Added by सूबे सिंह सुजान on September 19, 2016 at 11:04pm — 12 Comments
नापाक इरादों को लेकर, श्वान घुसे फिर घाटी में।
रक्त लगा घुलने फिर देखो, केसर वाली माटी में ।।
सूनी फिर से कोख हुई है, माँ ने शावक खोये हैं।
चीख रही हैं बहिनें फिर से, बच्चे फिर से रोये हैं।१।
सिसक रही है पूरी घाटी, दिल्ली में मंथन जारी।
प्रत्युत्तर में निंदा देते, क्यूँ है इतनी लाचारी।।
अंदर से हम मरे हुए हैं, पर बाहर से जिन्दा हैं।
माफ़ करो हे भारत पुत्रों, आज बहुत शर्मिंदा हैं।२।
वो नापाक नहीं सुधरेंगे, कब ये दिल्ली…
ContinueAdded by डॉ पवन मिश्र on September 19, 2016 at 3:30pm — 7 Comments
Added by S.S Dipu on September 19, 2016 at 1:14pm — 4 Comments
ग़ज़ल
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फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फ़ाइलातुन -फाइलुन
चाहता है सिर्फ़ दिल मेरा ये मंज़र देख कर ।
फोड़ लूँ मैं अपनी आँखें उनको मुज़्तर देख कर ।
ज़िन्दगी में भी वो आजाएं जो मेरे दिल में हैं
सोचता रहता यही हूँ उनको अक्सर देख कर ।
हर किसी के पास तो होता नहीं ख़ुद का मकाँ
किस लिए हैं आप हैराँ मुझको बे घर देख कर ।
किस में हिम्मत है बढाए दोस्ती का हाथ जो
आस्तीं में आपकी पोशीदा खंज़र देख कर ।
फिर मुसीबत ना…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on September 18, 2016 at 11:53am — 10 Comments
Added by S.S Dipu on September 18, 2016 at 11:47am — 4 Comments
Added by डॉ पवन मिश्र on September 18, 2016 at 9:55am — 14 Comments
कितने कष्ट सहे हैं तूने , कैसे मुझे पढ़ाया है,
तुझे छोड़कर घर से बाहर, मैंने कदम बढाया है |
अनचाहे ही माता तुझको , मैंने आज रुलाया है
भाग्य विधाता ने भी देखो, कैसा खेल रचाया है ||
रुक जाता मैं माता क्षणमें, बस कहने की देरी थी,
जाऊँ मैं परदेस मगर माँ, ये जिद भी तो तेरी थी |
देवों को नित पूजा तूने , माला भी नित फेरी थी,
तुझको छोड़ कहीं जाऊँ मैं, ये ईच्छा कब मेरी थी ||
दमकुंगा बन कुंदन लेकिन, काम न तेरे…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on September 17, 2016 at 9:30pm — 13 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on September 17, 2016 at 8:57pm — 10 Comments
गुरु भगवान से पहले आते सब जाते बलिहारी
ज्ञान का सूरज यहाँ निकलता नहीं रहे अज्ञानी
सूरज सादृश्य वह ज्ञान बांटते कोई नहीं शानी
शिक्षा एवं संस्कार बांटते यह है अमिट कहानी
सरकारी स्कूलों में अध्यापक करते हैं मनमानी
देश की प्रगति में बाधक पर कहलाते हैं ज्ञानी
ऐसे शिक्षक को दंड मिले तो नहीं कोई हैरानी
मानवता को शर्मिंदा कर बच्चों की करते हानी
बच्चों संग करते भेद भाव शिक्षा में आनाकानी
नादानों से करते दुर्व्यवहार सुनकर होती हैरानी …
ContinueAdded by Ram Ashery on September 17, 2016 at 3:00pm — 7 Comments
अब हृदय में वेदना ही का सृजन है,
भीड़ में कहीं खो गया यह मेरा मन है ।
पतझड़ों सी हर खुशी लुटने लगी है,
सच, बहारों ने उजाड़ा फिर चमन है।
जब बहारों ने किया स्वागत हमारा,
प्रीत-पथ के पांव में कंटक चुभन है।
अब उगेंगे पेड़ जहरीली जमीं पर,
आदमी का विषधरों जैसा चलन है।
ये हवा तूफान की रफ्तार सी है,
इसमें हर मासूम के अरमां दफन हैं।
याद रहता है कहाँ, कोई किसी को,
हालात से है जूझता हर तन और मन है ।…
Added by Abha saxena Doonwi on September 17, 2016 at 10:00am — 9 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 16, 2016 at 11:30pm — 13 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 16, 2016 at 11:10pm — 12 Comments
2122. 2122. 2122. 212
इक नज़र देखा मुझे तो प्यार मुझसे कर गया,
देखकर सारे ज़माने की अदावत फिर गया,
टूटते हैं बेसबब जिस भी तरह पत्त्ती यहाँ,
वो नज़र से ख़ुद किसी के बेवजह ही गिर गया,
दर्द लेकर प्यार का ज़ख़्मी बना आशिक़ नया,
बन शराबी लड़खड़ाते उस तरफ़ से घर गया,
जानकर उसकी ख़ताओं की वजह,अहसास से,
आँख भरता हो दुखी का दिल मिरा बस भर गया,
लोग कहते थे उसे है साहसी कितना बड़ा,
प्यार के अंजाम के पहले निडर भी डर गया ।…
Added by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 16, 2016 at 11:00pm — 10 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 16, 2016 at 9:50pm — 13 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 16, 2016 at 9:30pm — No Comments
"गणपति बप्पा मोरिया" की आवाज़ अबीर गुलाल और कानफाड़ू संगीत के बरसात के बीच गूंज रही थी, सड़क को निकलने वाले जुलुस ने पूरी तरह से जाम कर दिया था। किसी तरह बचते बचाते वो निकल रही थी कि एक गेंदे का फूल आकर छाती पर लगा और नज़र अनायास उस ट्रक की ओर चली गयी। भक्तों की भीड़ में दिख ही गया लखना, बज रहे संगीत पर झूम रहा था, या नशे में, समझना मुश्किल था। घृणा से एक जलती निगाह उसने उसकी ओर फेंकी और जल्दी जल्दी आगे बढ़ने लगी। पता नहीं मेडिकल स्टोर भी खुला होगा या नहीं इसी चिंता में वो परेशान थी कि लखना भी मिल…
ContinueAdded by विनय कुमार on September 16, 2016 at 3:31pm — 4 Comments
तेरी आँखों में मैंने देखी अपनी सूरत
तब से भूला जग में जीने की चाहत ॥
तेरी भोली मूरत का मैं पुजारी हो गया
तेरा दीवाना, परवाना मस्ताना हो गया
गलियों में तेरे घूमता आवारा हो गया
मैं सभी के नजरों में बदनाम हो गया ।
तेरी आँखों में मैंने देखी अपनी, सूरत
तब से भूला जग में जीने की चाहत ॥
भूलकर मैं सुध बुध मस्ताना हो गया
पतंगे की तरह मैं तेरा दीवाना हो गया
तेरे बिन मैं तो अब बेसहारा हो गया
सुबह शाम तेरी राह देखता रह गया…
ContinueAdded by Ram Ashery on September 16, 2016 at 3:30pm — 1 Comment
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 16, 2016 at 9:54am — 6 Comments
बह्र : २१२२ २१२२ २१२
रंग सारे हैं जहाँ हैं तितलियाँ
पर न रंगों की दुकाँ हैं तितलियाँ
गुनगुनाता है चमन इनके किये
फूल पत्तों की जुबाँ हैं तितलियाँ
पंख देखे, रंग देखे, और? बस!
आपने देखी कहाँ हैं तितलियाँ
दिल के बच्चे को ज़रा समझाइए
आने वाले कल की माँ हैं तितलियाँ
बंद कर आँखों को क्षण भर देखिए
रोशनी का कारवाँ हैं तितलियाँ
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 16, 2016 at 1:59am — 12 Comments
चूल्हे पर तपता
पतीला
आग की बेचैन
लपटें
माँ की कुछ बेबस
साँसे
बच्चे की खुली
किताबें
मन में आस की
तरंगे
पतिले के उबलते
पानी को
इंतज़ार है चावल
के कुछ बिन छने
दानो का
लगता नही की
शराबी
पिताजी
घर लौटेंगे
बिन झगड़ा कर
माँ से
बिन चादर
ही सो लेंगे
लगता नहीं
की दादी बेटे
की तरफ़दारी
से बच पाएँगी
दारू को भी
माँ की
वजह बतायेंगी
चूल्हा फड़फड़ाके
ख़ुद…
Added by S.S Dipu on September 16, 2016 at 12:30am — 6 Comments
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