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नींद रहने लगी हर घडी लापता (ग़ज़ल)

212 212 212 212

ज़िन्दगी से है यूँ ज़िन्दगी लापता
जैसे हो रात से चाँदनी लापता

चाँद है चाँदनी है सितारे भी हैं
रात से अब मगर रात ही लापता

इस तरफ उस तरफ हर तरफ भीड़ है
शह्र से है मगर आदमी लापता

मुझको मुझसे मिलकर गया था जो शख्स
बदनसीबी कि है अब वही लापता

चाँद-तारों से जा मिलते हैं हम तभी
खुद से हो जाते हैं जब कभी लापता

मेरी आँखों को इक ख़्वाब क्या मिल गया
नींद रहने लगी हर घड़ी लापता

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 6, 2016 at 10:08pm

वाह | बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है | हार्दिक बधाई आदरणीय |

Comment by जयनित कुमार मेहता on September 26, 2016 at 4:32pm

आ. सुरेश जी, आ. शिज्जु जी, आ. प्राची जी, आ. गिरिराज भंडारी जी, आ. रामबली गुप्ता जी..आप सब का तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। अपना स्नेह बनाएं रखें। सादर!

Comment by जयनित कुमार मेहता on September 26, 2016 at 4:29pm

आ समर कबीर जी, आ रवि शुक्ला जी, आपलोगों ने मेरी रचना पर उपस्थित होकर हौसला आफजाई की इसके लिए आपलोगों का हार्दिक धन्यवादी हूँ।

चौथे शेर के ऊला में दरअस्ल "मिलाकर" लफ्ज़ ग़लत टाइप हो गया है इसिलए लय बाधित हो रही है। सादर!

Comment by रामबली गुप्ता on September 22, 2016 at 5:01am
क्या बात है आद० जयनित भाई जी। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है दिल से बधाई लीजिये।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2016 at 6:41pm

आ. जयनित भाई , अच्छी गज़ल हुई  है , हार्दिक बधाइयाँ । चौथे शेर का दूसरा रुक्न देखें फिर से ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 21, 2016 at 4:46pm

बहुत मीठी ग़ज़ल 

सभी अशआर पसंद आये 

हार्दिक बधाई आ० जयनित जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2016 at 2:53pm

बहुत बहुत बधाई जयनित जी अच्छे अशआर हुए हैं चौथे शेर की तरफ आ.रवि शुक्ला जी तथा जनाब समर कबीर साहब बता ही चुके है

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 20, 2016 at 11:47am
चाँद है चाँदनी है सितारे भी हैं
रात से अब मगर रात ही लापता।
वाह्ह्ह आदरणीय जयनीत जी दिल को छू गई आपकी रचना। बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by Ravi Shukla on September 19, 2016 at 9:57pm
आदरणीय जयनित जी बढ़िया अशआर कहे है आपने बधाई हाजिर है आदरणीय समर साहब की बात पर ध्यान दीजिएगा । कुछ प्रिंट होने से भी रह् गया है जिससे लय् नहीं बन रही । सादर
Comment by Samar kabeer on September 19, 2016 at 4:47pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
चौथे शैर का ऊला मिसरा लय में नहीं,देखियेगा ।

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