For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Mukesh Kumar Saxena's Blog (14)

ऐ मेरी मुश्किलों सब मिलके मेरा सामना करो

ऐ  मेरी  मुश्किलों  सब मिलके   मेरा सामना करो

 

मै  अकेला ही  बहुत हूँ  तुमसे निबटने के लिए ,

ऐ मेरी मुश्किलों सब मिलके मेरा…

Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on May 24, 2013 at 9:30pm — 5 Comments

मुझको सरल बनाइये ।

पाषाण सा मैं कठोर हूँ मुझको तरल बनाइये । 

मेरे छल कपट को छीन कर मुझको सरल बनाइये ।

मुझे शक है अपने आप पर बिश्वास भी खुद पर नहीं । 

मेरी पकड़ भी कमजोर है हाथों में  मेरे बल नहीं…

Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on March 7, 2013 at 11:09am — 7 Comments

राम या राम चन्द्र

दोस्तों ।



आज विजय दशमी है आज के दिन राम ने रावण को मारा था । यह एक मधुर कल्पना है की चाँद किस प्रकार खुद को राम के हर कार्य से जोड़ लेता है और फिर राम से शिकायत करता है और राम भी उस की बात से सहमत हो कर उसे वरदान दे बैठते है आइये देखते है ।

राम या राम चन्द्र

जब चाँद का धीरज छुट गया…

Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on October 24, 2012 at 1:00pm — 4 Comments

गीत

दोस्तों आज़ादी की इस पवित्र वेला में मै आज वहुत दिनों के बाद अपनी उपस्थिति दर्ज करवा  रहा हूँ । और क्यों की आज हम आज़ादी के 65 वर्ष पूरे करके 66 वर्ष में प्रवेश कर रहे है । मै इस झंझट में विल्कुल नहीं पडूंगा की हमने क्या खोया क्या पाया। मै तो एक दृश्य और उस पर लिखे अपने एक गीत को आप के साथ बाँटना चाहता हूँ।…

Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on August 15, 2012 at 11:30am — 3 Comments

परिदृश्य

परिदृश्य

  

(1)

फर्क 

दो लड़कियां दोनों ही सुन्दर , 

उम्र थी सत्रह से…

Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on April 6, 2012 at 1:00pm — 8 Comments

मोबाइल घर

मोबाइल घर

(दोस्तों हम लोगों की एक जमात से बन गयी है जहाँ एक कवि लिखता है और दूसरा पढता है मंझे हुए कवि मंझी हुई कविता  सब कुछ एकदम प्रोफेशनल मगर कोई स्थिति जिसको आप ने देखा हो और आपके दिल में अन्दर तक उतर गयी हो उस विषय पर जब आप लिखते हैं तो बात कुछ और…

Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on March 14, 2012 at 8:00pm — 5 Comments

भरत की व्यथा

            

भरत की व्यथा 

घनी अंधियारी  काली रात ।

सूझता नहीं हाथ को हाथ ।

घोर सन्नाटा सा है व्याप्त ।

नहीं है वायु भी पर्याप्त ।



नहीं है काबू में अब मन ।

हुआ है  जब से राम गमन ।

भटकते होंगे वन और वन ।

सोंच यह व्याकुल होता मन ।



नगर से बाहर सरयू…

Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on February 4, 2012 at 8:51pm — 5 Comments

आँसू

आँसू



तमन्ना है तुम्हारी आँख का आँसू मैं बन जाऊ .

तेरे दामन को भिगो दूं उसी में ज़ज़्ब हो जाऊ.



जन्म लूँ आँख में तेरी बहू मैं गाल पे तेरे.

तेरे होठो को छू लूँ मैं होंठ छूते ही मर जाऊ

तमन्ना है तुम्हारी आँख का आँसू मैं बन जाऊ .



अगर मैं आँख में निकलू…
Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on January 28, 2012 at 7:30pm — 3 Comments

शीर्षक आप बताएं

छरहरा सा वदन उसका श्वेत वस्त्र धारण किये ।

था पीत किरीट भाल की शोभा तन वहुत नाजुक लिए।

खोल के जो कपाट घर के देखा उसको गौर  से ।

शर्म से नज़रें झुका लीं प्रिय सी चंचलता लिए ।

थाम के उसको लगाया होंठ से अपने जभी ।

इश्क की गर्मी से  मेरी खुद ही खुद वह जल उठी ।

खेंच कर सांसों को उसकी जब मै उसको पी गया ।

आग सीने में लगी जल कर कलेजा रह गया ।

धुंए का गुब्बार निकला और फिजा…

Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on January 23, 2012 at 11:34am — 2 Comments

बीत यह भी साल गया

बीत यह  भी साल गया 





जिंदगी की पुस्तक से पृष्ठ कुछ निकाल गया |

करके कंगाल हमे बीत यह भी साल गया ||





भूपेन्द्र हजारिका जगजीत हमे बहुत प्यारे थे |

देवानंद और शम्मी देश के दुलारे थे ||

उनको बड़ी क्रूरता से आज निगल काल गया |

करके कंगाल हमे बीत यह भी साल गया ||





भृष्टाचार ख़त्म हो यह मन में सव विचारे है |

एक अन्ना काफी था यह तो फिर हजारे है…

Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on December 31, 2011 at 8:57pm — 9 Comments

दुत्कार

एक रोटी का छोटा टुकड़ा जब दिल चाहा  तब डाल दिया . 
इस पर भी मैंने  खुश होकर वोह जब आया सत्कार किया .
मैं फिर भी नहीं समझ पाया की उसने क्यों दुत्कार दिया . 
उसके बच्चे मुझको प्यारे वे मोती हैं मैं धागा  हूँ .
मैं उनकी गेंद उठाने को दूर दूर तक भागा हूँ. 
वे मेरे संग दिन भर खेले मैंने भी उनको प्यार दिया .
मैं अब तक नहीं समझ  पाया कि  उसने क्यों दुत्कार दिया.
घर में मेरी कोई जगह नहीं इससे है मुझे इंकार…
Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on December 30, 2011 at 5:33pm — No Comments

एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .

एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .

एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .

रोज़ पिए इंसान जहर पर कोई समझ न पाया .



कितने ही अपमान के बिष घट पीना पड़ता है.

जीने की जब चाह नहीं तब जीना पड़ता है.

तिरस्कार का कितना ही विष हमने रोज़ पचाया.

एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .

रोज़ पिए इंसान जहर पर कोई समझ न पाया .…

Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on December 20, 2011 at 8:05pm — 1 Comment

ना हमको कहो अपंग.

देख लो मन में भरी उमंग.

देख लो जीने का भी ढंग.

की जैसे उड़ती हुई पतंग.

नस नस में उठती नयी तरंग.

फिर ही कहते हो हमे अपंग.



कभी देखा है ऐसा रंग.

कभी पाया है ऐसा संग.

कभी है मन में बजी  मृदंग

कही क्या खा आए  हो भंग.

कहो फिर कैसे कहा अपंग.



माना है हम शरीर से तंग.

मगर हैं दिल से बड़े दबंग.

भरा है मन में जोश उचांग

लो पहले खेल हमारे संग.

हार जाओ तो कहो तड़ंग.

जीत पाओ तो कहोअपंग.

भले ही घुमओ नंग धड़ंग.

मगर ना हमको कहो…

Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on December 20, 2011 at 7:17pm — 1 Comment

वृद्ध और वृक्ष



यह कविता अब से १० वर्ष पूर्व मैंने इस प्रेरणा के साथ लिखी है कि मानव अपने थोड़े से सुकृत्य का बखान कर अपनी तमाम बुराइयों को उसके अंदर ढँक लेना चाहता है परन्तु कोई हस्तक्षेप उसको आइना दिखाकर एकदम से धरातल दिखा देता है| इसी परिपेक्ष्य में इस कविता को देखना चाहिए और जिस भाव से ये पंक्तियाँ लिखी गई हैं उसी भाव से यदि पाठक तक पहुँच जाएँ तो इन पंक्तियों का लेखन सार्थक होगा|…


Continue

Added by Mukesh Kumar Saxena on December 17, 2011 at 7:27pm — 3 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
30 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
11 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
11 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
11 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
11 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
11 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
12 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
13 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
13 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service