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याद नहीं - कुछ अशआर

जोश-ए-वस्ल में हुजूर को, उम्र का तकाजा याद नहीं

तड़पता जिस्म, भरी आँखे, कैसे हुआ कलेजा याद नहीं

 

भूल गया था वहशी, थी फकत शरारत की इक रात

हया और ज़िल्लत-ए-ज़माना, कब उठा जनाजा याद नहीं

 

होठों पे हंसी थी उनके और आँखों में चमक झलकी थी

दफ़न ही था दर्दे-दिल फिर, कैसे हुआ अंदाजा याद नहीं

 

राह बजी जब सीटियाँ, कान बंद और नज़र झुकी रहीं  

जुनूने इश्क में जालिम ने, कब कसा शिकंजा याद नहीं

 

ज़माना क्यों नहीं देखता, मन की पाकीजगी नारी की

मैले परदे की छुपन है बस कब टूटा दरवाजा याद नहीं

 

नज़ूमी क्या लिखता तकदीर “निधि” जो टूट गए अरमान

अदालत ने क्या लिखा, और क्या हुआ नतीजा याद नहीं 

निधि 

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2015 at 11:42pm

आपने कोई बहर ली भी है, आदरणीया निधिजी ? ऐसा न होने पर कोई लाभ नहीं होगा आपकी मेहनत को .. 

Comment by Shyam Narain Verma on December 17, 2015 at 5:31pm
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
Comment by Saarthi Baidyanath on December 17, 2015 at 2:04pm

बहुत खूब , वाह वाह 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 16, 2015 at 11:59pm

इस शानदार प्रयास पर हार्दिक बधाई आदरणीया निधि जी 

Comment by Samar kabeer on December 16, 2015 at 10:20pm
मोहतरमा निधि अग्रवाल जी,आदाब,आपने अरकान नहीं लिखे हैं,इस वजह से आपके अशआर समझने में दिक़्क़त हो रही है ।

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