दीवारों में
दिये के आले
दीपक का स्वागत करते हैं
रश्मि राग में
मगन हुई
ज्योति
पताका लहराती है
तमस वज्र को तोड़
आलय को रोशनी से भर देते हैं
और
दिये के आले
बदले में
दिये से
काजल के झाले
खुद अन्तस में
धर लेते हैं
@आनन्द 18/04/2015 "मौलिक व अप्रकाशित"
Added by anand murthy on April 18, 2015 at 1:28pm — 5 Comments
१२२२/ १२२२ / १२२
न जानें क्या से क्या जोड़ा करेंगे
तुम्हारे ग़म में दिल थोडा करेंगे.
.
तुम्हारे साथ हम पीते रहे हैं
तुम्हारी नाम की छोड़ा करेंगे.
.
तुम्हारी आँख का हर एक आँसू
हम अपनी आँख में मोड़ा करेंगे.
.
घरौंदे रेत के क्यूँ ग़ैर तोड़े
बनाएंगे, हमीं तोडा करेंगे.
.
नपेंगे आज सारे चाँद तारे
हम अपनी फ़िक्र को घोडा करेंगे.
.
ख़ुदा को…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2015 at 11:12am — 14 Comments
“ कुछ कीजिये..सर!! आप ने तो भाषण दे दिया कि प्राकृतिक आपदा के कारण, गुणबत्ता रहित अनाज भी समर्थन मूल्य पर खरीद लेंगे. इससे हम लोगों को नुक्सान हो जायगा. चुनावी फंड, रिफंड करने का अच्छा अवसर है..”
“ अरे!! आप लोग व्यापारी हो, इतना भी नही समझते. किसानो को पैसों की बहुत जरुरत है. अभी भाषण ही दिया है , लिखित आदेश की गति बहुत धीमी होती है.."
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by जितेन्द्र पस्टारिया on April 18, 2015 at 9:40am — 20 Comments
आज भोपाल के चौक में रौनक जरा कम नजर आ रही थी । सारे दुकानदार सहमे से अतिक्रमण दस्ता के तरफ देख रहे थे । अफरा तफरी का माहौल देख कर वहां खरीदारी करने आये लोग परेशान हो इधर उधर हो रहे थे ।
"अरे भाई , इनको क्या परेशानी है ...? अगर दुकानदार समानों को सजाकर नही दिखाये तो ग्राहक को भी कैसे समझ में आये । " -- बेहद परेशान अजीज भाई कह उठे थे ।
"चौक के अंदर तक गाडियों का प्रवेश वर्जित कर दे , तो जरा बात भी बने । नाहक ही यह प्रसाशन , ग्राहक और दुकानदार दोनों को परेशान कर रहे है । "--- वहीं…
Added by kanta roy on April 18, 2015 at 9:30am — 14 Comments
ग़ज़ल / रचना पूर्व प्रकाशित होने के कारण एवं ओ बी ओ नियमों के अनुपालन के क्रम में प्रबंधन स्तर से हटाई जा रही है.
एडमिन
2014041807
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on April 18, 2015 at 2:00am — 8 Comments
Added by Samar kabeer on April 17, 2015 at 11:58pm — 12 Comments
हरिद्वार से कुल गुरू का आगमन क्या हुआ ...अलका के तो इसबार होश ही फाख्ता हो गये ।
तीन लडकियों को जनने का दर्द कोख में फिर जाग उठा था ।
कुलगुरु के अलौकिक सानिध्य ही उसके पुत्र प्राप्ति का एकमात्र विकल्प सुन कर वह स्तब्ध थी ।
पति की झूकी हुई नजर देख कर अलका का अंतर्मन कराह उठा था ।
सती सावित्री सीता ... माँ दुर्गा ..माँ चंडिका रूप धर कर दुःसाध्य - कार्य करने को आज आतुर थी ।
धर्म के आड़ में समस्त अनाचार जग जाहिर हो गये । ...... खोखले रिश्ते अपने केंचुल आवरण से…
ContinueAdded by kanta roy on April 17, 2015 at 10:30pm — 13 Comments
लोग पहले
रिश्ता बनाते हैं
उसके बाद
रिश्तों की दुहाई देकर
दिल दुखाते हैं।।
मगर मैं
आश्चर्यचकित हूँ
तुम्हारे हुनर से
क्योंकि तुमने
अपनों से भी बढ़कर
दिल दुखाया है मेरा
बिना रिश्ता बनाये
बिना अपना बनाये ।।
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Added by umesh katara on April 17, 2015 at 10:22pm — 10 Comments
देखने में आ रही है गर्मियों में सर्दियाँ
मौसमों की दोस्ती हैं गर्मियों में सर्दियाँ
आम पर खामोश बैठी,झुरमटों से देखती
कोयलें कुछ सोचती हैं गर्मियों में सर्दियाँ
आओ चिंता सब करें अपने किसानों के लिये
क्यों फसल को लूटती हैं गर्मियों में सर्दिया
बादलों के साथ ओले ले, हवायें आ गई
देखो कितनी साहसी है गर्मियों में सर्दिया।।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सूबे सिंह सुजान on April 17, 2015 at 9:30pm — 4 Comments
बहुत साल पहले 2006 में पंकज जी लखनऊ आशियाना में एक डिपार्टमेंट स्टोर पर अपने सेल्समेन और डिस्ट्रीब्यूटर के साथ call कर रहे थे। उसकी मालिक एक आंटी जी थी। उनके पति बैंक मैनेजर थे । पंकज जी उनसे काफी देर बातचीत की और जब चलने को हुये तो सेल्समेन को और डिस्ट्रीब्यूटर को इशारा कर दिया कि -- "जाओ आधी जंग लड़ ली है आधी तुम लोग लड़ो । "
उठते समय पंकज जी से एक गलती हो गई। पंकज जी ने उनसे चलते वक़्त ""थैंक यू आँटी जी" कह दिया । और अपनी गाडी पर आकर बैठ गये । थोड़ी देर बाद पंकज जी ने देखा कि उनके…
ContinueAdded by Pankaj Joshi on April 17, 2015 at 8:30pm — 2 Comments
वे झूठ के दाने बोते हैं
वे झूठ की खेती करते हैं
जब झूठ की फसलें पकती हैं
वे सच-मुच में खुश होते हैं
फिर झूठ-मूठ ही मिल-जुलकर
हर आने-जाने वाले को
खाने की दावत देते हैं...
वहां झूठ के लंगर लगते हैं
वहां झूठ के दोना-पत्तल में
भर-भर के परोसी जाती हैं
झूठ-मूठ की पूरी-सब्जी
झूठ-मूठ के माल-पूवे....
इस झूठ के काले धंधे में
कई सेवक मोटे- तगड़े से
लट्ठ- हथियारों से लैस हुए
जब कहते सबसे लो डकार
और करो…
Added by anwar suhail on April 17, 2015 at 6:52pm — 6 Comments
तरही ग़ज़ल -
2122 2122 2122 212
तेज़ रफ़्तारी के सारे जब दिवाने हो गये
दूरियाँ सिमटीं नगर तक आस्ताने हो गये
अहदे नौ में टीव्ही ने तो यूँ मचाया है वबाल
बचपना में ही सभी बच्चे सयाने हो गये
जिस तरह फेरा ग़मों का लग रहा है घर मेरे
यूँ लगा मुझको ग़मों से दोस्ताने हो गये
अब नई तहज़ीब के पेशे नज़र , सारे ज़ईफ
नौजवानों के लिये , कपड़े पुराने हो गये
इंतख़ाबी , इंतज़ामी थे सभी वो वाक़िये
आप ये मत…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 17, 2015 at 5:30pm — 23 Comments
२२२२/२२२२/२२२
.
आँखों को सपनीला होते देखा है
ख़्वाबों को रंगीला होते देखा है.
.
क़िस्मत ने भी खेल अजब दिखलाए हैं
पत्थर भी चमकीला होते देखा है.
.
सादापन ही कौम की थी पहचान जहाँ
पहनावा भड़कीला होते देखा है.
.
मुफ़्त में ये तहज़ीब नहीं हमनें पायी
शहरों को भी टीला होते देखा है.
.
कुर्सी की ताक़त है जाने कुछ ऐसी
बूढा, छैल-छबीला होते देखा है.
.
आज…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 17, 2015 at 2:50pm — 17 Comments
"बेटा जी आज दूरबीन से इतनी देर से आसमान में क्या ढूंढ रहे हो।"
"पापा जिस तेजी से प्रदूषण फैल रहा है, जल्दी ही पृथ्वी पर प्रलय आ सकती है। इसलिए मैं यह देख रही थी कि क्या कोई और ग्रह हमारी पृथ्वी जैसा है जहाँ हम भविष्य में रह सके।"
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by neha agarwal on April 17, 2015 at 12:00pm — 18 Comments
समाचार - पत्र
प्रात:
नित्य क्रिया से निव्रुत्ति होकर
चींखती- सुप्रभात....!
आँंगन में फड़फड़ा कर गिरता
समाचार-पत्र
सुबुकता, कराहता, आहें भरता
दुर्भिक्षों सा
कातर दृष्टि में अपेक्षा के स्वर
आशा, सहयोग, सद्भावना...
किन्तु, सर्वथा.....अर्थ हीन
उपेक्षा का भाव...
सुरसा सा आकार लेता.
घायलों का अधिक रक्त स्राव
प्राण तक छीन लेती
क्षण भर की देरी
मंजिल के पास ही -
चौराहों की लाल बत्ती…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 17, 2015 at 9:47am — 4 Comments
हार जाने के डर से छिपाये हुये तर्क
*******************************
कोरी बातों से या आधे अधूरे समर्पण से
किसी भी परिवर्तन की आशायें व्यर्थ है
जब तक आत्मसमर्पण न कर दें आप
तमाम अपने छुपाये हुये हथियारों के साथ
अंदर तक कंगाल हो के
सद्यः पैदा हुये बालक जैसे , नंगा, निरीह और सरल हो के
सत्य के सामने या
वांछित बदलाव के सामने
आपके सारे अब तक के अर्जित ज्ञान ही तो
हथियार हैं आपके
वही तो सुझाते हैं आपको…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 17, 2015 at 9:00am — 23 Comments
२१२२/२१२२
आँख से उतरा नहीं है
बस!! कोई रिश्ता नहीं है.
हम पुराने हो चले हैं
आईना रूठा नहीं है.
मुस्कुराहट भी पहन ली
ग़म मगर छुपता नहीं है.
साथ ख़ुशबू है तुम्हारी …
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 16, 2015 at 10:42pm — 20 Comments
ग़ज़ल / रचना पूर्व प्रकाशित होने के कारण एवं ओ बी ओ नियमों के अनुपालन के क्रम में प्रबंधन स्तर से हटाई जा रही है.
एडमिन
2014041907
Added by Abhay Kant Jha Deepraaj on April 16, 2015 at 9:00pm — 2 Comments
“मास्टर साहब तनिक मेरे छोटका बेटा को समझाइये न, गलत संगत में पड़ वह अपनी जिन्दगी और खानदान का नाम... दोनों बर्बाद कर रहा है.”
मास्टर साहब को चुप देख प्रधान जी पुनः बोल पड़े.
“आप तो उसे ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाये हैं आप की बात वो जरुर मानेगा.”
“प्रधान जी आपके कहने से पहले ही मैंने सोचा था कि उसे समझाऊं किन्तु ...”
किन्तु क्या मास्टर साहब ?
"प्रधान जी क्षमा चाहूँगा किन्तु कीचड़ से सनी उसकी जूती तथा अपना उजला लिबास देख उसे समझाने का साहस मैं नहीं जुटा…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2015 at 5:21pm — 18 Comments
लगाये आँख में लाली सुबह वो पास आती है
दिखा कर पाँव के कंगना खुशी से मुस्कुराती है।
कहे कैसी सजी हूँ मैं लगा कर मॉंग में काजल
तुम्हें मैं प्यार करती हूँ समझना मत मुझे पागल
लगाती नाक पर बिन्दियॉं अदा उसकी निराली है
जला कर दिन में वो दीपक कहे मुझसे दिवाली है
बजा कर हाथ की पायल मुझे हरदम सताती है
दिखा कर पाँव के कंगना खुशी से मुस्कुराती है।
लगाये आँख में लाली सुबह वो पास आती है
न पूछो बात तुम उसकी बड़ी सीधी बड़ी न्यारी …
Added by Akhand Gahmari on April 16, 2015 at 4:30pm — 2 Comments
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