बेकार हजारों कोशिश भी,
इन आँखों को समझाने की ,
रखती हैं समुंदर को वश में,
और धार बहाये रहती हैं।
जबकि है मालूम इन्हें,
वो दूर हैं नजरों से फिर भी,
नजरें दीवारों पर क्यों,
टकटकी लगाये रहती हैं।
है असर मुहब्बत का…
Added by Ajay Kumar Sharma on November 3, 2015 at 5:26pm — 2 Comments
Added by Janki wahie on November 3, 2015 at 5:22pm — 14 Comments
मॉल से दीवाली की ढेर सारी खरीदारी करके जैसे ही कार से गेट के बाहर निकले,एक गुब्बारे बेचने वाला कम उम्र का लड़का दौड़कर आया और गुब्बारे खरीदने की इल्तिज़ा करने लगा।
"अरे नहीं चाहिये भैया !"
"ले लो ना बीबी जी! "
"हां मम्मा ! ले लो ना मुझे चाहिये "
"अरे नहीं बेटा! क्या करोगे?अभी इतने सारे खिलौनें खरीदे है ना।"
"जाओ भैया!हमें जरूरत नहीं ।"उसने झिड़कने के अंदाज में कहा ।
लड़का थोड़ा हताश हुआ और बोला -
"कुछ चीजें जरूरी तो नहीं जब जरूरत हो तभी खरीदी जाए बीबी…
Added by Rahila on November 3, 2015 at 12:30pm — 11 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on November 3, 2015 at 11:42am — 6 Comments
“आज उदास क्यूँ हो बेटा क्या सोच रहे हो ”? जलेबी पकड़ाते हुए पापा ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा| “पापा मैं एक बहुत बड़ी दुविधा में हूँ आपको तो पता है मैं चित्रकला और काव्य लेखन दोनों ही विधाओं को पसंद करता हूँ तथा दिन रात मेहनत करता हूँ आगे अपना कैरियर भी इन्हीं में से किसी एक को लेकर बनाना चाहता हूँ” वैभव ने कहा | “तो फिर इसमें कैसी दुविधा है बेटा”?
“पापा मैं तो दोनों में ही अपने को कुशल समझता था पर चुनाव करने में असमंजस में था तो मैंने सोचा क्यूँ न मैं इन विधाओं…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 3, 2015 at 11:38am — 14 Comments
बेटी सनाया के लिए वर अनुसन्धान में हलकान होती रीमा के लिए वो बाँका सुदर्शन किरायेदार आशा की किरण लेकर आया था। इतनी अच्छी तनख्वाह और सभी ऐबों से दूर रहने वाले अश्विन को लेकर उनका मन कुलाँचें भरने लगा।
अब तो वक़्त बेवक़्त पकवान बनकर उसके पास पहुंचने लगे।हर वक्त बेटी की होशियारी का बखान और ममता लुटाने में कोई कसर न छोड़ी थी रीमा ने।कुछ दिन के लिए अपने घर गया अश्विन आज लौटने वाला था।उसे घेरने की पूरी तैयारी कर ली थी उन्होंने।इस बार बेटी के जन्मदिन पर उसकी सगाई का ऐलान करके दोहरे जश्न की…
Added by jyotsna Kapil on November 3, 2015 at 11:30am — 6 Comments
2122 2122 2122 212
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बारिशों के हादसे जब दामनों तक आ गए
दुख मेरी तन्हाइयों की बस्तियों तक आ गए /1
याद मुझको तो नहीं हैं ठोकरें मैंने भी दी
क्यों ये पत्थर रास्तों के मंजिलों तक आ गए /2
सोचकर निकले थे बाहर कुछ उजाला ढूँढ लें
घर के तम लेकिन हमारे रास्तों तक आ गए /3
नाव जर्जर और पतवारें रहीं सब अनमनी
क्या बताएं किस तरह हम साहिलों तक आ गए /4
हो रही है माँग हर शू जाति क्या औ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 3, 2015 at 10:47am — 14 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on November 3, 2015 at 9:26am — 20 Comments
घर से निकलते समय मुझे ये पता ही न रहा कि मैने पुरानी चप्पल डाली है | थोड़ी दूर चलने के बाद चप्पल टूट गई, इसी दुबिधा में कि घर वापस जाऊं या आगे,मैं टूटे चप्पल के साथ पैर घसीटते हुए आगे बढ़ गया | अचानक मेरा ध्यान सड़क के किनारे बैठे जूतियाँ गांठने वाले पर पड़ी, उसके नजदीक जा मैने चप्पल आगे बढ़ा दी |
" पांच रुपए लगेंगे " उसने नजरें चप्पल की और डालते हुए कहा |"
कोई बात नहीं " आप इसे ठीक कर दो |,
मैने उसकी आवाज़ पहचानते हुए थोडा सोच पे जोर देते हुए कहा |
"…
Added by मोहन बेगोवाल on November 3, 2015 at 1:00am — 8 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 2, 2015 at 10:30pm — 18 Comments
1222—1222—1222—1222 |
|
नज़र अपनी सितारों पर टिकाने से जरा पहले |
जमीं पर तुम जमा लेना सलीके से कदम अपने |
|
फलक को चाँद भी रौशन करे खुद के उजालों… |
Added by मिथिलेश वामनकर on November 2, 2015 at 5:28pm — 14 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 2, 2015 at 5:09pm — 1 Comment
इन्तिज़ार इन्तिज़ार है तो है
ऐतबार ऐतबार है तो है /१
मैं हूँ नादाँ अगर तो, हूँ तो हूँ
वो अगर होशियार है तो है /२
छोड़कर मुझको सिर्फ़ इक वो चाँद
हिज़्र का राज़दार है तो है /३
कल वो हँसता था मेरी हालत पर
वो भी अब बेक़रार है तो है /४
दीद का लुत्फ़ हो गया हासिल
अब नज़र कर्ज़दार है तो है /५
...........................................
सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित
अरकान: २१२२ १२१२ २२
Added by Saarthi Baidyanath on November 2, 2015 at 3:30pm — 4 Comments
ऑफिस से आकर सबसे पहले टीवी ऑन किया तो गलती से दूरदर्शन लग गयाI इसे देख कर लगा की देश अपनी रफ़्तार से प्रगति कर रहा हैI चारों और शांति हैI सब अपना अपना काम कर रहे हैI हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब एकता की मिसाल दे रहे हैI और भारत दुनिया के अग्रसर देशो में शुमार होने जा रहा हैI लेकिन जैसे ही निजी न्यूज़ चेंनलो की और बढ़ा तो लगा, देश में साम्प्रदायक माहौल बिगड़ गया हैI चारो और हत्याए हो रही हैI हर जगह दंगे भड़क गए हैI चारो और धारा144 लगी हुई हैI सवर्ण दलितों को मार रहे हैI जगह जगह बलात्कार हो…
ContinueAdded by harikishan ojha on November 2, 2015 at 2:10pm — 7 Comments
वो कहते हैं तू कट्टर (पत्थर) है
बहर:-1222-1222-1222-1222
नहीं मिलती तबीयत तो ,वो कहते हैं तू पत्थर है
मगर जाना नही उसने, की कितना मन समंदर है
हुई हरकत बुरी हमसे ,बदलने की जो कोशिस की
तभी मालुम हुआ हमको, खिलाड़ी तो सितमगर है
सिला अपनी मुहब्बत का,लिखा पन्ने पे जब मैंने
खुदा भी रो पड़ा बोला, धरा का तू सिकंदर है
जो मुंसिफ घर गया उनके, उधारी में दिया लेने
चिरागां हंस के बोला तब,अँधेरा तेरे अंदर है
बताओ रास्ता मुझको…
Added by amod shrivastav (bindouri) on November 2, 2015 at 1:30pm — 11 Comments
नवेली बहू और बेटे के साथ आँगन में मेहमान जमे थे I तभी जोर जोर से तालियाँ और मर्दानी आवाजों में गाते , चार हिजड़े घर में आ गए I घबरा कर वो अन्दर आ गई I तालियों की आवाज़ चेतना में हथौड़े चला रही थी I
"बहू वो नेग लेने आये हैं I तू भी बाहर आ जा ,दूल्हे की अम्मा है तू " सास अन्दर आ गई थी I "क्या हुआ ? थक गई है ?रहने दे ,आराम कर " I
सास के बाहर जाते ही वो पलंग पर गिर गई Iआँखों से यादें बहकर चादर भिगोने लगीं Iपचास साल पहले उसके घर भी आये थे ये ,तालियाँ बजाते नेग लेने नहीं , छोटे…
ContinueAdded by pratibha pande on November 2, 2015 at 1:00pm — 9 Comments
221—2122—221--2122 |
|
संसार हो गया है, अब अंगहीन जैसे |
सब लोग सोचते है, केवल मशीन जैसे |
|
ये जात ही जुदा है, बस नाम ‘लोकसेवक’… |
Added by मिथिलेश वामनकर on November 1, 2015 at 11:00pm — 14 Comments
Added by Manan Kumar singh on November 1, 2015 at 10:00pm — 11 Comments
Added by Janki wahie on November 1, 2015 at 6:40pm — 13 Comments
221 2121 1221 212
उनके खजाने जैसे ही वोटों से भर गये नकली लगे हुए वो मुखौटे उतर गये
आकाश में उड़े न उड़े फिक्र क्या उन्हें ,जाते हुए गरीब के वो पर कुतर गए … |
Added by rajesh kumari on November 1, 2015 at 6:30pm — 15 Comments
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