1222---1222---1222-1222 |
|
सटक ले तू अभी मामू किधर खैरात करने का |
नहीं है बाटली फिर क्या इधर कू रात करने का |
|
पुअर है पण नहीं वाजिब उसे अब चोर बोले तुम… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 28, 2015 at 8:30pm — 32 Comments
Added by Rajan Sharma on August 28, 2015 at 5:00pm — 2 Comments
बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२
चार मित्रों, चार चेलों से मिली क्या वाह वाह
मैं समझने लग गया ख़ुद को ग़ज़ल का बादशाह
एक चेले की जुबाँ दी काट मैंने इसलिए
बात मेरी काटने का कर दिया उसने गुनाह
बात क्या है, क्यूँ है, कैसे है मुझे मतलब नहीं
मंच पर पहुँचूँ तो फिर मैं बोलता धाराप्रवाह
अब सिवा मेरे न इसको प्यार कर सकता कोई
हो गया है शाइरी का आजकल मुझसे निकाह
चार छः चमचे मिले, माइक मिला, माला…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 27, 2015 at 10:00pm — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 27, 2015 at 9:56pm — 10 Comments
Added by Archana Tripathi on August 27, 2015 at 4:34pm — 9 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on August 27, 2015 at 9:26am — 8 Comments
121-22---121-22---121-22---121-22 |
|
नसीब को जो कभी न रोया, उसी को किस्मत फली-फली है |
जो काम आये तुरंत कर लो, गलीज़ आदत टला-टली है |
|
कुछ इस तरह से मुहब्बतों के… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 27, 2015 at 3:30am — 16 Comments
Added by Seema Singh on August 27, 2015 at 12:23am — 12 Comments
Added by shashi bansal goyal on August 26, 2015 at 10:52pm — 19 Comments
2212 1222 2222 12
...
चाहा जिसे था दिल के बंद दरवाजे ही मिले ,
वो दोस्ती में मुझको बस अजमाते ही मिले |
ज़ब्रो ज़फ़ा गरीबों पर जिस-जिस ने की अगर,
हर जुर्म खुद खुदा को वो लिखवाते ही मिले |
बदनाम वो शहर में पर, काबे का था मरीज़,
हर चोट भी ख़ुशी से सब बतियाते ही मिले |
वो यार था अजीजों सा, दुश्मन भी था मगर,
हर राज-ए-दिल उसे पर हम बतलाते ही मिले |
इस दौर में जिधर भी देखो गम ही गम हुए,
ऐ ‘हर्ष’ ज़िन्दगी में वो भी आधे ही…
Added by Harash Mahajan on August 26, 2015 at 10:09pm — 8 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 25, 2015 at 9:57pm — 5 Comments
Added by Samar kabeer on August 25, 2015 at 5:18pm — 19 Comments
ख़्वाब :....
हकीकत के बिछोने पर
हर ख़्वाब ने दम तोड़ा है
नहीं, नहीं
ख़्वाब कहाँ दम तोड़ते हैं
हमेशा इंसान ने ही दम तोड़ा है
हर टूटता ख़्वाब
इक नए ख़्वाब का आगाज़ होता है
हर नया ख़्वाब
फिर इक तड़प दे जाता है
और चलता रहता है
सूखे हुए गुलाबों की
सूखी महक में जीने का सिलसिला
इंसान को शबनमी ख़्वाबों में
फ़ना होने की
आदत सी हो गई है
बस, ख्वाब को मंज़िल समझ
अंधेरों से लिपट कर जीता है
दर्द को साँसों में घोल…
Added by Sushil Sarna on August 25, 2015 at 3:57pm — 4 Comments
22---22---22---2 |
|
फूलों में सरगोशी है |
सच की खुशबू फैली है |
|
मुमकिन को भी मायूसी |
नामुमकिन कर देती… |
Added by मिथिलेश वामनकर on August 25, 2015 at 3:30pm — 19 Comments
अपने गॉंव पर एक गीत लिखने का प्रयास
बहर 1222 1222 1222 1222 छूट नियमानुसार लेने का प्रयास
कहानी आज गहमर की सुनो सबको सुनाते है
बना तस्वीर इक प्यारी सभी को हम दिखाते है
बकस बाबा का है मंदिर, लिये बस नाम जो आता ।
न मरता साँप का काटा, खुशी मन से वो घर जाता।
बचाने में गौ माता को, गई थी जान ही जिसकी ।
न उस बरसाल को भूले, करें पूजा सभी उसकी ।।
हमारे गाँव में गंगा, लगे मेला यहाँ हरदम ।
बने हैं घाट सब पक्के, न शहरो से दिखे कुछ…
Added by Akhand Gahmari on August 25, 2015 at 9:37am — 3 Comments
“अरे बिटिया यह क्या..? पूरे कमरे में पैकिंग वाले कागजों का कचरा फैला रखा है..”
“मम्मी!! वो क्या है कि मुझे एक-दो दिन हो गये , मेरा टाईम आये. आप कहती थी, न. कि ऐसे समय में पति की बहुत जरुरत होती है, हर नवविवाहिता को. तो मैं उनके पास जाने की तैयारी कर रही थी.."
“हाँ..बिटिया ! आदमी को तो रोज औरत चाहिए, और औरत का बस यही टाईम मजबूर करता है . बस! तू एक बार उसे, संयुक्त परिवार से निकाल ले. क्यूंकि मैं अपनी तरह तुझे भी, खुश देखना चाहती हूँ. तू अभी जा, फिर मैं बुला लूंगी किसी…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on August 25, 2015 at 3:30am — 3 Comments
आज कोचिंग से निकलने में देर हो गई थी , इसलिए घर जल्दी पहुँचने के लिए उसने मेन रोड छोड़ इसी गली से निकलने का फैसला किया था । हालांकि रात में इस गली से निकलने के लिए मम्मी ने मना किया था लेकिन आज बडी़ ही मजबूरी हो चली थी । कलाई पर बंधी घड़ी की सुई पर नजर पडते ही वो सहम उठी । गली सुनसान -सन्नाटा हुआ जा रहा था । करीब दस फर्लांग ही आगे बढीं होगी कि पीछे से आहट आई । उसे भान हुआ कि कोई पीछे आ रहा है । पलट कर देखा । दो लडके थे । स्थिति को भाँप वो लम्बी - लम्बी डग भरने लगी । पीछे से पदचाप की आवाजें…
ContinueAdded by kanta roy on August 24, 2015 at 11:30pm — 17 Comments
तन्हाई चीखती है कहीं
पगलाई-सी हवा धमक पड़ती है ।
अंधेरे में भी दरवाजे तक पहुँच कर
बेतहाशा कुंडियाँ खटखटाती है।
अकेला सोया पड़ा इंसान अपने ही भीतर हो रहे शोर से
घबड़ा कर उठ बैठता है ।
मोबाइल में चौंक कर देखता है समय
“रात के ढ़ाई ही तो अभी बजे हैं “ बुदबुदाता है।
सन्नाटा उसकी दशा पर मुस्कुराता है।
उधर दुनिया के कहीं कोने में
भीड़ भूख-प्यास से बेकाबू हो कर सड़को पर नहीं निकलती,
सामूहिक आत्महत्याएं कर रही होती…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on August 24, 2015 at 8:30pm — 9 Comments
"यहाँ आम ,यहाँ अमरुद और वहां पर पपाया के पेड़ लगायेंगे ,ठीक मम्मा ? पेड़ लगाने के लिए उसके दस साल के बेटे का उत्साह फूटा पड़ रहा था I
एक महीने पहले ही वो लोग अपने इस नए बने घर में आये थे Iबगीचे वाले घर का उसका बचपन का सपना अब आकार ले रहा थाI क्यारियाँ तैयार थीं ,बस पौधे रोपने थे I
"मम्मा ,अपना बगीचा भी बुआ दादी के बगीचे जैसा बन जायेगा ना एक दिन ?खूब सारे बड़े बड़े पेड़ और ...."I
बेटे की चेहरे की चमक ने एकदम उसके दिमाग का फ़ास्ट फॉरवर्ड का बटन दबा दिया ...Iबेटा बहु ,पोते पोती…
ContinueAdded by pratibha pande on August 24, 2015 at 6:30pm — 14 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |