2122. 2122. 2122. 212
 
 इक नज़र देखा मुझे तो प्यार मुझसे कर गया,
 देखकर सारे ज़माने की अदावत फिर गया,
 
 टूटते हैं बेसबब जिस भी तरह पत्त्ती यहाँ,
 वो नज़र से ख़ुद किसी के बेवजह ही गिर गया,
 
 दर्द लेकर प्यार का ज़ख़्मी बना आशिक़ नया,
 बन शराबी लड़खड़ाते उस तरफ़ से घर गया,
 
 जानकर उसकी ख़ताओं की वजह,अहसास से,
 आँख भरता हो दुखी का दिल मिरा बस भर गया,
 
 लोग कहते थे उसे है साहसी कितना बड़ा,
 प्यार के अंजाम के पहले निडर भी डर गया ।
 
 
 -आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला'
 -: मौलिक एवं अप्रकाशित :-
Comment
आ. श्री गिरिराज भंडारी जी आभार और शुक्रिया आपका!!! आप सभी अग्रजों ने जो भी जो कहा वो आगे से ध्यान में रहेगा। सादर !!!
आ.श्री सुरेश जी आभार !!!! शुक्रिया!!! मेरी इ स रचना को पढ़ने के लिए आभार!!!
आदरणीय श्री अशोक कुमार जी धन्यवाद!!! हौसला अफज़ाई के लिए!!! मैं समझाइश का अनुसरण ज़रूर करूंगा!!! सादर!!!!
आदरणीय अग्रज श्री समर कबीर जी...तहेदिल से आपका मैं आभारी हूँ... आपने मुझे मेरी ग़लती बताई जिसका मैं आगे ज़रूर ध्यान रखूँगा!!! OBO परिवार में शामिल होना सफ़ल हो रहा है... ये सब बारीकियाँ मुझे सीखने को मिल रहे है!!!
 आप सभी को कोटिशः धन्यवाद!!!
आदरणीय आशीष भाई , गज़ल अच्छी कही , हार्दिक बधाइयाँ । मतले मे काफिया का निर्धारण जो हुआ सभी शेर मे निभा नही पाये हैं । मै आदरणीय समर भाई की बातों से सहमत हूँ ।
आदरणीय आशीष जी सादर. सुंदर प्रयास हुआ है गजल पर. काफिये पर आदरणीय समर साहब ने कहा ही है. सादर.
कोटिशः धन्यवाद आ. श्याम नारायण वर्मा जी हौसला अफ़ज़ाई के लिए !!!
| बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई! | 
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