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कितना सुहाना होगा ………..

कितना सुहाना होगा ………..

अपने अपने दंभों को समेटे
हम इक दूसरे की तरफ 
पीठ करके चल दिए 

बिना इसका अनुमान लगाये कि
मुंह मोड़ के हम
उन स्नेहिल पलों का 
अनजाने में क़त्ल कर रहे हैं 

जो हमने
तारों की छाँव में
चांदनी की बाहों में 
नशीली निगाहों में 
इक दूसरे के कन्धों पर सिर रख कर
इक दूसरे की उँगलियों में उंगलियाँ डालकर
इक दूसरे के केशों से खेलते हुए 
निशा में अपने अस्तित्व को 
इक दूसरे में विलीन करके संजोये थे 
और हाँ ,सागर की रेत् पर पाँव के निशाँ 
रतजगों से बिस्तर पर वो सलवटों के निशाँ 
मुहब्बत के उन्मादी पलों की वो महकती दास्ताँ
क्या मात्र पीठ मोड़ के चल देने से 
हम अपनी स्मृति से.
विस्मृत कर पायेंगे 
नहीं, प्रिय नहीं 
ये इतना आसाँ नहीं है 
हमें एक दूसरे के लिए
एक दूसरे की तरफ
शर्तों की हदों के बिना
लौट के आना होगा
अपने अपने दंभ को
पछतावे के आंसूओं में डुबो कर
इक दूसरे के जीवन में
समर्पण भाव का
नया प्रभात लाना होगा
मैं और तुम का भेद मिटाकर
हम बन जाना होगा

फिर देखना ये सफर
कितना सुहाना होगा

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 460

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Comment by Sushil Sarna on June 5, 2015 at 12:32pm

Comment by Sushil Sarna on May 28, 2015 at 3:29pm

आदरणीय सौरभ जी रचना भावों पर आपकी स्नेह बरखा ने लेखन को सफल कर दिया। आपका तहे दिल से शुक्रिया। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 1:49am

आदरणीय सुशील सरनाजी, भावदशा से उच्च प्रस्तुति केलिए हार्दिक बधाइयाँ..

शुभ-शुभ

Comment by Sushil Sarna on May 22, 2015 at 1:17pm

आदरणीय   shree suneel  जी रचना में निहित भावों को मान देने  के लिए आपका  तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by shree suneel on May 21, 2015 at 2:50pm
रिश्तों के महत्व को रेखांकित करती सुन्दर, सार्थक कविता आदरणीय. अच्छी लगी आपकी ये प्रस्तुति भी. बधाई आपको.
Comment by Sushil Sarna on May 21, 2015 at 12:49pm

आदरणीय   डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी रचना में निहित भावों को मान देने  के लिए आपका  तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on May 21, 2015 at 12:49pm

आदरणीय  Samar kabeer  जी रचना में निहित भावों को मान देने  के लिए आपका  तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 21, 2015 at 11:06am

रमणीक , भव्य, सुन्दर !

Comment by Samar kabeer on May 21, 2015 at 11:06am
जनाब सुशील सरना जी ,आदाब,बहुत अच्छा लिखते हैं आप ,ये कविता भी बहुत अच्छी लगी,हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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