For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Featured Blog Posts (1,175)

पहले सी मासूमियत

याद आता है

अपना बचपन,

जब  हम उड़ान में रहते थे

बेफिक्री के असमान में रहते थे

दिन गुजरता था बदमाशियों में

पर रात अपने ईमान में रहते थे !

याद आता है,

दिन भर तपते सूरज को चिढाना

आंधियो के पीछे भागना

उनसे आगे निकलने की कोशिश करना

जलती तेज हवाओं से हाथ मिलाना,

और फिर ..............

पता ही नही चला कि

कब माँ की कहानियों की गोद से उठकर

हमारी नींद सपनो के आगोश में चली गई !



दिन से अच्छी थी रातें

हमेशा से

और…

Continue

Added by Arun Sri on January 7, 2012 at 11:00am — 6 Comments

सामयिक दोहे

सामयिक दोहे:-
------------   ---------- 

कमर-तोड़ महंगाई पे,बारम्बार चुनाव!

एक गोद में सिसक रहा,उसपे भारी पांव.
------------   ----------   -----------------  --
फिर चुनाव आये सखी,झरने लगे बयान.
अपने-अपने नेता है,अपनी-अपनी तान.
------------   ----------   -----------------  --
लोकपाल है शोक में,जोक मारते लोग.
खुद होकर पाले नहीं ,नेता कोई रोग.
------------   ----------  …
Continue

Added by AVINASH S BAGDE on January 6, 2012 at 7:58pm — 15 Comments

छन्न पकैया , मेहनत की है रोटी

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी से प्रभावित होकर मैंने भी  छन्न पकैया  में  कुछ लिखने का प्रयास किया है. मेरी मूल रचना में कुछ कमियाँ थी जो योगराज जी ने सुधारी, योगराज सर आपका बहोत बहोत शुक्रिया. वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !

 

.

छन्न पकैया , छन्न पकैया , मेहनत की है रोटी,

कहने को युवराज है, लेकिन बाते छोटी-छोटी ||१||

.

छन्न पकैया, छन्न पकैया , खूब बड़ी महंगाई

कुर्सी पे हाकिम जो बैठा , शुतुरमुर्ग है भाई…

Continue

Added by shashiprakash saini on January 4, 2012 at 2:30pm — 17 Comments

बेटियाँ – छन्न पकैयावली

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी द्वारा इस मंच पर लाई गई इस विलुप्तप्राय विधा से प्रेरित हो मैंने भी चरणबद्ध तरीके से एक बेटी से सम्बंधित कटु सत्यों को रेखांकित करने प्रयास किया है ! वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !

 

 

छन्न पकैया छन्न पकैया सबकी है मत मारी

सर को पकड़े बैठ गए सुन बेटी की किलकारी

 

छन्न पकैया छन्न पकैया छीना है हर मौका

छोड़ पढाई नन्ही बेटी, करती चूल्हा चौंका 



 

छन्न पकैया छन्न पकैया जीवन भर…

Continue

Added by Arun Sri on January 4, 2012 at 2:00pm — 17 Comments

छन्न पकैया

सभी सम्माननीय मित्रों को सादर नमस्कार. आदरणीय योगराज भईया द्वारा ओ बी ओ में प्रस्तुत विलुप्त प्राय छंद "छन्न पकैया" सचमुच मन को भाता है... तभी से  -

.

छन्न पकैया, छन्न पकैया, देख देख ललचाऊं,

छंद सुहावन मनभावन ये, मैं भी कुछ रच पाऊं ||

.…

Continue

Added by Sanjay Mishra 'Habib' on January 3, 2012 at 6:30pm — 6 Comments

पतंगबाजी उर्फ तमन्नाओं की ऊँची उड़ान

तमन्नाओं की ऊँची उड़ान

का आभास हुआ

जब कुछ बच्चों को

घर की मुंडेर

पर चढ़कर

पतंग उड़ाते देखा

अलग अलग रंगों की

छटा बिखेरती,

ऊँची और ऊँची

चढ़ रही थी

आसमान में

परिंदे उड़ते हैं जैसे ।

 

मेरी पतंग ही रानी है

शायद यही सोचकर

लड़ाया पेंच एक बच्चे ने,

दूसरी पतंग धराशायी

हो गई

दूसरे बच्चे ने भी हार न मानी

फिर मांझा चढ़ाया

और दूसरे ही क्षण

उसकी शहजादी करने…

Continue

Added by mohinichordia on January 2, 2012 at 10:30am — 7 Comments

तुम्हें बधाई मित्र.

बीता साल चला गया, देकर नन्हा चित्र.

अंग्रेजी नव वर्ष की, तुम्हें बधाई मित्र. 

तुम्हें बधाई मित्र, इसे अपनापन देना.

देकर स्नेह दुलार, इसे नवजीवन देना.

अम्बरीष…

Continue

Added by Er. Ambarish Srivastava on January 1, 2012 at 1:25am — 14 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
फुलकी

(छंद - दुर्मिल सवैया)

जब मौसम कुंद हुआ अरु ठंड की पींग चढी, फहरे फुलकी

कटकाइ भरे दँत-पाँति कहै निमकी चटखार धरे फुलकी

तब जीभ बनी शहरी नलका, मुँह लार बहे, लहरे…

Continue

Added by Saurabh Pandey on December 31, 2011 at 2:00pm — 58 Comments

मै चलने के लिए बना था मै उड़ न सका

रुकना साँस लेना मेरी ज़रूरत थी
जब भी मै रुका
दुनिया ने कहदिया मै पीछें रह गया
मै चलने के लिए बना था
वो कहते रहे मै उड़ न सका
 
विचार बीज थे
मै मिट्टी था
दुनिया से अलग सोचता
मै मिट्टी था
बारिश की बूदों पड़े तो मै खुशबू
सूरज की रोशनी में जादू
की विचारों में जिंदगी भर दू
उपजाऊ था
पर था तो मै मिट्टी ही
कइयो ने…
Continue

Added by shashiprakash saini on December 29, 2011 at 8:42am — 8 Comments

आत्मविस्मरण

आत्मविस्मरण

 

विद्युत सी तरंग ,

कम्पन का भूकंप ,

स्पर्श नहीं आग !

मन से तन तक जाग !

सांसों में उच्छ्वास,

एक एहसास ...

 

होश नहीं,

जान बही !

कम्पित होठों की प्यास,

एक एहसास ...

 

हाथों में नर्म बारूद,

बारूद मुख  में,

विस्फोट नस नस में !

बढ़ी प्यास,

एक एहसास ...

 

रिक्तता उभय ओर,     

पूर्णता पे जोर,

साँसों का…

Continue

Added by Dr Ajay Kumar Sharma on December 28, 2011 at 4:32pm — 2 Comments

दहेज़ में,,,,,,,,

हंसना मना है,,,,,,,,



सामान एक से एक, आला दहेज़ में मिला !

बहरी बीबी गूंगा, साला मिला है दहेज़ मॆं !!१!!



एक आंख नकली है,एक टांग सॆ भी लंगड़ा,

है रंग चॊखा भुजंग काला, मिला है दहॆज़ मॆं !!२!!



नागिन कॊ मात दॆती हैं मॆरी तीनॊं सालियां,

ससुरा भी नशॆड़ी मतवाला,मिला है दहॆज़ मॆं !!३!!



मॆज़बानी मॆं पहलॆ दिन, दारू ठर्रा मिली थी,

बिदाई मॆं एक पटियाला, मिला है दहॆज…
Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 16, 2011 at 11:00am — 2 Comments

एक मुट्ठी धूप

तुम्हे शिकायत है

इस गहरे अँधेरे से ,

पर क्या तुमने कोशिश की

एक दिया जलाने की ?

या मेरे हाथों से हाथ मिलाकर

बनाया कोई सुरक्षा घेरा

कुछ जलते दीयों को

हवा से बचाने के लिए ?

 

नही न ?

 

कोई बात नहीं !

अभी सूखा नही है

समय का फूल !

 

चलो ढूँढे !

समंदर में डूबे सूरज को ,

इकठ्ठा करें

एक मुट्ठी धूप ,

उछाल दें पर्वतों पर ,

घाटियों में भी !

खिला…

Continue

Added by Arun Sri on December 16, 2011 at 12:30pm — 26 Comments

निभा पाओगे

निभा पाओगे 

लाख चाहकर भी मुझे न तुम बुझाओगे

तुम अंधेरों में रहोगे जो न जलाओगे
मेरी तकदीर में लिखा था जलो सबके लिए
दर्द के किस्से…
Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on December 16, 2011 at 12:30pm — 12 Comments

वो प्यार भरे पल

वो पल सबसे अच्छे थे

जो गुज़रे थे तेरी बाहों में ।

खयालों में उन पलों को जी लेती हूँ

उन सांसों की सरगम से

मन को भिगो लेती हूँ

वो पल वापस नहीं लोटेंगे, मुझे पता है

उन स्मृतियों से आँखों को

नम…

Continue

Added by mohinichordia on December 17, 2011 at 3:30pm — 3 Comments

हर खुशी मिल गई मेरे दिल की...

बढ़ गई तिश्नगी मेरे दिल की,
आग सी जल गई मेरे दिल की।

वस्ल में कशमकश जगा बैठी,
धड़कनें खौलती मेरे दिल की।

फासले थे तो पुरसुकूँ दिल था,
साँस मिल के रुकी मेरे दिल की।

उसकी पलकें हया से हैं झिलमिल,
जूँ ही क़ुरबत मिली मेरे दिल की।

कँपकपाते लबों पे नाम आया,
फाख्ता है गली मेरे दिल की।

अब हमें रोकना है नामुमकिन,
धड़कनें कह रही मेरे दिल की।

फासले कुरबतों में यूं बदले,
मिल गई हर खुशी मेरे दिल की।

Added by इमरान खान on December 19, 2011 at 8:00am — 3 Comments

वृद्ध और वृक्ष



यह कविता अब से १० वर्ष पूर्व मैंने इस प्रेरणा के साथ लिखी है कि मानव अपने थोड़े से सुकृत्य का बखान कर अपनी तमाम बुराइयों को उसके अंदर ढँक लेना चाहता है परन्तु कोई हस्तक्षेप उसको आइना दिखाकर एकदम से धरातल दिखा देता है| इसी परिपेक्ष्य में इस कविता को देखना चाहिए और जिस भाव से ये पंक्तियाँ लिखी गई हैं उसी भाव से यदि पाठक तक पहुँच जाएँ तो इन पंक्तियों का लेखन सार्थक होगा|…


Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on December 17, 2011 at 7:27pm — 3 Comments

माहो-अख्तर के बिना आसमां हूँ मैं ,

माहो-अख्तर के बिना आसमां  हूँ मैं ,

.यादों की बिखरी हुई कहकशां हूँ मैं |



अपने खूं से लिखी हुई दास्ताँ हूँ मैं |

पढने वालों के लिए  इम्तहाँ हूँ मैं |

.

चाहे जिसको लूटना ये ज़हाँ सारा…

Continue

Added by Nazeel on December 15, 2011 at 12:00pm — 4 Comments

एक ग़ज़ल

जब कभी भी आजमाया जायेगा  

आदमी औकात पर आ जायेगा

शख्सियत औ कद बड़ा जिस का मिला 

वो यकीनन बुत बनाया जायेगा 

क़ैद कर मेरी सहर की रोशनी 

भोर का तारा दिखाया जायेगा 

जिद पे गर बच्चा कोई आ ही गया 

चाँद थाली में सजाया जायेगा 

गर वो वादों पर यकीं करने लगे 

उस से रोज़ी पर न जाया जायेगा 

फ़र्ज़दारी का सिला जो दे चुके

कत्लगाहों में बसाया जायेगा

ये जहां तो इक मुसलसल मांग…

Continue

Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on December 8, 2011 at 11:00am — 7 Comments

इलाहाबाद : काव्य गोष्ठी

इलाहाबाद : काव्य गोष्ठी

स्थान - चंद्रशेखर आजाद पार्क, इलाहाबाद

दिनांक - २६-११-११

समय - २ बजे से ५ बजे



राणा प्रताप काव्य पाठ करते हुए

 

 …

Continue

Added by वीनस केसरी on November 26, 2011 at 11:37pm — 5 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
एक गज़ल

भूख की चौखट पे आकर कुछ निवाले रह गए

फिर से अंधियारे की ज़द में कुछ उजाले रह गए

 

आपकी ताक़त का अंदाजा इसी से लग गया

इस दफे भी आप ही कुर्सी संभाले रह गए

 

लाख कोशिश की मगर फिर भी छुपा ना पाए तुम

चंद घेरे आँख के नीचे जो काले रह गए

 

जब से मंजिल पाई है होता नहीं है दर्द भी

देते हैं आनंद जो पाओं में छाले रह गए                                    

 

जम गए आंसू, चुका आक्रोश, सिसकी दब गई

इस पुराने घर में बस…

Continue

Added by Rana Pratap Singh on November 27, 2011 at 11:30pm — 16 Comments

Featured Monthly Archives

2025

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें "
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"आदरणीय सुरेश भाई , बढ़िया दोहा ग़ज़ल कही , बहुत बधाई आपको "
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
Wednesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Jul 12
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service