For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सांत्वना

अस्पताल से जाँच की रिपोर्ट लेकर घर लौटे द्वारिका दास जी अपनी पुरानी आराम कुर्सी पर निढाल होकर लेट से गये. छत को ताकती हुई सूनी निगाहों में कुछ प्रश्न तैर रहे थे . रिपोर्ट के बारे में बेटे को बताता हूँ तो वह परेशान हो जायेगा.यहाँ आने के लिये उतावला हो जायेगा. पता नहीं  उसे छुट्टियाँ  मिल पायेंगी या नहीं. बेटे के साथ ही बहू भी परेशान हो जायेगी. त्यौहार भी नजदीक ही है. बेटे को बता ही देता हूँ, कम से कम उसकी सांत्वना तो मुझे अंदर से मजबूत कर देगी. इतनी जल्दी मर थोड़े ही जाऊंगा. मैं ही अभी उसे आने के लिये  मना कर दूंगा. द्वारिका दास जी ने मोबाइल निकाला और बेटे को कॉल लगा ही लिया. हैलो पापा......हाँ बेटा मैं बोल रहा हूँ. कुशल-मंगल तो हो ना ? डॉक्टर साहब के पास से आ रहा हूँ, उन्होंने बताया है कि हार्ट का ऑपरेशन करना पड़ेगा. अभी तुम्हारी माँ को नहीं बताया है, बेचारी परेशान....बेटे ने बीच में ही बात काट कर कहा कितने पैसे भेज दूँ ?

द्वारिका दास जी के हाथ से मोबाइल फिसलकर गोद में आ गिरा. कानों में गूँज रही थी आवाज....कितने पैसे भेज दूँ......उनकी आँखें फिर से छत को ताकने लगीं. सूनी आँखों में  अब भी कुछ प्रश्न तैर रहे थे , मगर इस बार नमी भी साथ में थी.

अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजयनगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1162

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on November 1, 2013 at 8:25pm

आज संवेदनाओं की जगह पैसे ने ले ली है. बहुत ही अच्छी लघु कथा! आपको बहुत बहुत बधाई!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2013 at 4:30pm

//बेटे ने बीच में ही बात काट कर कहा कितने पैसे भेज दूँ ?//

उनका ही बेटा था ? कहीं बच्चे से होस्टल में रख के तो नहीं पढ़ाया था ? अगर नहीं तो फिर संस्कार में कैसे कमी रह गई, पालन पोषण में कही हराम का पैसा तो नहीं लगाया ?

इस तरह से कई प्रश्न दिमाग में नाचने लगें हैं आदरणीय निगम साहब, मुझे जाने क्यों अतिश्योक्ति…………… 

बहरहाल इस लघुकथा पर बधाई प्रेषित करता हूँ । लघुकथा अच्छी हुई है । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2013 at 1:43am

बेटा..  हम इस पात्र को दोषी मानें ही क्यों ? इसने जो सीखा-समझा, जिन मान्यताओं पर उसे अपनी तथाकथित क़ामयाब ज़िन्दग़ी मिली है, उसकी पहली शर्त ही धन तृष्णा होती है.  

एक भावनाप्रधान लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय अरुणजी. इसने झकझोर दिया.

कथ्य पर थोड़ा और काम आवश्यक है. फिर आपकी भी लघुथाएँ क्रिस्प होने लगेंगीं. .. :-))))

सादर

Comment by वीनस केसरी on October 12, 2013 at 2:34am

शानदार लघुकथा

Comment by Shubhranshu Pandey on October 9, 2013 at 10:29pm

आदरणीय अरुण जी,

आधुनिक उपभोक्तावाद ने भावनाओं को भी पैसे में तौलना सीख लिया है. हर चीज का दाम लगाया जाना एक आधुनिकता का पैमाना हो गया है..........सुन्दर कथा.

सादर.

 

Comment by vandana on October 9, 2013 at 7:04am

गुम होती संवेदनाओं पर मार्मिक अभिव्यक्ति ....इस सशक्त लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय अरुण सर 

Comment by Sushil.Joshi on October 9, 2013 at 4:57am

अपने अंदर सत्य को छुपाए हुए इस मार्मिक लघु कथा के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय अरुण जी...

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 8, 2013 at 10:29pm

आदरणीय गुरुदेव श्री क्या कहूँ !!!  कैसे कहूँ !!! मेरे पास शब्द नहीं हैं कुछ भी कहने के लिए. रोंगटे खड़े हो गए ऑंखें नम हो गईं.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 8, 2013 at 7:52pm

आदरणीय अरुण निगम जी 

मर्मस्पर्शी लघुकथा... आधुनिक भौतिकजीवी मानव की भावशून्यता का जो स्वरुप प्रस्तुत किया है..ह्रदय बेध देने वाला है. 

इस स्थिति पर क्या कहूं ..निःशब्द हूँ.

सादर धन्यवाद इस संवेदनशील प्रस्तुति पर 

Comment by वेदिका on October 8, 2013 at 5:37pm

आदरणीया कल्पना जी ने जो कटु सत्य कहा है, उससे इतर एक शब्द भी नहीं| नमन आपके गहन विश्लेषण को आदरणीया!

शुभकामनायें आदरणीय अरुण जी! 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service