For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सब लोग तैयार हो रहे थे, पूरे घर में गहमागहमी मची हुई थी| बच्चों में भी बहुत उत्साह था, आज छुट्टी तो थी ही, साथ में दुर्गा पंडाल देखना और मेले का आनंद भी लेना था| रजनी ने भी अपनी चुनरी वाली साड़ी पहनी और शीशे के सामने खड़ी होकर अपने को निहारने लगी|
"माँ जल्दी चलो, पूजा को देर हो जाएगी", बेटे ने आवाज़ लगायी जो बाहर कार निकाल रहा था|
"आ रही हूँ, अरे अपने पापा को बोलो जल्दी निकलने के लिए", साड़ी सँभालते हुए रजनी कमरे से बाहर निकली|
"अच्छा किनारे वाला कमरा भी भिड़का देना, आने में तो देर हो जाएगी", रजनी ने आवाज़ लगायी|
"तुम लोग जाओ, मेरा सर दर्द कर रहा है| वैसे भी मुझे कुछ खास दिलचस्पी नहीं है इन पंडालों में", रवि की आवाज़ से रजनी चौंकी|
"पिछले साल तक तो बड़े खुश होकर जाते थे, इस बार क्या हो गया", रजनी ने कहा|
"बस यूँ ही, सर भारी है, तुम लोग जाओ और आराम से लौटना", रवि ने अंदर से ही जवाब दिया|
"चलो मम्मी, देर हो जाएगी, पापा का मन नहीं है तो जाने दो उनको", बेटे शोर करने लगे| रजनी उनके साथ निकल गयी|
रवि ने दरवाजा बंद किया और किनारे वाले कमरे में आ गया| माँ बिस्तर पर पड़ी हुई दरवाजे की ओर ही देख रही थी| छह महीने पहले आये लकवे के अटैक ने उसकी जबान और चलने फिरने की ताक़त छीन ली थी| रवि को देखते ही उसकी आँख में चमक आ गयी और उसने अपने हाथ उठाने की असफल कोशिश की|
"तुझे छोड़कर किसी और देवी के दर्शन करने कैसे जा सकता हूँ माँ", कहते हुए रवि उसके पास बैठ गया| कमरा एकदम से अगरबत्तियों की सुगंध से भर गया|
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 512

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on October 14, 2016 at 8:17pm

बहुत बहुत आभार आ अलका चंगा जी

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 14, 2016 at 4:23pm

बहुत ही मार्मिक लघुकथा ।इस माँ की पूजा से ही तो वो माँ भी प्रसन्न होंगी । बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आ.विनय जी

Comment by विनय कुमार on October 12, 2016 at 7:58pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ नीता कसारजी 

Comment by Nita Kasar on October 12, 2016 at 1:21pm
मन की पीर मन ही जानें ।माता पिता तो भगवान होते है जो बच्चे का वजूद बनाते है फिर संतान एेसी तो होना ही चाहिये बधाई आपको आद०विनय सिंह जी ।
Comment by विनय कुमार on October 11, 2016 at 1:00pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ समर कबीर साहब  

Comment by विनय कुमार on October 11, 2016 at 1:00pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ अर्पणा शर्मा जी, माँ को छोड़कर अन्य देवी की पूजा कहाँ तक सही है|   

Comment by Samar kabeer on October 10, 2016 at 5:26pm
जनाब विनय कुमार सिंह जी आदाब,बहुत ही मार्मिक और सन्देश देती लघुकथा के लिये दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Arpana Sharma on October 10, 2016 at 5:19pm
बहुत ही मार्मिक लघुकथा । अपनी माँ के पास होना, उनका ध्यान रखना ही सबसे बड़ी पूजा है।
कम शब्दों में बहुत बड़ी सीख । बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आ.विनय जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service