसास on May 14, 2015 at 6:00pm — 5 Comments
ईश्वर तुम हो कि नहीं हो
इस विवाद में मन उलझाये बैठी हूँ
‘हाँ’ ‘ना’ के दो पाटों के बीच पिसी
कुछ प्रश्न उठाए बैठी हूँ
कि अगर तुम हो तो इतने
अगम, अगोचर और अकथ्य क्यों हो
विचारों के पार मस्तिष्क से परे
‘पुहुप बास तै पातरे’ क्यों हो
तुम्हें खोजने की विकलता ने
जब प्राप्य ज्ञान खँगाला
तो द्वैत, अद्वैत और द्वैताद्वैत ने
मुझको पूरा उलझा डाला
तुम सुनते हो यदि
या कि मुझे तुम सुन पाओ
एक प्रार्थना…
ContinueAdded by Tanuja Upreti on May 14, 2015 at 4:35pm — 9 Comments
१२१२ ११२२ ११२२ २२
तमाम मोती हैं सागर में मगर मुझको क्या
घिरा जो तम में मेरा घर तो सहर मुझको क्या
हमें वो हीन कहें दींन कहें या मुफलिस
बशर तमाम जुदा सब कि नजर मुझको क्या
बहार आयी चमन में है ये तो तुम देखो
खिजाँ नसीब है; मैं हूँ वो शजर, मुझको क्या
जो नंगे पाँव ही चलना है मुकद्दर मेरा
बिछे हों गुल या हो खारों की डगर मुझको क्या
मेरा नसीब तो फुटपाथ जमाने से रहे
नसीब उन को महल हैं…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2015 at 3:33pm — 10 Comments
"समीर जी , क्या रूतबा है भई आपका ...!!! जहाँ भी जाते हो ..यार , छा जाते हो ! " --- अजय को गर्व था अपने दोस्त पर । समीर का जलवा तो उसके हर अंदाज़ से ही झलकता था। उसकी बातों से ही मंत्रालय में उसकी पद प्रतिष्ठा का अनुमान चल जाता है। जब साले साहब को मंत्रालय में जरूरी काम करवाने की जरूरत आन पडी तो अजय बडे गर्वित हो साले साहब के साथ मंत्रालय की ओर निकल लिए ।आजतक मंत्रालय के दर्शन भी नही किये थे उसने । दोस्त की मेहरबानी से यहाँ तक आने का अवसर भी प्राप्त हुआ । मन गदगद हुआ जा रहा था । मंत्रालय के…
ContinueAdded by kanta roy on May 14, 2015 at 12:30pm — 20 Comments
“सुन री छोटी ! सीख कुछ मुझसे. जब देखो मुंह उघारे घूमती रहे है, घूँघट काढ़ा कर |” “ना जीजी हम नही बन सके तुम्हारे जैसे पर्देदार ! देखी हैं हम तुम्हारी नजर.. घूँघट के पीछे से घूरे है छुटके देवर जी का शरीर जब देखो तब |” “का फायदा ऐसे घूँघट का..?” देवरानी ने पलट जवाब दे मारा जेठानी पर |
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sudhir Dwivedi on May 14, 2015 at 11:39am — 19 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |