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एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .

एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .

एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .
रोज़ पिए इंसान जहर पर कोई समझ न पाया .

कितने ही अपमान के बिष घट पीना पड़ता है.
जीने की जब चाह नहीं तब जीना पड़ता है.
तिरस्कार का कितना ही विष हमने रोज़ पचाया.
एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .
रोज़ पिए इंसान जहर पर कोई समझ न पाया .

पेट की भूख मिटाने को अबलाये लुटती  है.
दूध पिलाने की खातिर माताए बिकती है.
आकर देख जरा धरती पर कितना जहर समाया .
एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .
रोज़ पिए इंसान जहर पर कोई समझ न पाया .

एक बार प्रभु इन्सान बन कर धरती पर आ जाओ .
थोडा सा विषपान करो कुछ तो अमृत वरसाओ .
दुःख से भरी तेरी धरती पर विष ही विष है समाया .
एक बार बिष पान किया तो नील कंठ कहलाया .
रोज़ पिए इंसान जहर पर कोई समझ न पाया .







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Comment by mohinichordia on December 21, 2011 at 4:46pm

कितने ही अपमान के विष घट पीना पडता है ...बेहद मार्मिक रचना 

कृपया ध्यान दे...

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