For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,140)

ग़ज़ल - क्या आपके दिल में है ?बता क्यों नहीं देते?

ग़ज़ल

क्या आपके दिल में है,बता क्यों नहीं देते ?

नजरों से मेरी पर्दा उठा क्यों नहीं देते ?



ये किसलिये अहसान के नीचे है दबाया?

मुझको मेरी कमियों की सज़ा क्यों नहीं देते ?



कुछ गलतियाँ करवाती हैं मज़बूरियाँ सबसे

तुम तो बड़े हो गलती भुला क्यों नहीं देते?



हालाँकि सराबोर महब्बत से हूँ लेकिन

मौसम ये बहारों के मज़ा क्यों नहीं देते?



ये कौन ज़ुदा शख्स मेरे पीछे पड़ा है

सब पूछते हैं मुझसे,बता क्यों नहीं देते ?



जो शख्स… Continue

Added by सूबे सिंह सुजान on September 19, 2016 at 11:04pm — 12 Comments

ताटंक छन्द- उरी हमले के संदर्भ में

नापाक इरादों को लेकर, श्वान घुसे फिर घाटी में।

रक्त लगा घुलने फिर देखो, केसर वाली माटी में ।।

सूनी फिर से कोख हुई है, माँ ने शावक खोये हैं।

चीख रही हैं बहिनें फिर से, बच्चे फिर से रोये हैं।१।

सिसक रही है पूरी घाटी, दिल्ली में मंथन जारी।

प्रत्युत्तर में निंदा देते, क्यूँ है इतनी लाचारी।।

अंदर से हम मरे हुए हैं, पर बाहर से जिन्दा हैं।

माफ़ करो हे भारत पुत्रों, आज बहुत शर्मिंदा हैं।२।

वो नापाक नहीं सुधरेंगे, कब ये दिल्ली…

Continue

Added by डॉ पवन मिश्र on September 19, 2016 at 3:30pm — 7 Comments

गुम हो जाएँ

बरसों बात मिली 
है सहेली मेरी 
एक चाई का 
प्याला और खट्टी
मीठी यादें 
समेट कर 
लायी है 
सहेली मेरी 
चल चले 
मेले में 
कुछ ख़ुशियाँ 
बटोरने 
कुछ कची
कचौरी खाने
कुछ इमली
तोड़ने 
अठन्नी कम 
पड़ गयी 
थी घसीटे
की ठेली में
कान मरोड़…
Continue

Added by S.S Dipu on September 19, 2016 at 1:14pm — 4 Comments

ग़ज़ल ( साजन के तेवर देख कर )

ग़ज़ल

--------

फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फाइलुन

चाहता है सिर्फ़ दिल मेरा ये मंज़र देख कर ।

फोड़ लूँ मैं अपनी आँखें उनको मुज़्तर देख कर ।

ज़िन्दगी में भी वो आजाएं जो मेरे दिल में हैं

सोचता रहता यही हूँ उनको अक्सर देख कर ।

हर किसी के पास तो होता नहीं ख़ुद का मकाँ

किस लिए हैं आप हैराँ मुझको बे घर देख कर ।

किस में हिम्मत है बढाए दोस्ती का हाथ जो

आस्तीं में आपकी पोशीदा खंज़र देख कर ।

फिर मुसीबत ना…

Continue

Added by Tasdiq Ahmed Khan on September 18, 2016 at 11:53am — 10 Comments

उम्मीद में

बेटा बेटा करते

करते आज

तीसरी बेटी हुई है

उम्मीदों की बली

आँचल फिर चढ़ी है

दुर्गा माँ की डोली

धूम धाम से

सजी है

और बेटी के

हँसने पर

बेड़ियाँ

लगी है

भाई किसी

लड़की को

छेड़ कर

आया है

बहन ने

फिर भाई को

पुलिस से

छुपाया है

जिस कोख से

तू जन्मा है

उसको शर्मसार

ना कर

अस्तिवा ही

औरत है तेरा

मर्द है तो

हाहा कार

ना कर

जिस रोज़

औरत अपनी

ज़िद पर

अड़… Continue

Added by S.S Dipu on September 18, 2016 at 11:47am — 4 Comments

ग़ज़ल- सितारे रक़्स करते हैं

1222 1222 1222 1222



उन्हें देखें जो बेपर्दा सितारे रक़्स करते हैं।

नज़र जो उनकी पड़ जाए नज़ारे रक़्स करते हैं।।



तेरे पहलू में होने से शबे दैजूर भी रौशन।

बरसती चाँद से खुशियाँ सितारे रक़्स करते हैं।।



तुम्हे है इल्म मेरी जिंदगी कुछ भी नही तुम बिन।

इन्हीं वजहों से तो नख़रे तुम्हारे रक़्स करते हैं।।



कभी तो तुम ही आओगे शबे हिज़्रां मिटाने को ।

इसी उम्मीद से अरमां हमारे रक़्स करते हैं।।



जड़ों की कद्र तो केवल समझते हैं वही पत्ते।

शज़र… Continue

Added by डॉ पवन मिश्र on September 18, 2016 at 9:55am — 14 Comments

माता मैं ना जाऊँगा

कितने कष्ट सहे हैं तूने , कैसे मुझे पढ़ाया है,

तुझे छोड़कर घर से बाहर, मैंने कदम बढाया है |

अनचाहे ही माता तुझको , मैंने आज रुलाया है

भाग्य विधाता ने भी देखो, कैसा खेल रचाया है ||

 

 

रुक जाता मैं माता क्षणमें, बस कहने की देरी थी,

जाऊँ मैं परदेस मगर माँ, ये जिद भी तो तेरी थी |

देवों को नित पूजा तूने , माला भी नित फेरी थी,

तुझको छोड़ कहीं जाऊँ मैं, ये ईच्छा कब मेरी थी ||

 

 

दमकुंगा बन कुंदन लेकिन, काम न तेरे…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on September 17, 2016 at 9:30pm — 13 Comments

नींद रहने लगी हर घडी लापता (ग़ज़ल)

212 212 212 212



ज़िन्दगी से है यूँ ज़िन्दगी लापता

जैसे हो रात से चाँदनी लापता



चाँद है चाँदनी है सितारे भी हैं

रात से अब मगर रात ही लापता



इस तरफ उस तरफ हर तरफ भीड़ है

शह्र से है मगर आदमी लापता



मुझको मुझसे मिलकर गया था जो शख्स

बदनसीबी कि है अब वही लापता



चाँद-तारों से जा मिलते हैं हम तभी

खुद से हो जाते हैं जब कभी लापता



मेरी आँखों को इक ख़्वाब क्या मिल गया

नींद रहने लगी हर घड़ी लापता



(मौलिक व… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on September 17, 2016 at 8:57pm — 10 Comments

अध्यापक और शिक्षा

गुरु भगवान से पहले आते सब जाते बलिहारी

ज्ञान का सूरज यहाँ निकलता नहीं रहे अज्ञानी

सूरज सादृश्य वह ज्ञान बांटते कोई नहीं शानी

शिक्षा एवं संस्कार बांटते यह है अमिट कहानी

सरकारी स्कूलों में अध्यापक करते हैं मनमानी

देश की प्रगति में बाधक पर कहलाते हैं ज्ञानी

ऐसे शिक्षक को दंड मिले तो नहीं कोई हैरानी    

मानवता को शर्मिंदा कर बच्चों की करते हानी

बच्चों संग करते भेद भाव शिक्षा में आनाकानी

नादानों से करते दुर्व्यवहार सुनकर होती हैरानी …

Continue

Added by Ram Ashery on September 17, 2016 at 3:00pm — 7 Comments

गीत ........अब हृदय में वेदनाओं का सृजन है |

अब हृदय में वेदना ही का सृजन है,

भीड़ में कहीं खो गया यह मेरा मन है ।



पतझड़ों सी हर खुशी लुटने लगी है,

सच, बहारों ने उजाड़ा फिर चमन है।



जब बहारों ने किया स्वागत हमारा,

प्रीत-पथ के पांव में कंटक चुभन है।



अब उगेंगे पेड़ जहरीली जमीं पर,

आदमी का विषधरों जैसा चलन है।



ये हवा तूफान की रफ्तार सी है,

इसमें हर मासूम के अरमां दफन हैं।



याद रहता है कहाँ, कोई किसी को,

हालात से है जूझता हर तन और मन है ।…



Continue

Added by Abha saxena Doonwi on September 17, 2016 at 10:00am — 9 Comments

एक तरही ग़ज़ल(समीक्षार्थ)

बह्र:1222 1222 1222 1222



नफ़स मुश्किल हुआ लेना नजारे रक्स करते हैं

छुड़ा कर आज दामन को सहारे रक्स करते हैं।



यकीं जिनपर मुझे सबसे ज़ियादा था हुआ करता

गिरा कर हौंसला मेरा वो'प्यारे रक्स करते हैं।



गवाही कौन देगा अब तुम्हारी बे गुनाही की

बिका ईमां गवाहों का वे' सारे रक्स करते हैं।



भुला आवाज को दिल की तमाशा देखते हैं सब

"सफीने डूब जाते हैं किनारे रक़्स करते हैं।"



मुहब्बत कर रहे देखो पराई से सभी यारो

भुला अपनी ही'भाषा को… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 16, 2016 at 11:30pm — 13 Comments

मुद्रा स्फीति --डॉo विजय शंकर

( नवीन मुद्रा के आगमन पर स्वागत सहित, अचानक प्रस्तुत )



कैसे गायब हो जाते हैं छोटे सिक्के ,

पाई , अधेला , धेला , दाम ,

छेदाम , पैसा , दो पैसा ,

इक्कनी , दुअन्नी , चवन्नी ,

गला कर उन्हें तांबे ,

पीतल में ढाल लेते हैं।

कहते हैं , उनकी खरीदने की

ताकत ख़तम हो जाती है ,

या उनकीं अपनी कीमत बढ़ जाती है ?

हमारी समझ घट जाती है ,

तभी तो वे पुराने सिक्के

चलन में आज मिलते नहीं ,

कहीं मिल जायें तो

सौ, दो सौ , हजार , दस हजार… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 16, 2016 at 11:10pm — 12 Comments

ग़ज़ल: इक नज़र देखा मुझे तो प्यार मुझसे कर गया,

2122. 2122. 2122. 212



इक नज़र देखा मुझे तो प्यार मुझसे कर गया,

देखकर सारे ज़माने की अदावत फिर गया,



टूटते हैं बेसबब जिस भी तरह पत्त्ती यहाँ,

वो नज़र से ख़ुद किसी के बेवजह ही गिर गया,



दर्द लेकर प्यार का ज़ख़्मी बना आशिक़ नया,

बन शराबी लड़खड़ाते उस तरफ़ से घर गया,



जानकर उसकी ख़ताओं की वजह,अहसास से,

आँख भरता हो दुखी का दिल मिरा बस भर गया,



लोग कहते थे उसे है साहसी कितना बड़ा,

प्यार के अंजाम के पहले निडर भी डर गया ।…



Continue

Added by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 16, 2016 at 11:00pm — 10 Comments

सृष्टि का सबसे मधुर फिर गीत हम गाते सनम-----ग़ज़ल, पंकज मिश्र

2122 2122 2122 212



काश तेरे नैन मेरी रूह पढ़ पाते सनम।

दर ब दर भटकाव से ठहराव पा जाते सनम।।



इक दफ़ा बस इक दफ़ा तुम मेरे मन में झाँकते।

देखकर मूरत स्वयं की मन्द मुस्काते सनम।।



धड़कनों के साथ अपनी धड़कनें गर जोड़ते।

इश्क़ का अमृत झमाझम तुमपे बरसाते सनम।।



हाथ मेरे थाम कर चुपचाप चलते दो कदम।

प्रीत का जिंदा नगर हम तुमको दिखलाते सनम।।



खुद से अब तक मिल न पाए हो तो बतलाऊँ तुम्हें।

लोग कहते शेर मेरे तुझसे मिलवाते… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 16, 2016 at 9:50pm — 13 Comments

पर्दा जो कभी रहा ही नहीं ( लघु - कथा ) - डॉo विजय शंकर

यह चार लाइनों की छोटी सी एक युग-युगीन लघु-कथा है।

एक ऐसे देश-राज्य की जिसमें कहीं कुछ भी परदे के पीछे नहीं रहा है , जो रहा है , सब परदे के सामने रहा है , गौर से देखें , सच में कहीं कभी कोई पर्दा रहा ही नहीं।

बस सबने अपनी-अपनी आँखों पर स्वयं पर्दा डाल रखा है।

व्यवस्था में सबसे ऊपर धृष्टराष्ट्र आसीन रहा है जो कुछ भी हो जाए , हर बात पर एक ही बात कहता है , "कोई मुझे भी तो बताओ , क्या हुआ , क्या हो रहा रहा है ? "

और उधर सीकरी से दूर , बहुत दूर ,प्रजा तानपूरा बजा कर सूरदास के पद… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 16, 2016 at 9:30pm — No Comments

विसर्जन--

"गणपति बप्पा मोरिया" की आवाज़ अबीर गुलाल और कानफाड़ू संगीत के बरसात के बीच गूंज रही थी, सड़क को निकलने वाले जुलुस ने पूरी तरह से जाम कर दिया था। किसी तरह बचते बचाते वो निकल रही थी कि एक गेंदे का फूल आकर छाती पर लगा और नज़र अनायास उस ट्रक की ओर चली गयी। भक्तों की भीड़ में दिख ही गया लखना, बज रहे संगीत पर झूम रहा था, या नशे में, समझना मुश्किल था। घृणा से एक जलती निगाह उसने उसकी ओर फेंकी और जल्दी जल्दी आगे बढ़ने लगी। पता नहीं मेडिकल स्टोर भी खुला होगा या नहीं इसी चिंता में वो परेशान थी कि लखना भी मिल…

Continue

Added by विनय कुमार on September 16, 2016 at 3:31pm — 4 Comments

मैंने आँखों में देखी तेरी सूरत

तेरी आँखों में मैंने देखी अपनी सूरत

तब से भूला जग में जीने की चाहत ॥

तेरी भोली मूरत का मैं पुजारी हो गया

तेरा दीवाना, परवाना मस्ताना हो गया

गलियों में तेरे घूमता आवारा हो गया

मैं सभी के नजरों में बदनाम हो गया ।

तेरी आँखों में मैंने देखी अपनी, सूरत

तब से भूला जग में जीने की चाहत ॥

भूलकर मैं सुध बुध मस्ताना हो गया

पतंगे की तरह मैं तेरा दीवाना हो गया  

तेरे बिन मैं तो अब बेसहारा हो गया   

सुबह शाम तेरी राह देखता रह गया…

Continue

Added by Ram Ashery on September 16, 2016 at 3:30pm — 1 Comment

भावना के ज्वार से खुद को निकाल ले----ग़ज़ल (पंकज मिश्र)

2212 1212 2212 12
मन की फिज़ा बिगाड़ के, बरसात रोकते?
बकवास से ख़याल तो, अब मत ही पालिये

जब की सुनामी हो उठी, धड़कन के शह्र में
वाज़िब है दिल के घाट से, कुछ फासला रहे

सुनिये तो साहिबान ये, सर्कस अजीब है
सपनों में विष मिलाते हैं अपने ही काट के

मरहम लिए हक़ीम तो मिलते तमाम हैं
ये और बात उसमें नमक मिर्च डाल के

क्या रोग पाल बैठा है, पंकज इलाज़ कर
तू भावना के ज्वार से खुद को निकाल ले

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 16, 2016 at 9:54am — 6 Comments

रंग सारे हैं जहाँ हैं तितलियाँ (ग़ज़ल)

बह्र : २१२२ २१२२ २१२

 

रंग सारे हैं जहाँ हैं तितलियाँ

पर न रंगों की दुकाँ हैं तितलियाँ

 

गुनगुनाता है चमन इनके किये

फूल पत्तों की जुबाँ हैं तितलियाँ

 

पंख देखे, रंग देखे, और? बस!

आपने देखी कहाँ हैं तितलियाँ

 

दिल के बच्चे को ज़रा समझाइए

आने वाले कल की माँ हैं तितलियाँ

 

बंद कर आँखों को क्षण भर देखिए

रोशनी का कारवाँ हैं तितलियाँ

 ------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 16, 2016 at 1:59am — 12 Comments

चूल्हा

चूल्हे पर तपता

पतीला

आग की बेचैन

लपटें

माँ की कुछ बेबस

साँसे

बच्चे की खुली

किताबें

मन में आस की

तरंगे

पतिले के उबलते

पानी को

इंतज़ार है चावल

के कुछ बिन छने

दानो का

लगता नही की

शराबी

पिताजी

घर लौटेंगे

बिन झगड़ा कर

माँ से

बिन चादर

ही सो लेंगे

लगता नहीं

की दादी बेटे

की तरफ़दारी

से बच पाएँगी

दारू को भी

माँ की

वजह बतायेंगी

चूल्हा फड़फड़ाके

ख़ुद…

Continue

Added by S.S Dipu on September 16, 2016 at 12:30am — 6 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service