For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,140)

सबके अपने अपने मठ हैं - नवगीत

व्हाट्सएप्प हो या मुखपोथी*

सबके अपने-अपने मठ हैं

दिखते हैं छत्तीस कहीं पर,

और कहीं पर वे तिरसठ हैं

*फेसबुक 

 

रंग निराले, ढंग अनोखे,

ओढ़े हुए मुखौटे अनगिन…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on December 9, 2018 at 9:30pm — 6 Comments

कुंठा - लघुकथा -

कुंठा - लघुकथा -

आदरणीय मामाजी,

आपने मेरे लिये जो किया वह मैं जीवन भर नहीं भूल सकता। आपने अपना भविष्य दॉव पर लगा दिया| आपकी बी ई की पढ़ाई छूट गयी। वह घटना मेरे जीवन की भयंकर भूल थी।जिसके अपराध बोध से आज तक ग्रसित हूँ।

उस समय मैं केवल  सात साल का था अतःइतना डर गया था कि सच नहीं बोल सका।

इतने साल बाद आज मैं आपको सच बताने का साहस जुटा पाया हूँ|

दिवाली की उस रात  खाने के बाद आप जब पान खाने जाने लगे तो मैं भी जिद करके आपके साथ चल दिया था।

आपने पान वाले को…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on December 8, 2018 at 7:28pm — 6 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८०

२१२२ २१२२ २१२२ २१२



ज़र्बे दिल तू दे, पे हम दिल की दवाई तो करें

हम तेरी ख़ू ए गुनह की मुस्तफ़ाई तो करें //१



कह के दिल की बात किस्मत आज़माई तो करें

करते हों गर वो जो मुझसे कज अदाई तो करें //२ 



नफ़रतों को ख़त्म कर दिल की सफ़ाई तो करें

आप समझें गर हमें भी अपना भाई,तो करें //३ 



गर मिलें हम, कुछ नहीं पर, ख़ुश अदाई तो करें 

आप हमसे…

Continue

Added by राज़ नवादवी on December 8, 2018 at 3:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल

122 122 122 122



दिया आप ने था हमें जो सिला कुछ ।

बड़ा फैसला हमको लेना पड़ा कुछ ।।

कहा किसने अब तक नहीं है जला कुछ ।

धुंआ रफ़्ता रफ़्ता है घर से उठा कुछ ।।

बहुत हो चुकी अब यहाँ जुमले बाजी ।

तुम्हारे मुख़ालिफ़ चली है हवा कुछ ।।

बहुत दिन से ख़ामोश दिखता है मंजर ।

कई दिल हैं टूटे हुआ हादसा कुछ ।।

कदम मंजिलों की तरफ बढ़ गए जब ।

तो अब पीछे मुड़कर है क्या देखना…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on December 8, 2018 at 1:04am — 8 Comments

अख़बारों की बातें छोड़ो कोई ग़ज़ल कहो (ग़ज़ल)

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २

अख़बारों की बातें छोड़ो कोई ग़ज़ल कहो

ख़ुद को थोड़ा और निचोड़ो कोई ग़ज़ल कहो

वक़्त चुनावों का है, उमड़ा नफ़रत का दर्या

बाँध प्रेम का फौरन जोड़ो कोई ग़ज़ल कहो

हम सबके भीतर सोई जो मानवता…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 7, 2018 at 10:48pm — 6 Comments

दो क्षणिकाएं :

दो क्षणिकाएं :

पिघल गयी
दे कर आघात
बेदर्दी याद

......................

ढाया कह्र
आफ़ताब ने
ओस की बूँद पर
बिखर गई रेज़ा-रेज़ा
तन्हा-तन्हा
रोया गुलाब

.....................

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 7, 2018 at 8:56pm — 10 Comments

सारे जहाँ से अच्छा (कहानी )

 भिखारी सोचता रहा. आधी रात लगभग बीत चुकी थी . लेकिन उसकी आँखों में नींद कहाँ ? पिछले एक सप्ताह से वह ज्वर में तप रहा था. इस अवधि में गरमागरम चाय और नमकीन बिस्किट की कौन कहे, उसे ढंग की दवा तक नसीब नहीं हुयी . वह तो भला हो उस ‘लंगड़े’ का जो किसी तरह ‘अजूबी’ की कुछ टिकिया ले आया था. पर उससे क्या ? आज तो भिखारी के शरीर में इतनी भी ताब न थी कि वह घड़े में रखे कई दिनों के बासी और सड़े–गले पानी को मिट्टी के प्याले में ढालकर अपनी प्यास बुझा पाता . उसने पथराई आँखों से अँधेरी झोंपड़ी में चारों ओर देखा .…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 7, 2018 at 12:48pm — 6 Comments

गज़ल -15 (हस्ती ही मिट गई है तेरे इस ग़ुलाम की )

221-2121-1221-212



धज्जी उड़ी हुई है सभी इन्तज़ाम की

क़ानून की सिफ़त है बची सिर्फ नाम की//१

तुम थे हवा हवाई बचा के नज़र गए

मेरी तरफ़ से कब थी मनाही सलाम की।//२

दिल में जगा के टीस चले मुस्कुरा के तुम

अब दिल में धक लगी है तुम्हारे पयाम की//३

बौरा के जब बसन्ती हवा झूमती चले

कोयल सुनाए कूक तुम्हारे कलाम की//४

अब ज्ञान बाँटने का है ठेका उन्हें मिला

जो खा रहे हैं मुफ़्त में बिल्कुल हराम की/५

इक शाम जो…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on December 6, 2018 at 10:31pm — 7 Comments

एक ग़ज़ल इस्लाह के लिए

221   1221    1221    122

वेदना के पल कुँवारे ले चलो
कुछ तो जीने के सहारे ले चलो

दिल बहुत मायूस है परदेस में
बस हमें अब घर हमारे ले चलो

झील सी आंखों में हैं खामोशियाँ
थोड़े से सपने उधारे ले चलो

मैकदे में बंटती है अब भी शिफा
मैकदे में ज़ख्म सारे ले चलो

दुनिया मे महफूज कोई भी नहीं
साथ कितने भी सहारे ले चलो

मौलिक और अप्रकाशित

Added by मनोज अहसास on December 6, 2018 at 8:38pm — 7 Comments

दिल भी मिलाना है

मापनी २२१ १२२२ २२१ १२२२ 

नफरत के’ किले सारे, हमको ही’ ढहाना है

जो हाथ मिलाया है, तो दिल भी’ मिलाना है



यूँ रोज हमें खलती, पानी की’ कमी बेशक…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on December 6, 2018 at 4:49pm — 8 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७९

२२१२ २२१२ २२१२ १२



जब से मैं अपने दिल का सूबेदार हो गया

सहरा भी मेरे डर से लालाज़ार हो गया //१



छोड़ा जो तूने साथ, ख़ुद मुख्तार हो गया

तू क्या, ज़माना मेरा ख़िदमतगार हो गया //२



आईन मेरा ग़ैर क्या बतलायेंगे मुझे

मैं ख़ुद ही अपना आइना बरदार हो गया //३



गर बेमज़ा है आशिक़ी मेरे हवाले से

तू क्यों फ़साने में मेरे किरदार हो गया…

Continue

Added by राज़ नवादवी on December 6, 2018 at 3:00pm — 11 Comments

एक ग़ज़ल इस्लाह के लिए

थोडा सा मुस्काने से गम हल्का भी हो सकता है

हर पल की तड़पन से दिल को खतरा भी हो सकता है

अक्सर धोखा हो जाता है देर से प्यासी आंखों को

तुम जिसको दरिया कहते हो सहरा भी हो सकता है

मैं तो अपने दिल से ही हर बार शिकायत करता हूं

वो भी मुझको भूल गया हो ऐसा भी हो सकता है

अब तो मैं यह सोच कर उसकी राहों से हट जाता हूं

इन आंखों से उसका दामन मैला भी हो सकता है

लोग तो अपने मन से बस इल्जाम लगाते रहते हैं

जो दरिया…

Continue

Added by मनोज अहसास on December 5, 2018 at 11:30pm — 6 Comments

एक ग़ज़ल इस्लाह के लिए

221    2121     1221     212

माबूद कह दिया कभी मनहूस कह दिया

उसकी निगाहों ने सदा तस्लीम ही कहा

मुझको ये कैसा दिल दिया तूने मेरे खुदा

जिसको खुशी और गम का सलीका नहीं पता

ओझल नजर से हो गई तस्वीर आपकी

बस इतना होने के लिए क्या-क्या नहीं हुआ

जीवन के सारे हादसे आंखो में आ गए

मुरझा के एक फूल जो मिट्टी में जा गिरा

आया है अब की बार इक दूजे ही रंग में

तन्हाइयों से दर्द का रिश्ता नया…

Continue

Added by मनोज अहसास on December 5, 2018 at 10:53pm — 4 Comments

ख़्याल ...

ख़्याल ...

मैं सो गयी
इस ख़्याल से
कि तेरा ख्याल भी
साथ मेरे सो जाएगा
मगर
तेरा ख़्याल
तमाम शब्
मेरी नींदों से
खिलवाड़ करता रहा
मैं उनींदी सी सोयी रही
उसके लम्स
मेरे ज़ह्न को
झिंझोड़ते रहे
अंततः
सौंप दिया स्वयं को
ख़्याल बनके
उस ख़्याल के हवाले

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 5, 2018 at 6:54pm — 3 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७८

१२१२ ११२२ १२१२ २२ 



कभी तो बख्त ये मुझपे भी मेहरबाँ होगा

मेरी ज़मीन के ऊपर भी आस्माँ होगा //१



गवाह भी नहीं उसका न कुछ निशाँ होगा

जो तेरे हुस्न के ख़ंजर से कुश्तगाँ होगा //२



हम एक गुल से परेशाँ हैं उसकी तो सोचो

वो शख्स जिसकी हिफ़ाज़त में गुलसिताँ होगा //३



ये ख़ल्क हुब्बे इशाअत का इक नतीजा है

गुमाँ नहीं था कि होना सुकूंसिताँ होगा…

Continue

Added by राज़ नवादवी on December 5, 2018 at 3:27pm — 6 Comments

ग़ज़ल

221 2121 1221 212

अच्छी लगी है आपकी तिरछी नज़र मुझे ।।

समझा गयी जो प्यार का ज़ेरो ज़बर मुझे ।।1

आये थे आप क्यूँ भला महफ़िल में बेनक़ाब ।

तब से सुकूँ न मिल सका शामो सहर मुझे ।।2

नज़दीकियों के बीच बहुत दूरियां  मिलीं ।

करना पड़ा है उम्र भर लम्बा सफर मुझे ।।3…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on December 5, 2018 at 12:34am — 10 Comments

गज़ल -14( खुदा की सारी रहमत इश्क के आँचल में रहती है)

1222-1222-1222-1222



अगर दिल को अदब औ शायरी से प्यार हो जाए

तुम्हें भी इश्क की खुशबू का कुछ दीदार हो जाए //१

मचलते दिल की धड़कन में चुभे जब इश्क का कांटा ।

ख़ुदा से रूह का रिश्ता तभी बेदार हो जाये//२

खुदा की सारी रहमत इश्क़ के आँचल में रहती है

छुपा लो सर को आँचल में हसीं संसार हो जाए//३

फ़ना हो जाए दीवाना जुनूने इश्क़ की ख़ातिर

खुशी से चूमे सूली को ख़ुदा का यार हो जाए//४

ये दिल बेजान वीना की तरह खामोश रहता…

Continue

Added by क़मर जौनपुरी on December 5, 2018 at 12:23am — 7 Comments

हौं पंडितन केर पछलगा -उपन्यास का एक अंश

 जायस के ऊसर में खानकाह बने कई माह बीत चुके थे I किछौछा से आये हजरत खवाजा मखदूम जहाँगीर किसी परिचय के मोहताज नही थे I बहुत जल्द ही उनके पास मुरीदों और मन्नतियों की भीड़ आने लगी i मुहम्मद यद्यपि छोटा था पर वह अक्सर वहाँ जाने लगा i वह बुजुर्ग पीर के छोटे-मोटे काम कर देता I पीर तो उसका भविष्य जान ही चुके थे I  वह भी उसे अपने पोते की तरह मानने लगे I

 एक दिन पीर सफ़ेद भेड़ की उन का लम्बा चोगा पहने अपनी पसंदीदा खानकाह में बैठे थे I उनके चेले और कुछ मजहबपरस्त लोग उन्हें घेरे हुए थे…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 4, 2018 at 8:57pm — 5 Comments

ग़ज़ल - 01

२१२२ २१२२ २१२२ २१२२

दुश्मनी को भूल जाऊँ दोस्ती की बात तो हो

नफरतों को छोड़ भी दूँ इश्क़ के हालात तो हो।…

Continue

Added by Ashish Kumar on December 4, 2018 at 1:30pm — 7 Comments

ओढ़े बुढ़ापा  जी  रहा  बचपन कोई न हो - ( गजल)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१ २१२१/२२२/१२१२



घर में किसी के और अब अनबन कोई न हो

सूना  पड़ा  हमेशा   ही  आगन  कोई   न  हो।१।



कुछ  तो  सहारा  दो  उसे  हँसने  जरा लगे

होकर निराश  घुट  रहा  जीवन  कोई न हो।२।



झुकना पड़े तनिक तो खुद झुकना सदा ही तुम

यारो  मिलन  की  राह  में  उलझन  कोई न हो।३।



आओ बनायें आज फिर ऐसा समाज हम

ओढ़े बुढ़ापा  जी  रहा  बचपन कोई न हो।४।



जल जाएँ…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2018 at 12:22pm — 14 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
21 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service