वह माटी थी पर नहीं थी वह ...जिसे कुम्हार ने माजा चाक पे चढ़ाया, गढा, चमकाया बाजार में बिठाया ... वह तो किस्मत की धनी थी पर वह ? वह तो सिर्फ उसके बगिया की माटी थी उसके पैरों तले गाहे बगाहे आ जाती ... कुचली जाती रही .. टूटती रही, खोदी जाती रही, तोडी जाती रही ..... और बदले में रंगबिरंगे फूलों से फलों से अपनी हरियाली को सजा कर बगिया को महकाती रही .... यही तो था उन् दोनों के अपने अपने हिस्से का आसमान .. लेकिन उन् दोनों के लिए एक आसमान से इतर एक दूसरा आसमान किसी बंद दरवाजे से बाहर भीतर…
ContinueAdded by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on October 4, 2013 at 9:30pm — 17 Comments
सफ़र
ओ बी ओ के संग मेरा, सफ़र पुराना भाई,
जानते नहीं जो मुझे, जान लो क़रीब से।
धन औ दौलत से भी, बड़ी चीज़ पाई मैंने,
शारदे की कृपा मिली, मुझको नसीब से।
लेखन में रुचि मेरी, लेखन ही जान मेरी,…
ContinueAdded by Sushil.Joshi on October 4, 2013 at 9:14pm — 21 Comments
कलाम सबकी जुबाँ पर है लाकलाम तेरा।
सलाम करता है झुक कर तुझे गुलाम तेरा।
वो पाक़ साफ है इल्जाम न लगा उस पर,
करेगा काम वो वैसा ही जैसा दाम तेरा।
किसी को ताज़ किसी को दिये फटे कपड़े,
बड़े गज़ब का है दुनिया मे इन्तजाम तेरा।
जो अपने आप को पहुँचा हुआ समझते हैं,
समझ में उनके भी आता नहीं है काम तेरा।
तेरे ही नाम से होते हैं सारे काम मेरे,
मैं मरते वक्त तक लेता रहूँगा नाम तेरा।
मौलिक अप्रकाशित…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on October 4, 2013 at 8:00pm — 19 Comments
हम क्या हैं
सिर्फ पैसा बनाने की मशीन भर न !
इसके लिए पांच बजे उठ कर
करने लगते हैं जतन
चाहे लगे न मन
थका बदन
ऐंठ-ऊँठ कर करते तैयार
खाके रोटियाँ चार
निकल पड़ते टिफिन बॉक्स में कैद होकर
पराठों की तरह बासी होने की प्रक्रिया में
सूरज की उठान की ऊर्जा
कर देते न्योछावर नौकरी को
और शाम के तेज-हीन सूर्य से ढले-ढले
लौटते जब काम से
तो पास रहती थकावट, चिडचिडाहट,
उदासी और मायूसी की परछाइयां
बैठ जातीं कागज़ के…
Added by anwar suhail on October 4, 2013 at 8:00pm — 9 Comments
Added by डॉ. अनुराग सैनी on October 4, 2013 at 6:03pm — 5 Comments
अपनी निगाहों से मेरा हर अक्श मिटाने चला है वो
दिल से अपने अब मेरा हर नक्श मिटाने चला है वो
मेरी महफ़िल की रंगीनियत कम होने लगी शायद
इसलिए साथ गैरों के महफिलें सजाने चला है वो
उस शख्स की शख्सियत भी क्या होगी यारो
मोहब्बत से भरा एक शख्स मिटाने चला है वो
जिसने खुद ही जलाई थी मोहब्बत की शमा कभी
उस शमा की आखिरी लौ भी अब बुझाने चला है वो
और जिनकी रग-रग मैं हैं धोखे और फरेब भरे
साथ उनके अब यारियों…
ContinueAdded by Sachin Dev on October 4, 2013 at 5:30pm — 28 Comments
बह्रे रमल मुसम्मन सालिम(2122 2122 2122 2122)
संग तेरे मैंने कोई पल गुज़ारा ही न होता
ऐ खुशी तूने अगर मुझको पुकारा ही न होता
तूने ऐ जज़्बा-ए-दिल मुझको सँवारा ही न होता
आइने में लफ़्ज़ के तुझको उतारा ही न होता
रह गया था मैं कहीं खो कर जहां की वुसअतों मे वुसअत= व्यापकता
गर मुहब्बत की न होती तो सहारा ही न होता
रात की जल्वागरी होती अधूरी रौनकें भी
चाँद की जो बज़्म…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on October 4, 2013 at 4:00pm — 31 Comments
माँ !!
नेह ममता
लाड़ दुलार
अविस्मरण रूप
स्नेह की गागर
छलकाती ।
आँखों मे असंख्य
अबूझ स्वप्न
स्नेह सिक्त
जल धारा बरसाती ।
होती ऐसी माँ !!!..................अन्नपूर्णा बाजपेई
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by annapurna bajpai on October 4, 2013 at 2:00pm — 24 Comments
शान्त *चित्ति के फैसले, करें लोक कल्यान |
चिदानन्द संदोह से, होय आत्म-उत्थान |
होय आत्म-उत्थान, स्वर्ग धरती पर उतरे |
लेकिन चित्त अशान्त, सदा ही काया कुतरे |
चित्ति करे जो शांत, फैसले नहीं *कित्ति के |
करते नहीं अनर्थ, फैसले शान्त चित्ति के ||
चित्ति = बुद्धि
कित्ति = कीर्ति / यश
अप्रकाशित / मौलिक
Added by रविकर on October 4, 2013 at 11:00am — 11 Comments
राजकुमार तोते को दबोच लाया और सबके सामने उसकी गर्दन मरोड़ दी... “तोते के साथ राक्षस भी मर गया” इस विश्वास के साथ प्रजा जय जयकार करती हुई सहर्ष अपने अपने कामों में लग गई।
उधर दरबार में ठहाकों का दौर तारीं था... हंसी के बीच एक कद्दावर, आत्मविश्वास भरी गंभीर आवाज़ गूंजी... “युवराज! लोगों को पता ही नहीं चल पाया कि हमने अपनी ‘जान’ तोते में से निकाल कर अन्यत्र छुपा दी है... प्रजा की प्रतिक्रिया से प्रतीत होता है कि आपकी युक्ति काम आ गई... राक्षस के मारे जाने के उत्साह और उत्सव के बीच…
Added by Sanjay Mishra 'Habib' on October 4, 2013 at 9:36am — 22 Comments
Added by Kapish Chandra Shrivastava on October 4, 2013 at 9:30am — 24 Comments
2122 1212 22
जुल्म को देख रहगुज़र चुप है
गाँव सारा नगर नगर चुप है
खामुशी चुप ज़ुबां ज़ुबां है चुप
दश्त चुप है शज़र शज़र चुप है
दोस्त चुप चाप दुश्मनी भी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 4, 2013 at 8:00am — 39 Comments
1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2
चढा दी हसरतें सूली किसी ईनाम से पहले//
नमन है उन शहीदों को सदा आवाम से पहले//
बने आजाद परवाने कफ़न को सिर पे बांधा था
वतन पर जान देते थे किसी अंजाम से पहले //
भुला सकते न कुर्बानी वतन पर मर मिटे हैं जो
ज़माना सर झुकाएगा खुदा के नाम से पहले//
शहादत व्यर्थ उनकी यूँ नहीं अब तुम करा देना
नसीहत मानना उनकी किसी कुहराम से पहले//
वफ़ा कैसे निभानी सीखलो अपने वतन से तुम …
Added by Sarita Bhatia on October 3, 2013 at 8:00pm — 24 Comments
उठते बैठते बस एक ही ख्याल हुआ
क्यूँ जीना भी इस कदर मुहाल हुआ
लुटी आबरू तो चुप हैं सफ़ेद-पोश
ख़ामो ख्वाह की बातों पर बवाल हुआ
जलाता है रावण खुद अपना ही बुत
तमाशा ये देखो हर साल हुआ
जुबां…
ContinueAdded by Praveen Verma 'ViswaS' on October 3, 2013 at 6:43pm — 22 Comments
स्वच्छ गगन मे
सुवर्ण सी धूप
भोर की किरण ने
आ जगाया ।
अर्ध उन्मीलित नेत्र
उनींदा मानस
आलस्य पूरित
यह तन मन
पंछियों ने राग सुनाया ।
कामिनी सी कमनीय
सौंदर्य की प्रतिमा
नैसर्गिक छटा
फैली चहुं ओर
मुसकाते सुमन
झूमते तरुवर
नव जोश जगाया ।
हुआ प्रफुल्लित ये मन
तोड़ कर मंथर बंधन
मानो रोली कुमकुम
आ छिड़काया ।............. अन्नपूर्णा बाजपेई
अप्रकाशित…
ContinueAdded by annapurna bajpai on October 3, 2013 at 4:59pm — 30 Comments
सेमीनार में “कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न” विषय पर अपना भाषण देकर जब प्रिंसीपल साहिब स्टेज से उतरे तो सभी ओर तालियों की गड़गड़ाहट व वाहवाही गूंज रही थी, सभी लोग बारी-बारी प्रिंसीपल साहिब को बधाईयां दे रहे थे। इसी क्रम में जब एक जूनियर अध्यापिका ने प्रिंसीपल साहिब को बधाई दी तो उन्हे लगा जैसे किसी ने सरे-बाजार उन्हे नंगा कर दिया हो।
- मौलिक व अप्रकाशित
Added by Ravi Prabhakar on October 3, 2013 at 4:00pm — 34 Comments
Added by Poonam Shukla on October 3, 2013 at 3:30pm — 16 Comments
"देखो सुशीला ये रूल में नहीं है मुझे अच्छी तरह पता है कि तुम दुबारा शादी कर चुकी हो फिर कैसे अपने मरहूम पति की पेंशन ले सकती हो मैं अभी नया आया हूँ ,जैसे चलता आया है सब वैसे ही नहीं चलेगा; मैं इस मामले में बहुत सख्त हूँ" बड़े बाबू की फटकार सुनते ही सुशीला की आँखे भर आई हाथ जोड़ कर बोली "साहब मेरे दो बच्चों पर रहम खाइए आप किसी को कुछ मत कहिये बड़े साहब को पता चलेगा तो" !!! और वो फफक कर रो पड़ी।…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 3, 2013 at 11:00am — 39 Comments
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हुए रुखसत दिले -नादां की ही कुछ सिसकियाँ भी थी
खयालों में वही पहली नज़र की मस्तियाँ भी थीं
लहर तडपी थी हर इक याद पे मचला भी था साहिल
ज़माने की वही रंजिश में डूबी किश्तियाँ भी थीं
बिखरती वो घड़ी बीती न जाने कितनी मुश्किल से
दबी ही थी जो सीने में क़सक की बिजलियाँ भी थीं
कभी कहते थे वो भी उम्र भर यूँ साथ चलने को
चलीं हैं साथ जो अब तक वही गमगीनियाँ भी थीं
भुलाकर यूँ न जी पायेंगे गुजरे…
Added by sanju shabdita on October 3, 2013 at 10:26am — 23 Comments
कल राज्य में आम चुनाव के परिणाम का दिन था लोटन दास 'चम्मच छाप' पार्टी का पक्का समर्थक था, 'चम्मच छाप" बिल्ला लगाए, झंडा और गुलाल लिए वो और उसके साथी मतगणना स्थल पर सुबह से मौजूद थें, उसकी पार्टी को शुरूआती बढ़त मिलने लगी, लोटन दास और उसके साथी पूरे उमंग में नारे लगा-लगा कर गुलाल उड़ाते हुए नाच रहे थे ।
किन्तु यह क्या ! दोपहर बाद 'थाली छाप' पार्टी ने बढ़त बना ली और अंततः…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 3, 2013 at 9:00am — 30 Comments
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