For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुरू वंदन अभिनंदन

तुम महान
अद्भुत स्वप्नद्रष्टा
स्वप्न कैसा
साकार किया है
व्यास प्रकाश
पुंज से अपने
जीवन का
महाकाव्य दिया है
तमस तम को
काट ज्ञान से
शुभ्र अमर
संदेश दिया है
तुम दूर दृष्टा हो
मै अज्ञानी
जन्म साकार
यह मूर्त दिया है
मस्तक पर तुम
चंदन हो स्वामी
यह हमने
स्वीकार किया है
तुम मेरे गुरू
गोविंद ब्रह्मज्ञानी
तुममें ईश्वर का
साक्षात्कार किया है



कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 419

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 12:35am

ऐसी रचनाएँ गेय हों और मात्रिक कसौटियों सधी पर हों, तभी सहज लगती हैं, आदरणीया कान्ताजी.
प्रस्तुति हेतु शुभकामनाएँ

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 27, 2015 at 12:20pm

बहुत सुंदर  भाव रचित रचना से आपके संसारित भावों का आभास होता है | बहुत बहुत बधाई आदरणीया कान्ता रॉय जी 

Comment by kanta roy on June 27, 2015 at 7:49am
रचना पसंद करने के लिए आभार आपको आदरणीय आदित्य जी
Comment by kanta roy on June 27, 2015 at 7:47am
आभार आप को आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी रचना पसंदगी के लिए
Comment by shree suneel on June 25, 2015 at 6:14pm
अच्छी सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया कांता राॅय जी. बधाई आपको.
Comment by Aditya Kumar on June 24, 2015 at 5:16pm

सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया  kanta roy जी 

Comment by Hari Prakash Dubey on June 24, 2015 at 5:02pm

सुन्दर रचना  है, आदरणीया कांता जी ,  हार्दिक बधाई आपको इस रचना पर ! सादर   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
15 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service