For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,139)

गीत (दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ)

गीत (दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ)

दूरियाँ जो ये बढ़ सी रही दरमियाँ, कोशिशें करके इनको घटा दीजिए,

एक कदम मैं चलूँ, एक कदम तुम चलो, धूल नफरत की दिल से हटा दीजिए।

 

कहना चाहते हो गर तुम तो खुल के कहो,

वरना रिश्ता…

Continue

Added by Sushil.Joshi on October 6, 2013 at 2:30am — 34 Comments

बागबां [लघुकथा]

साथ वाले सहगल साहिब यश जी से बोले घई जी के पिता हस्पताल में हैं यश जी ने कहा कल तो मेरे पास बैठे थे बेचारे परेशान थे ,पूछ रहे थे मुझे यहाँ आए हुए कितने दिन हो गए मैंने कहा मालूम नहीं उन्होंने फिर जिद्द करके पूछा फिर भी अंदाजा मुझे आए हुए कितना समय हो गया है ,मैंने कहा लगभग एक महीना हुआ होगा तो बोले फिर वो [छोटा बेटा] मुझे लेने क्यों आ रहा है? अभी दो महीने तो नहीं हुए हैं यह क्यों भेज रहे हैं मुझे इसी उधेड़बुन में शायद वो सुबह तक उठ ही नहीं पाए ,उनके एक हिस्से ने काम करना बंद कर दिया था और…

Continue

Added by Sarita Bhatia on October 5, 2013 at 11:30pm — 20 Comments

चले आओ जहां हो तुम

दर्द रह-रह के बढ़ता है

और दिल डूबा जाता है

नब्ज़ थम-थम के चलती है

दिल ज़ोरों से धड़कता है

बीमारी बढती जाती है

फ़िक्र है खाए जाती है

सलाहें खूब मिलती हैं

दवाएं बदलती जाती हैं

दुआएं काम नही आतीं

करें क्या ऐसे में हमदम

कहाँ से चारागर पायें

मत्था किस दर पर टेंकें

कहाँ से तावीजें लायें

तुम्हे मालुम है फिर भी

छुपा कर रक्खे हो नुस्खे

न लो अब और इम्तेहाँ

चले आओ जहां हो तुम

तुम्हारे आते ही हमदम …

Continue

Added by anwar suhail on October 5, 2013 at 9:30pm — 12 Comments

आया सावन का मस्त महीना---

ये कैसी है चम् चम् चम् चम् ,

क्यों  बहक रहा है मन,

टूटकर घटा से बरसे पानी,

हो गयी है रुत मस्तानी,

चारो और छायी हरियाली ,

जंगल मनाने लगा दिवाली ,

ऐसे बहे ठंडी बयार,

सपनो से हो जाए प्यार,

तन से टपके सुगन्धित  पसीना ,

लो आया सावन का मस्त महीना !

तन की बजने लगी सितार ,

आँखें देखे सपने हजार,

अपने प्रियतम का करे इंतज़ार ,

जैसे कोई दुल्हन मस्तानी ,

कैसे खुद को काबू कर पाए ,

कैसे अपने दिल…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on October 5, 2013 at 9:17pm — 13 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
हादिसों से जिन्दगी ऐसे गुजरती जा रही हैं (ग़ज़ल --राज )

2122     2122    2122   2122  

बह्र----रमल मुसम्मन सालिम 

.

हादिसों से आज जिंदगियाँ गुजरती जा रही हैं

शबनमी बूंदे जों ख़ारों से फिसलती जा रही हैं  

 

लूट…

Continue

Added by rajesh kumari on October 5, 2013 at 8:30pm — 40 Comments

एक ग़ज़ल - चाँद सूरज गुलाब रक्खा है !!

एक ग़ज़ल - चाँद सूरज गुलाब रक्खा है !!

(२१२२ १२१२ २२/११२)

चाँद सूरज गुलाब रक्खा है |

ख़त में ख़त का जवाब रक्खा है ||

सिसकियों में कटी जो रात उसका

कागज़ों पर हिसाब रक्खा है ||

शामियाना तेरी मुहब्बत का

एक ऐसा भी ख़्वाब रक्खा है ||

लफ़्ज करते नहीं शिकायत क्या

खामुशी का नकाब रक्खा है ||

याद करना तुम्हें ख़ुदा की तरह

आदतों को ख़राब रक्खा है ||

ओढ़ रक्खी हैं झुर्रियाँ मैंने

और…

Continue

Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 5, 2013 at 8:05pm — 36 Comments

पड़े अनंत उपाय, किन्तु पहले शौचाला-

चित की शुचिता के लिए, नित्य कर्म निबटाय |
ध्यान मग्न हो जाइये, पड़े अनंत उपाय |


पड़े अनंत उपाय, किन्तु पहले शौचाला |
पढ़ देवा का अर्थ, हमेशा देनेवाला |


रविकर जीवन व्यस्त, करे कविता जनहित की |
आत्मोत्थान उपाय, करेगी शुचिता चित की |

मौलिक /अप्रकाशित

Added by रविकर on October 5, 2013 at 5:36pm — 10 Comments

क्षणिकाएं


माँ तुम हो
शक्तिस्वरूपा
मेरी भक्ति का संसार
माँ से ही प्रारंभ
यह जीवन
माँ ही उर्जा का संचार
नीड बनाने में कितनी
खो  गयी थी  माँ
उड़ गए
पंछी घोसलों से
फिर तन्हा हो गयी है माँ
-- शशि पुरवार

-----------------------
१६ / ९ /१३

मौलिक और अप्रकाशित

Added by shashi purwar on October 5, 2013 at 5:00pm — 12 Comments

फूल बागो में खिले --- गजल

फूल बागों में खिले ये सबके मन को भाते है

मंदिरों के नाम पर ये रोज तोड़े जाते है .



फूल माला में गुथे या केश की शोभा बने

टूट कर फिर डाल से ये फूल तो मुरझाते है



फूल का हर रंग रूप तो सुरभि भी पहचान है

फूल डाली पर खिले तो भौरों को ललचाते है



फूल चंपा के खिले या फिर चमेली के खिले

फूल सारे बाग़ के मधुबन को ही महकाते है



भोर उपवन की देखो तितली से ही गुलजार हुई

फूलों का मकरंद पीने भौरे भी  मंडराते है



पेड़ पौधो से सदा…

Continue

Added by shashi purwar on October 5, 2013 at 5:00pm — 13 Comments

सम्मान (लघुकथा)

बड़े साहिब राज्य स्तरीय साहित्य सम्मान प्राप्त कर बेहद प्रसन्न थे. कार्यलय पहुँचते ही उन्होनें अपने स्टेनो को बुलाया और कई हफ़्तों से लंबित उसकी लोन की फाइल क्लीयर की तथा साथ ही उसकी पन्द्रह दिन की छुट्टी की अर्जी भी मंजूर कर दी। जाते समय उन्होनें स्टेनो को एक और बढि़या सी कहानी लिखने का आदेश दिया।

Added by Ravi Prabhakar on October 5, 2013 at 4:16pm — 12 Comments

पिय मिलन

गुरु तोमर छंद पर आधारित रचना - प्रथम प्रयास 
.
पिय नाम को पुकारि कै| अपनी पलकें सँवारि कै |
मन लोचनों में धारि कै| मैं द्वार पथ को  झाकि कै ||  
मन में खुद को निहारि कै|अंगुरि में अंगुरी डारि कै |
लट के पटों से  देखि कै | दिल में कसक सी मारि कै || 
मैं चल रही हूँ झूमि कै| यौवन नशा भरपूरि कै |
दिन भी सारा गुजारि कै| पिय भी मिलेंगे सांझि कै ||
वो न आये फिर राति कै|…
Continue

Added by Ashish Srivastava on October 5, 2013 at 3:00pm — 5 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : कन्या पूजन (गणेश जी बागी)

राधना तीन बेटों की माँ बन गयी थी, लेकिन बेटी की कमी हमेशा उसे अन्दर से कचोटती रहती। सासू माँ ने समझाया भी कि बहूँ एक बार और देख लों शायद माता रानी सुन लें, पर वह कोई चांस नहीं लेना चाहती थी, बड़ी ननद ने तो यहाँ तक कहा कि मेडिकल साइंस आज बहुत आगे है - चेक करा लेना और यदि बेटी नहीं हुई तो…… लेकिन आराधना ने साफ़ साफ़ कह दिया कि वो ऐसा घृणित पाप नहीं कर सकती । 



नवरात्रि का पहला दिन था सुबह सुबह आराधना पूजा की डलिया लिए मंदिर जा रही थी, तभी…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 5, 2013 at 2:30pm — 43 Comments

!!! हर काम-दिशा रति पावन हो !!!

!!! हर काम-दिशा रति पावन हो !!!

दुर्मिल सवैया छन्द आठ सगण यथा-112 आठ पुनरावृतित

// 1 //

हर मां जगती तल शीतल सी, नव जीवन दायक है जर* मां।..........*धन अर्थात लक्ष्मी

जर मां सब ध्यान धरे उर में, दर रोशन, बाहर है गर मां।।

गर मां नव दीप जले सुखदा, सुख बांट रहूं सुख को वर मां।

वर मां मुझको शिशु कृष्ण कहो, तम नष्ट करूं वर दे हर मां।।



// 2 //

समिधा सम दुर्गति नष्ट करें, सत पुष्ट करें अति पावन हो।

मन…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 5, 2013 at 11:00am — 27 Comments

विडम्बना (लघु-कथा)

चप्पल   घिस-घिस कर आधे रह गए थे सूरज शर्मा के । पिछले 3 साल से अपनी मास्टर  डिग्री की फ़ाइल प्लास्टिक के थैले में रखे नौकरी की तलाश में  जगह-जगह धक्के और ठोकरें खाते घूम जो रहा था । मई महीने की दोपहरी थी ।  दैनिक पत्रिका के  " वान्टेड " वाले पृष्ठ में कई जगह पेन से गोल  घेरा लगाए  सूरज पिछले चार घंटे  से शहर के  चक्कर लगाते भूख प्यास से बेहाल हो चुका था । शाम  तक  2-3  इंटरव्यू और देना था उसे । बची-खुची हिम्मत जुटा , सिटी…

Continue

Added by Kapish Chandra Shrivastava on October 5, 2013 at 10:30am — 37 Comments


प्रधान संपादक
कन्या पक्ष (लघुकथा)

"डॉ साहिब, हमें बेटी नहीं चाहिए. आप बहू का एबॉर्शन कर दीजिए."
"ठीक है, आप लोग कल शाम मेरे प्राइवेट क्लिनिक पर आ जाईए".
"कल नहीं डॉ साहिब, हम लोग अगले हफ्ते ही आ पाएंगे"
"अगले हफ्ते क्यों ?"
"क्योंकि अभी नवरात्रे चल रहे हैं "

(मौलिक एवँ अप्रकाशित्)

Added by योगराज प्रभाकर on October 5, 2013 at 10:00am — 45 Comments

हल्की-सी उदासी ...विजय निकोर

हल्की-सी उदासी

 

भावों की आहट

हल्की-सी उदासी

तुम्हें उदास देख कर ...

 

हल्की-सी उदासी

अँधेरे की थाहों में तुम्हें

कुछ टटोलते देख कर...

 

कुछ पहचानी कुछ अनजानी

तुम्हारी चुप्पी भी

चुभती है बहुत ...

 

सिन्दूर जो तुम्हारी मांग में

सजने को था

बिखरा पड़ा ...

 

सहसा हिल जाता है दिल

सोचते, ख़्यालों के कंगूरों पर कहीं

अकेली, तुम रो तो नहीं…

Continue

Added by vijay nikore on October 5, 2013 at 8:00am — 32 Comments

बुलाकर नेह को रखो

मिली जब से पनाहें सच, यहां इल्जाम को घर में

लिए बदनामी संग फिरते, छुपाकर नाम को घर में



बुलाकर नेह को रखो, यहां सम्मान से तुम नित  

मगर भूले से भी मत देना, “शरण काम को घर में



निपट लेगा फिर वन में, अकेली ताड़का से तो वो

यहां सौ-सौ लंकेश  बैठे हैं, बुलाओ राम को घर में



सुना है सबसे रखवाया, वचन बेटी की इज्जत का

मगर बोलो कि कब दोगे, इसी अंजाम को घर में



अभी तो साथ चलनी है, कर्ज में लिपटी हुर्इ सुबहें

भला फिर कैसे रोकें हम, धुआंती…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 5, 2013 at 6:00am — 7 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
3 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
5 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
6 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service