भला हूँ मैं बुरा हूँ मैं
मुहब्बत का ज़ला हूँ मैं
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खुदा भी साथ है उसके
खुदा से भी मिला हूँ मैं
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बिना ही तेल के जलता
रहा हूँ वो दिया हूँ मैं
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न पूछो हाल कैसा है
न पूछो क्यों जीया हूँ मैं
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चला जा तू दगा देकर
मगर फिर भी तेरा हूँ मैं
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बिना सावन बरसती है
सदा ही वो घटा हूँ मैं
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Added by umesh katara on April 24, 2015 at 6:43pm — No Comments
कर्त्तव्यो की अजब कहानी, जीवन भर करता नादानी।
भूख लगे तो चिल्लाता यों, सारे जग का मालिक है वो।
शोषण का अपराध हृदय में, खोखल तना घना लगता वो।।
हाथ, पैर, मुख कर्म करे पर, अॅखियॉं मूंद करे बचकानी।
कर्त्तव्यो की अजब कहानी, जीवन भर करता नादानी।। 1
दया-करूण की ममता देवी, निश्छल अन्तर्मन की वेदी।
नहीं जरा भी रूक पाती है, करूणा-ममता बरसाती है।।
जीवन भर उल्लास बॉंट कर, पीती सदा नयन से पानी।
कर्त्तव्यो की अजब कहानी, जीवन भर करता नादानी।।…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 24, 2015 at 6:35pm — 3 Comments
कब्र में आज कुछ नमीं सी है,
शबे-माह कौन यहाँ आया है !
कहाँ हैं वो ..जिनके अश्कों नें,
अज़ल को ......ख्व़ाब से जगाया है !!
दूर वीरानें में .....दरख्तों पर ,
ये किसने चाँद को लटकाया है !
उम्र बस यूँ हि.....गुज़र जायेगी,
वक़्त बीता ...कब लौट के आया है !!
चले थे साथ ...मगर चल न सके,
एहसासात ........बेनवा निकले !
दर्द की दर्ज़ को भी सी न सके,
रफूगर ही ......बेवफ़ा निकले !!
ता उम्र मिला न…
ContinueAdded by rajkumarahuja on April 24, 2015 at 3:30pm — 2 Comments
वह आकाश में परिंदे की तरह उड़ रही थी ।माँ निश्चिन्त थी की बेटी तरक्की कर रही और पिता आजादी दे समय से ताल मिला रहे थे।बेटी के सोने -जागने , आने जाने से किसी का कोई सरोकार नहीं था।
" पापा मेरी तबियत खराब हो गयी है ।"
मुँह अँधेरे होटल पंहुचे पिता अपनी पुत्री को अस्त व्यस्त और नशे में डूबी देख समझ चुके थे की क्या घट चुका है।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Archana Tripathi on April 24, 2015 at 8:30am — 21 Comments
हो चुकी हो तुम एक पाषाण
वो एहसासों की लहरों पे तैरना
धड़कनों को खामोशीओं में सुनना
होठों को छू लेने की तड़प
आगोश में भर लेने की चसक
सब रेत के घरोंदे थे .........
रेत के इन घरोंदों को
तूफ़ान से पहले क्यूँ खुद ही ढाना पड़ता है !
चादर में ग़मों की फटन को
वक़्त के धागे से क्यूँ ख़ुद ही सीना पड़ता है !
नींद के आगोश में
मरे हुए ख़वाबों को क्यूँ खुद ही ढोना पड़ता है !
उमंगों के उड़ते परिंदों को
दर्द के दरिया में क्यूँ…
ContinueAdded by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 24, 2015 at 4:15am — 12 Comments
स्त्री का सम्मान , आजादी और शिक्षा के लिए भरपूर प्रयास करने जैसी ढेरों आदर्श वादी बातों से प्रभावित स्नेहा लेक्चरर साहब घर जा पहुंची।
दस्तक से पूर्व ही कर्कश आवाज " खबरदार बिना मेरी अनुमति के कोई परिवर्तन किया तो लात मार घर से निकाल दूंगा I"
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Archana Tripathi on April 24, 2015 at 1:00am — 9 Comments
गर्मी में भीग जाते हैं
पसीने से
ठंढ में खड़े हो जाते हैं
रोयें...
हमारी त्वचा
तुरंत परख लेती है
मौसम परिवर्तन को
धूल-कण आने से पहले
बंद हो जाती हैं पलके
उन्हें पता चल जाता है
है कोई खतरा
सुगंध और दुर्गन्ध में
अंतर करना जानती हैं
ये नासिका
खट्टा, मीठा, तीखा सब
हमारी जिह्वा
हल्की सी आहट को
पहचान लेते…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 23, 2015 at 8:18pm — 23 Comments
" अब्बू ,ये नकाब और ये बुर्का? मैं नहीं पहनूंगी बस। "कहते हुए नीलोफर बाहर निकल गयी।
"क्या आप भी नीलोफर के अब्बा।ज़माना बदल गया है।आप भी बदल जाइए न।"
"कैसे बताऊँ तुमलोगों को बेग़म। ज़माना बिलकुल भी नहीं बदला है।बल्कि और भी बदतर हो गया है लड़कियों के लिए।"
कहते हुए हुए सिद्दकी साहब के जहन में वे सारी एक्स रे जैसी निगाहें घूमने लगीं जो कल बाज़ार में उनकी मासूम बच्ची के शरीर को छेदती हुई उनके दिल में सुई की तरह चुभ रही थीं।
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(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Mala Jha on April 23, 2015 at 7:00pm — 17 Comments
पार्टियों की रेस तो देखो कितनी है रफ़्तार
सत्ता में जब भी आ जाती, होता हाहाकार
चुनाव जीतकर आ जाए तो कितना अहंकार
भ्रष्टाचार का सभी तरफ फ़ैल गया अंधकार
काम करे सरकारी अफसर, कर रहे उपकार
रिश्वत खाकर फूले हैं और हो गए मक्कार
ईमानदारी पर आजकल मिलती है फटकार
बिक गए हैं बेईमानी में हम सब के संस्कार
नेता भाई किसान को जाकर दे गए ललकार
दाम दे देंगे जमीन के बंद करो फुफकार
कदम कदम पे रह…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on April 23, 2015 at 6:15pm — 8 Comments
बिना लाग लपेट के
बिना पाखण्ड के
सुन लेता है
समझ लेता है
ईश्वर मन की बात
जान लेता है आत्मा के भाव
फिर भी जाने क्यों
मन्दिर का घंटा जोर जोर से
तीन बार बजाने पर हr
प्रार्थना पूर्ण होने का
पूर्ण सा अहसास होता है
आत्म-मन -चित्त को
बडा ही भ्रमित है
मेरा अल्पज्ञान
ये सोच सोचकर
भारहीन मौन प्रार्थना को
ईश्वर तक पहुँचाने के लिये
मन्दिर के घंटे की आबाज
का भारी भरकम
भार क्यों लपेटा जाता है ?
मौलिक व…
Added by umesh katara on April 23, 2015 at 9:01am — 21 Comments
बहुत ही व्यस्त कार्यक्रम था आज मंत्री जी का। सारे दिन शैक्षिक गुणवत्ता की कायर्शाला में अधिकारियों , शिक्षाविदों के साथ वाद-विवाद में जबरदस्त सक्रिय रहे माननीय मंत्री जी, बार बार यही दोहराते रहे , " सदियों से हम विश्व-गुरु रहें हैं, हम ऐसी शिक्षा दें कि कोई भी शिक्षा के लिए विदेश न जाना चाहे।"
शाम घर जाते कार में पी ए से बता रहे थे:
"हफ्ते भर बाहर रहूंगा, रात दिल्ली निकल रहा हूँ I कल अमेरिका की फ्लाइट है, बेटे को हॉस्टल छोड़ कर आना है।.कहाँ कहाँ का जुगाड़ लगाया है तब एडमिशन मिला…
ContinueAdded by Dr. Vijai Shanker on April 23, 2015 at 9:00am — 26 Comments
22 22 22 22 22 2
दरवाज़े पर देखो कोई आया क्या ?
अपने हिस्से का कोलाहल लाया क्या ?
ख़ँडहर जैसा दिल मेरा वीराना, भी
खनक रही इन आवाज़ों को भाया क्या ?
कुतिया दूध पिलाती है, बंदरिया को
इंसाँ मारे इंसाँ को, शर्माया क्या ?
फुनगी फुनगी खुशियाँ लटकी पेड़ों पर
छोटा क़द भी, तोड़ उसे ले पाया क्या ?
सारे पत्थर आईनों पर टूट पड़े
कोई पत्थर ,पत्थर से टकराया क्या ?
जुगनू सहमा सहमा सा…
Added by गिरिराज भंडारी on April 22, 2015 at 6:30pm — 28 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
जिन्दगी के गीत गाता आदमी रो जायेगा
जिस घड़ी पत्थर का ये दिल मोम सा हो जायेगा
भूख से बेहाल बच्चा जो न सोया अब तलक
माँ अगर लोरी सुना दे भूखा ही सो जायेगा
आज तक मंदिर न जाकर कर दिया जो पाप है
माँ की सेवा से मिला आशीष वो धो जायेगा
मुतमइन था देख कर मैले में इंसानों की भीड़
तब न सोचा था,यहाँ बच्चा मेरा खो जाएगा
मानती जिस को थी दुनिया इक मसीहा आज…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on April 22, 2015 at 1:00pm — 15 Comments
"माँ, इस एफ.डी.आर. में भी नॉमिनी मुझे ही रखना, भैया सम्भाल नहीं सकता|"
"बेटे, मैं बराबर बांटना चाहती हूँ| उसको देख, तेरे पिताजी के देहांत के बाद उसने खुदके हक की सरकारी नौकरी तुझे दे दी और खुद प्राइवेट नौकरी में धक्के खा रहा है|"
"यही बात तो उसको बेवकूफ साबित करती है|"
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 22, 2015 at 12:35pm — 13 Comments
आदमी की भूख में उछाल आ गया |
पत्थरों को घिस दिया पहाड़ खा गया |
रुख बदल के जल प्रवाह मोड़ ही दिया,
भूख ही थी आदमी कमाल पा गया |
तम निगल कर रौशनी तमाम कर दिया,
जब लगाई युक्ति तो विकास छा गया |
देखकर सबकुछ खुदा मगन दिखा वहाँ,
आदमी को आज का मचान भा गया |
तन मिला दुर्लभ इसे वृथा नहीं किया
जिन्दगी थोड़ी मगर उठान ला गया ||
( मौलिक अप्रकाशित )
Added by Chhaya Shukla on April 22, 2015 at 12:00pm — 6 Comments
कोकिला क्यों मुझे जगाती है,
तोड़ कर ख्वाब क्यों रुलाती है.
नींद भर के मैं कभी न सोया था,
बेवजह तान क्यों सुनाती है.
चैन की भी नींद भली होती है
मधुर सुर में गीत गुनगुनाती है
बेबस जहाँ में सारे बन्दे हैं
फिर भी तू बाज नहीं आती है
(मौलिक व अप्रकाशित)
- जवाहर लाल सिंह
गजल लिखने की एक और कोशिश, कृपया कमी बताएं
Added by JAWAHAR LAL SINGH on April 22, 2015 at 12:00pm — 12 Comments
2122 2122 2122 212
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पत्थरों के बीच रहकर देवता बनकर दिखा
दीन मजलूमों के हित में इक दुआ बनकर दिखा
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कर रहा आलोचना तो सूरजों की देर से
है अगर तुझमें हुनर तो दीप सा बनकर दिखा
****
चाँद पानी में दिखाकर स्वप्न दिखलाना सहज
बात तब है रोटियों को तू तवा बनकर दिखा
****
देख जलता रोम नीरो सा बजा मत बंशियाँ
जो हुए बरबाद उनको आसरा बनकर दिखा
****
है सहोदर तो लखन …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 22, 2015 at 10:57am — 9 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२
जीवन से लड़कर लौटेंगे सो जाएँगे
लपटों की नाज़ुक बाँहों में खो जाएँगे
बिना बुलाए द्वार किसी के क्यूँ जाएँ हम
ईश्वर का न्योता आएगा तो जाएँगे
कई पीढ़ियाँ इसके मीठे फल खाएँगी
बीज मुहब्बत के गर हम तुम बो जाएँगे
चमक दिखाने की ज़ल्दी है अंगारों को
अब ये तेज़ी से जलकर गुम हो जाएँगे
काम हमारा है गति के ख़तरे बतलाना
जिनको जल्दी जाना ही है, वो…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 22, 2015 at 10:30am — 14 Comments
Added by दिनेश कुमार on April 21, 2015 at 8:30pm — 24 Comments
“ बेटा!! आ गया तू.. कहाँ-कहाँ हो आया भारत भ्रमण में..?
“ माँ!! चारो दिशाओं में गया था. देखो! गंगाजी का जल भी लाया हूँ. आप कहो तो, पिताजी लाये थे वो कलश आधा खाली है उसमे ही डाल दूँ..”
“ नहीं!! बेटा.. रोज समाचारों में सुनती हूँ कि गंगा में स्वच्छता अभियान चल रहा है, वर्षों पहले तेरे पिता जो लाये वो तू बचा के रखना. कम से कम आगे आने वाली पीढ़ी, पवित्र गंगाजल तो देख लेगी..”
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on April 21, 2015 at 7:07pm — 26 Comments
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