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गजल- लिखा रहे अपनी कहानी और है

वह अलग थी अब कहानी और है 

आज कल की निगहबानी और है 

है जगह तो ठीक वैसी ही मगर 

बह रही जो पवन पानी और है 

वीरता की चरम सीमा है यहाँ

ईश की भी महरबानी और है 

चढ़ रहे मंजिल विकासों की कहीं

शेष नक्से पर निशानी और है 

वर्तनी आती नही इनके समझ 

लिख रहे  अपनी कहानी  और है 

कहने वाले ने कहा कुछ इस तरह 

है बहुत कुछ, बदजुबानी और है 

प्रमोद  श्रीवास्तव 

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by PRAMOD SRIVASTAVA on October 15, 2016 at 4:47pm

आदरणीय रवि शुक्ला जी मेरी प्रस्तुति  की सराहना के लिए आभार ।बह्र न लिखने के लिए  अमा प्रार्थना  के साथ  बह्र प्रस्तुत है -

-फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन  

(2122    2122    212)

Comment by Ravi Shukla on October 15, 2016 at 1:50pm
आदरणीय प्रमोद जी अच्छी ग़ज़ल हुई है दाद हाज़िर है । बह्र लिखना मंच का अनुशासन है लिख दिया करे समझने में आसानी रहती है ।
Comment by PRAMOD SRIVASTAVA on October 12, 2016 at 11:55pm

आभार क सङे कबूल बा राउर दाद।

Comment by Shyam Narain Verma on October 12, 2016 at 1:23pm
बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं.
Comment by PRAMOD SRIVASTAVA on October 12, 2016 at 12:03am

आभार  आपका का आदरणीय 'कल्याण 'जी।

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 11, 2016 at 11:12am
आदरणीय प्रमोद जी खूबसूरत प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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