For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल - अनमोल पल थे हाथ से सारे फिसल गये

221 2121 1221 212*

अनमोल पल थे हाथ से सारे फिसल गये
अपनों ने मुंह को फेर लिया दिन बदल गये।।

कुछ ख्वाब छूटे कुछ हुए पूरे, हुआ सफर
यादो के साथ साल महीने निकल गये।।

शरमा के मुस्कुरा के जो उनकी नजर झुकी
मदहोश हुस्न ने किया बस दिल मचल गये।।

बचपन के मस्त दिन भी हुआ करते थे कभी
बस्तो के बोझ आज वो बचपन कुचल गये।।

ओढे लिबास सादगी का भ्रष्ट तंत्र में
नेता गरीब के भी निवाले निगल गये।।

करते है बेजुबान को वो क़त्ल इस तरह
वहशत को देख कर ये मनाज़िर दहल गये।।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1398

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on May 12, 2020 at 9:26am
भाई सुरेंद्र नाथ सिंह'कुशक्षत्रप'
सादर प्रणाम
अपनी ग़ज़ल पर हौसला अफजाई के लिए शब्दों के लिए आपका बेहद शुक्रगुज़ार हूँ. आशा करता हूँ कि भविष्य में भी आपका यही स्नेह और मार्गदर्शन मुझे निरंतर लिखते रहने की उर्जा देगा.
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 22, 2016 at 11:41am
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आदरणीय । हार्दिक बधाई ।
Comment by नाथ सोनांचली on November 21, 2016 at 8:22pm
आदरणीय बासुदेव अग्रवाल जी सादर नमन और ह्रदय से आभार
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on November 21, 2016 at 7:42pm
आदरणीय सुरेन्द्र नाथजी आपकी ग़ज़ल माह की सर्वश्रेष्ठ रचना चुनी गई इसके लिए मेरी हृदय से बधाई स्वीकार करें। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है।
ओढे लिबास सादगी का भ्रष्ट तंत्र में
नेता गरीब के भी निवाले निगल गये।।
भई वाह!!!
Comment by नाथ सोनांचली on November 21, 2016 at 12:21pm
आदरणीय रवि सर आपका आभार, और सादर अभिवादन संग नमन
Comment by नाथ सोनांचली on November 21, 2016 at 12:20pm
आदरणीय अशोक रक्ताले जी, आपका आभार.. आपकी बात पर गौर करूँगा
Comment by Ravi Shukla on November 21, 2016 at 11:58am

आदरणीय सुरेन्‍द्र जी आपकी इस गजल के लिये बहुत बहुत बधाई अच्‍छे अश्‍आर हुऐ हैै साथ ही गजल को माह की सर्वश्रेष्‍ठ रचना चुना जाना सुखद समाचार है इस‍के लिये आपको बहुत बहुत मुबारक बाद

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 21, 2016 at 8:31am

बचपन के मस्त दिन भी हुआ करते थे कभी
बस्तो के बोझ आज वो बचपन कुचल गये।।..........वाह ! सही कहा है.

ओढे लिबास सादगी का भ्रष्ट तंत्र में
नेता गरीब के भी निवाले निगल गये।।..........क्या बात है. बहुत खूब.

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी सादर बहुत खूबसूरत गजल हुई है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. फिरभी मुझे मतले में "अपनों ने मुँह को फेर लिया" में 'को' लिखा जाना उचित नहीं लगा.सादर.

Comment by रामबली गुप्ता on October 20, 2016 at 1:05pm
वाह सुरेन्द्र जी बहुत सुंदर ग़ज़ल कही आपने दिल से बधाई लीजिये।
Comment by रामबली गुप्ता on October 20, 2016 at 1:05pm
वाह सुरेन्द्र जी बहुत सुंदर ग़ज़ल कही आपने दिल से बधाई लीजिये।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service