For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कलाम सबकी जुबाँ पर है लाकलाम तेरा।
सलाम करता है झुक कर तुझे गुलाम तेरा।

वो पाक़ साफ है इल्जाम न लगा उस पर,
करेगा काम वो वैसा ही जैसा दाम तेरा।

किसी को ताज़ किसी को दिये फटे कपड़े,
बड़े गज़ब का है दुनिया मे इन्तजाम तेरा।

जो अपने आप को पहुँचा हुआ समझते हैं,
समझ में उनके भी आता नहीं है काम तेरा।

तेरे ही नाम से होते हैं सारे काम मेरे,
मैं मरते वक्त तक लेता रहूँगा नाम तेरा।

मौलिक अप्रकाशित अप्रसारित 

Views: 1070

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 7, 2013 at 9:01am

//कलाम सबकी जुबाँ पर है लाकलाम तेरा।

के साथ मैं मरते वक्त तक लेता रहूँगा नाम तेरा।//

ऐसा करने से काफिया स्तर पर ग़ज़ल दुरुस्त हो जायेगी । 

आदरणीय यह प्राकृतिक / कागज़ के फूल, खुशबु आदि का ग़ज़ल के नियम से क्या लेना देना ? मैं तो बस इतना जानता हूँ कि यदि जिस भी विधा में लेखन हो उसके स्थापित नियमों का पालन हो और यदि ऐब भी हो तो वो मान्य छुट के दायरे में हो, बस इतना ही कहना है । 

//दोष भी कभी कभी नगण्य हो जाता है अगर शेर प्रभावशील हो। ऐसा मेरा मत है हो सकता है मेरा कथन गलत हो। हो सकता है यह मेरा कुतर्क भी हो//

आदरणीय मुझे ऐसा ही लगा । 

सादर । 

 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on October 7, 2013 at 1:47am

//वक्त+तक जब पढ़ते हैं तो 'त साइलेन्ट हो जाता है ऐसा आभास होता है परन्तु यह दोष है इसे मैं मानता हँ। //

आद. श्री रामअवध जी. 'त' लुप्त होता है से आपका अभिप्राय कदाचित अलिफ़ वस्ल के नियम से है। किन्तु स्वयं ध्यान दें कि यदि 'त' साइलेंट हो रहा है तो  'तक' को आप किस प्रकार ११ अथवा उसे बाँट कर उसके 'क' को १ गिन सकते हैं? आपके कथनानुसार यह 'वक़्तक' होगा जो कि मेरे विचार से २२ होगा।  

//पुन: हिन्दी ने बिन्दी कभी स्वीकार नहीं किया। क्याकि उदर्ू मे 'ज के लिये इतने अक्षर है - जीम, जाल, जे , जे, ज्वाद । चार अक्षरो के लिये कितनी बिनिदयाँ कहाँ - कहँ बेचारी हिन्दी माता लगायेंगी इसलिये हिन्दी को हिन्दी के मीटर से नापें बजाये उदर्ू के मीटर से नापने के।//

जी आपकी बात सही है। जीम, ज़ाल, ज़े, ज़े, ज़्वाद,ज़ोए आदि। जैसे के 'ह' के लिए बड़ी हे, छोटी हे, अस्तु दो चश्मी हे भी प्रयोग में ले आई जाती है, 'स' के लिए सीन, स्वाद और से प्रयोग होते हैं किन्तु उनके उच्चारण में कोई अंतर नहीं है। जीम, और फ़ारसी ज़े  को छोड़ दें तो ज़ाल, ज़े, ज़्वाद, ज़ोए इन सभी का उच्चारण एक पूर्णतः एक समान है। अतः यहाँ देवनागरी लिपि है तो उर्दू हर्फ़ का प्रश्न ही कहाँ उठा? मैं केवल उच्चारण की बात कर रहा था जो मुझे आपकी पोस्ट के शीर्षक 'ग़ज़ल' को देख कर लगा कि आप इस का विशेष ध्यान रखते हैं इसलिए यह चर्चा कर बैठा। संभवतः इसी कारणवश हम सभी के उच्चारण में और सुधार भी आता है जो कि भाषा और साहित्य के दृष्टिकोण से एक अच्छा लक्षण है। शेष, आपकी जो भी प्रिय भाषाई शैली हो वह मुझे सहज स्वीकार्य है। सादर,

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 6, 2013 at 10:29pm

आदरणीय बागी जी
आप शायद यह कहना चाह रहे हैं कि लाकलाम काफिये के साथ यदि मतले में सलाम आया है तो आगे के काफिये में अन्त में लाम ही आना चाहिये। नियम तो यही कहता है तो क्या कलाम सबकी जुबाँ पर है लाकलाम तेरा। के साथ मैं मरते वक्त तक लेता रहूँगा नाम तेरा। मिसरा लगाने से गजल मुकम्मल हो जायेगी। यहाँ मैं यह निवेदन करना चाहता हूँ कि कागज के फूल में यदि महक न हो तो बेशक साँचे में पूर्णतय: ढला हो मगर लोगों को आकर्षित नहीं कर सकता है परन्तु प्राकृतिक फूल की एक पंखुड़ी अगर बेतरतीब हो तो भी उसकी खुशबू दूर दूर तक लोगों को आकर्षित करती है। और शायद एक पंखुड़ी की बेतरतीबी को लोग इतना महत्व नहीं देते जबकि सभी पंखुडि़याँ तरतीब से होनी चाहिये। अन्यथा नियम के अनुसार तो फूल का होना निर्थक होगा । दोष भी कभी कभी नगण्य हो जाता है अगर शेर प्रभावशील हो। ऐसा मेरा मत है हो सकता है मेरा कथन गलत हो। हो सकता है यह मेरा कुतर्क भी हो।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 6, 2013 at 4:16pm

आदरणीय शकूर जी ,
यदि वक्त में 'त'अक्षर के नीचे हलन्त लग जाये तो वह आधा अक्षर माना जाता है ऐसी सिथती में -
मैंमरतेवक्त            तकलेता            रहूँगाना                    मतेरा
मफाइलुन              फइलातुन            मफाइलुन               फेलुन

1212                   1122                 1212                     22

हो जावेगा और इस प्रकार सम्पूर्ण गजल बहर में होगी । परन्तु इसे विद्वान शायर क्या मान्यता देंगे।

विचारणीय प्रश्न है। वैसे कोर्इ भी अक्षर साइलेन्ट नहीं किया जा सकता है। परन्तु जैसा कि आप जानते हैं दीर्घ को गिराकर लघु किया जा सकता है।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 6, 2013 at 4:04pm

शिज्जू जी, आप ख़ास मिसरे पर ठिठक गए और मैं मतले पर अटक गया…………

कलाम सबकी जुबाँ पर है लाकलाम तेरा।
सलाम करता है झुक कर तुझे गुलाम तेरा।

आदरणीय राम अवध जी, कृपया एक बार पुनः काफिया पर नजर ड़ाले, क्या अन्य अशआर में मतले के अनुसार काफिया का निर्वहन हुआ है ? 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 6, 2013 at 11:52am

आदरणीय राम अवध जी सबसे पहले तो आप इस ग़ज़ल के लिये दिली दाद कुबूल करें, सारे अशआर कसे हुये हैं, बधाई आपको

मैं भी उसी मिसरे पे ठिठक गया जिसका जिक्र आदरणीय संदीप द्विवेदी जी ने किया है

वो पाक़ साफ है इल्जाम न लगा उस पर (1212 1122 1112 22), इस बात की जानकारी मुझे नही है कि इस अरकान में 1212 तो 1112 किया जा सकता है या नही?

मैं मरते वक्त तक लेता रहूँगा नाम तेरा

1212 1222 1212 112

वक्त+तक जब पढ़ते हैं तो 'त साइलेन्ट हो जाता है ऐसा आभास होता है

यहाँ भी मेरी शंका यही है कि इस तरह हिन्दी ग़ज़ल में हर्फ़ को साइलेन्ट किया जा सकता है क्या?

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 6, 2013 at 11:33am

आदरणीय श्री गिरिराज भंडारी जी कोर्इ भी व्यकित अपने आप मे सम्पूर्ण ज्ञानी नहीं होता है। एक दूसरे से चर्चा करके अपने ज्ञान में वृद्धि करता है।
मैं भी आप लोगों का कृतार्थ हूँ जो मुझे निरन्तर ज्ञान प्रदान करते रहते हैं। मेरीें व्यंग्य गजलों की दो पुस्तकें सन 94 में एवं 2005 में दिल्ली एवं ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी हैं। एक पुस्तक 2010 में गध व्यंग्य की दिल्ली से प्रकाशित हो चुकी है। जनवरी 2013 में एक पुस्तक गजलों पर दिल्ली से प्रकाशित हो रही है। आप जैसे मित्रों का हृदय से आभारी हूँ जिनके द्वारा त्रुटियों में सुधार का अवसर मिला। पुन: धन्यवाद।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 6, 2013 at 9:25am

आदरनणीय , राम भाई , खुद अधूरा ज्ञान रख के सलाह दे दिया था , शर्मिन्दा हूँ !! फिर भी आपने सलाह को मान दिया , आपका बहुत आभार !! आदरणीय सौरभ भाई एवँ आदरणीय सन्दीप ' वाहिद " भाई , आपका भी आभार , आपने स्थिति साफ कर दी !!

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 6, 2013 at 9:06am

आदरणीय श्री सौरभ पाण्डे जी
किसी भी विधा की बारीकियाँ स्वस्थ एवं सार्थक चर्चा द्वारा ही सीखी जा सकती हैं। ओपेन बुक्स आन लाइन की बड़ी कृपा है जो इतना ज्ञान वर्धक मंच पाठकों , कवियों एवं लेखकों को उपलब्ध कराया। कभी - कभी स्वयं की त्रुटियाँ नहीं दिखार्इ देतीं। परन्तु दूसरे विद्वान व्यकित तुरन्त पकड़ लेते हैंं।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 5, 2013 at 11:02pm

आपका आपके प्रयास के साथ स्वागत है.

बेहतर और सार्थक चर्चा के लिए आदरणीय गिरिराजजी, संदीपभाईजी तथा आपको हृदय से बधाई.

शुभ-शुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"   आदरणीय सुशील सरना जी सादर, लक्ष्य विषय लेकर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
8 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
10 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service