नये सरकारी आदेश की प्रति बाबूराम के कार्यालय में पहुँच गयी थी. इस आदेश के अनुसार किसी भी विकलांग को लूला-लंगड़ा, भैंगा-काणा या गूंगा-बहरा आदि कहना दंडनीय अपराध घोषित कर दिया गया था. सरकार ने यह व्यवस्था दी है कि यदि आवश्यक हुआ तो विकलांग के लिए दिव्यांग शब्द का प्रयोग किया जाए. बड़े साहब ने मीटिंग बुला कर उस सरकारी आदेश को न केवल पढ़कर सुनाया था बल्कि सभी को सख्ती से इसे पालन करने की हिदायत भी दी थी. आज कार्यालय जाते समय बाबूराम यह सोचकर…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 13, 2016 at 3:00pm — 14 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 12, 2016 at 10:00pm — 5 Comments
बहरे हज़ज़ मुसम्मन मक्बुज.....
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1212 1212 1212 1212
सरे निगाह शाम से ये क्या नया ठहर गया
ये कौन सीं हैं मंजिलें ये क्या गज़ब है आरजू
जिसे सँभाल कर रखा वही समा बिखर गया
अभी है वक़्त बेवफा अभी हवा भी तेज है
अभी यहीं जो साथ था वो हमनवा किधर गया
ये वादियाँ ये बस्तियाँ ये महफ़िलें ये रहगुजर
हज़ार गम गले पड़े…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 12, 2016 at 9:53pm — 8 Comments
रग्घू के यहाँ तेरहवीं का भोज खाने के बाद गांव के कुछ बुजुर्ग वहीँ दरवाजे पर बने कउड़ा पर हाथ सेंकने बैठ गए| जाड़े का दिन था और ठंढ भी कुछ ज्यादा थी| कुछ लोग खाने के बारे में बात करने लगे, किसी को अच्छा लगा था तो किसी को साधारण| जोखू चच्चा को हमेशा से ये ब्रम्ह भोज खराब लगता था और उन्होंने कई बार इसके विरोध में बोला भी था लेकिन किसी ने उसपर ध्यान नहीँ दिया| रग्घू की माली हालात अच्छी नहीँ थी, उसपर पिता की बिमारी ने उसे और कंगाल कर दिया था| अब ये भोज का खर्च, आज जोखू चच्चा ने सोच लिया कि बात…
ContinueAdded by विनय कुमार on October 12, 2016 at 8:30pm — 6 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 12, 2016 at 7:42pm — 3 Comments
हार ...
ये इश्क-ओ-मुहब्बत के
बड़े अज़ब नज़ारे हैं
उनके दिए दर्दों से
हमने
तन्हा लम्हे सँवारे हैं
लोग
डरते होंगे ज़ख्मों से
मगर
सच कहते हैं
ये ज़ख्म
हमें बहुत प्यारे हैं
रिस्ते ज़ख्मों की
हर टीस पे
हमने सनम पुकारे हैं
अंगार बन के उठती हैं
यादें उनकी
तन्हाई में
कैसे बताएं ज़माने को
हम क्या जीते
क्या हारे हैं
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 12, 2016 at 1:13pm — 6 Comments
पथ पे शूल बहुत बिखरे है
पग को रखना सम्हल - सम्हल
जीवन में गम बहुत पड़े है
खिल के हंसना मचल -मचल
अब रात बहुत ही काली है
संघर्षो की इक थाली है
कठिन नहीं कुछ भी जग में,
नभ तक जाना सरल - सरल
हे युवा आज मत घबराओ
कुछ देश में एसा कर जाओ
तेरे अतुलित बल से थल पे,
खिल जायेगा कमल - कमल
……………………………
मौलिक तथा अप्रकासित
कवि हिमांशु पाण्डेय
Added by Himanshu pandey on October 12, 2016 at 12:30pm — 1 Comment
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 11, 2016 at 9:26pm — 5 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 11, 2016 at 8:30pm — 11 Comments
हम सब कठपुतलें हैं,
करते परंपरागत दहन,
रावण के पुतलों का,
मनाते पर्व विजय का,
पर छुपे हुए रावण,
हर जगह फैलें हैं,
ऊपर से उल्लासित हम,
भीतर से त्रस्त और खोखले हैं,
आतंक,दुराचार,विभीषिकाओं के,
भीषण दौर इस विश्व में,
सभी धर्मों, सभ्यताओं,
और समाजों ने झेले हैं,
छुपी हुई दुराचारी,
अहंकारी मनोवृत्ति के,
आतंक और भ्रष्टाचार के,
युद्ध और विनाश के,
अशिक्षा और दरिद्रता के,
इन रावणों का दहन करने,
हे राम…
Added by Arpana Sharma on October 11, 2016 at 10:30am — 15 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 11, 2016 at 4:48am — 7 Comments
वह अलग थी अब कहानी और है
आज कल की निगहबानी और है
है जगह तो ठीक वैसी ही मगर
बह रही जो पवन पानी और है
वीरता की चरम सीमा है यहाँ
ईश की भी महरबानी और है
चढ़ रहे मंजिल…
ContinueAdded by PRAMOD SRIVASTAVA on October 11, 2016 at 12:00am — 6 Comments
मेरा खूने-क़ल्ब कबतक यूँ ही बार-बार होगा
कभी वो घड़ी भी आए जो तुझे भी प्यार होगा
दिलेसरनिगूं में कब तक पशेमानियाँ रहेंगी
तेरी हाँ का मुझको कब तक यूँ ही इंतेज़ार होगा
मेरी आशिक़ी पे कब तक यूँ ही तुहमतें लगेंगी
तेरे हाथ इश्क़ कब तक यूँ ही दाग़दार होगा
करूँ भी तो मैं करूँ क्या कोई दाफ़िया नहीं है
तेरा ज़िक्र जब भी होगा दिल बेक़रार होगा
पसेशाम अपने घर को जो मैं जाऊं फिरसे वापिस
वही इन्दिहाम होगा वही…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 10, 2016 at 10:08pm — 4 Comments
विष - एक क्षणिका :
मानव
तुम तो
सभ्य हो
फिर
विषधर का विष
कहां से
पाया तुमने
क्या
सभ्य वेश में
विषधर भी
रहने लगे
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 10, 2016 at 8:59pm — 8 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 10, 2016 at 7:51pm — 10 Comments
Added by Manan Kumar singh on October 10, 2016 at 7:30pm — 9 Comments
सब लोग तैयार हो रहे थे, पूरे घर में गहमागहमी मची हुई थी| बच्चों में भी बहुत उत्साह था, आज छुट्टी तो थी ही, साथ में दुर्गा पंडाल देखना और मेले का आनंद भी लेना था| रजनी ने भी अपनी चुनरी वाली साड़ी पहनी और शीशे के सामने खड़ी होकर अपने को निहारने लगी|
"माँ जल्दी चलो, पूजा को देर हो जाएगी", बेटे ने आवाज़ लगायी जो बाहर कार निकाल रहा था|
"आ रही हूँ, अरे अपने पापा को बोलो जल्दी निकलने के लिए", साड़ी सँभालते हुए रजनी कमरे से बाहर निकली|
"अच्छा किनारे वाला कमरा भी भिड़का देना, आने में तो देर…
Added by विनय कुमार on October 10, 2016 at 3:23pm — 8 Comments
221 2121 1221 212*
अनमोल पल थे हाथ से सारे फिसल गये
अपनों ने मुंह को फेर लिया दिन बदल गये।।
कुछ ख्वाब छूटे कुछ हुए पूरे, हुआ सफर
यादो के साथ साल महीने निकल गये।।
शरमा के मुस्कुरा के जो उनकी नजर झुकी
मदहोश हुस्न ने किया बस दिल मचल गये।।
बचपन के मस्त दिन भी हुआ करते थे कभी
बस्तो के बोझ आज वो बचपन कुचल गये।।
ओढे लिबास सादगी का भ्रष्ट तंत्र में
नेता गरीब के भी निवाले निगल गये।।
करते है बेजुबान को वो क़त्ल…
Added by नाथ सोनांचली on October 10, 2016 at 5:30am — 22 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 9, 2016 at 10:00pm — 18 Comments
दोहा गीत
आज़ादी की राह में ,शत शत वो बलिदान|
याद कहो कितना रहा ,बोलो हिन्दुस्तान||
सावरकर की यातना,देखी थी प्रत्यक्ष|
अंडमान की जेल में,काँपे पीपल वृक्ष||
संग्रामी आक्रोश में ,कितने बुझे चिराग|
कितनी टूटी चूड़ियाँ,कितने मिटे सुहाग||
कितनी दी कुर्बानियाँ,तब पाया सम्मान|
याद कहो कितना रहा ,बोलो हिन्दुस्तान||
रहे सदा जाँ बाज वो,हर सुख से महरूम|
झूल गये जो जान पर,उन फंदों को चूम||
नेहरू गाँधी…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 9, 2016 at 8:44pm — 11 Comments
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