For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


यह कविता अब से १० वर्ष पूर्व मैंने इस प्रेरणा के साथ लिखी है कि मानव अपने थोड़े से सुकृत्य का बखान कर अपनी तमाम बुराइयों को उसके अंदर ढँक लेना चाहता है परन्तु कोई हस्तक्षेप उसको आइना दिखाकर एकदम से धरातल दिखा देता है| इसी परिपेक्ष्य में इस कविता को देखना चाहिए और जिस भाव से ये पंक्तियाँ लिखी गई हैं उसी भाव से यदि पाठक तक पहुँच जाएँ तो इन पंक्तियों का लेखन सार्थक होगा|

एक पथिक, अति वृद्ध और अत्यंत ही दुर्बल
गर्मी की दोपहर में, होकर धूप से बेकल

ढूंढ रहा था कहीं किसी तरुवर की छाया
पर उसकी नज़रों में कोई वृक्ष ना आया

होठों पर आई उसके मुस्कान की रेखा
चलते चलते बहुत दूर एक वृक्ष सा देखा

पर फ़ौरन ही खत्म हुआ उल्लास ही सारा
एक अकेला वृक्ष वो भी  पतझर का मारा

मन में दुःख पैरों पर लेकर दुर्बल काया
वृद्ध थकित कदमों से पास वृक्ष के आया

टिका ताने पर पीठ वृद्ध ये बोला बानी
तरुवर तेरी मेरी बिलकुल एक कहानी

हरी पत्तियों वाला होगा वैभवशाली
जैसे मुझपर छाई थी यौवन की लाली

फल फूलों से लदा फदा तेरा तन होगा
जैसे मैंने अपना यौवन है खुद भोगा

पर अब

शक्तिहीन मैं पर्ण हीन तू एक जैसे हैं
इसीलिए तो दोनों दोस्त दोस्त जैसे है

सुनकर के ये बात वृक्ष बोला अभिमानी
तेरी मेरी नहीं कभी थी एक कहानी

सिद्धांतहीन और स्वार्थ भरा था जीवन तेरा
तूने किया सदा मेरा मेरा और मेरा

अपने फल भी छाया भी औरों को देकर
मैंने अपनी उम्र गुजारी परोपकार कर

परोपकार की महिमा तूने नहीं है जानी
इसीलिए कहता है अपनी एक कहानी

ये पतझर है देख लेना वसंत फिर आयेगा
मेरा तन फिर फल फूलों से भर जायेगा

तेरा यौवन नहीं लौटकर फिर आयेगा
तू तो वृद्धावस्था में ही मर जायेगा

दोस्त कहा है तो बात मान ले मेरी
स्वार्थ हीन बन परोपकार कर अभी भी नहीं हुई है देरी

Views: 573

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 24, 2011 at 10:37am

इस प्रयास पर आपको साधुवाद.

 

Comment by Nazeel on December 18, 2011 at 10:52am

चन्द लाइनो मे तमाम ज़िंदगी ब्यान कर डाली.. बधाई मुकेश जी ..:)

Comment by Abhinav Arun on December 17, 2011 at 8:11pm

जीवन का फलसफा यानी निचोड़ निकाल कर रख दिया है आपने मुकेश जी | बहुत गंभीर भाव से युक्त और संदेशपरक रचना | सचमुच परोपकार ही संतों का आभूषण है ' वाली बात | हमें हर क्षण इसे याद रखना चाहिए | हम प्रकृति से काफी कुछ सीख सकते हैं | आपकी इस सीख देती काव्य रचना के लिए हार्दिक साधुवाद !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
17 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
17 hours ago
Tilak Raj Kapoor updated their profile
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service