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कौन कितना है मदारी जानते हो

2122 2122 2122


खेल क्या तुम भी सियासी जानते हो ।
कौन कितना है मदारी जानते हो ।।

फैसला ही जब पलट कर चल दिये तुम।।
फिर मिली कैसी निशानी जानते हो।।

हो रहा  है देश का सौदा कहीं  पर ।
खा  रहे  कितने  दलाली  जानते  हो।।

मसअले पर था ज़रूरी मशविरा भी ।
तुम  हमारी  शादमानी  जानते हो।।

दांव पर  बस  दांव  लगते  जा रहे हैं ।
हो गयी ख़्वाहिश जुआरी जानते हो।।

लोग हैराँ  हो  रहे  हैं  देखकर यह ।
तुम सितम की  तर्जुमानी  जानते हो।।

झपकियों पर क्यूँ उठी हैं उंगलियां ये ।
किस तरह  रातें गुज़ारी जानते  हो।।

हाले दिल बस पूछते हो बारहा तुम ।
क्यों गिरा आंखों से पानी जानते हो ।।

चन्द उम्मीदों की ख़ातिर सांस जिंदा ।
यार तुम  ये  बेक़रारी  जानते   हो ।।

मैं अदा कैसे  करूँगा  कर्ज   कोई।
बेटियां  घर  में  सयानी जानते हो।।

वक्त पर परखा  गया वह आदमी जब ।
सारा जुमला  है  चुनावी जानते हो ।।

        -- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी
           मौलिक अप्रकाशित



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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 22, 2018 at 12:06pm

वाह बढ़िया आदरणीय त्रिपाठी जी..

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on December 19, 2018 at 8:57am

आदरणीय डॉ नवीन मणि जी यथार्थ को आईना दिखातीबहुत ही सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई

Comment by राज़ नवादवी on December 18, 2018 at 7:35pm

आदरणीय समर कबीर साहब/ नवीन मणि त्रिपाठी जी, मुझे स्पष्टता प्रदान करने के लिए हार्दिक आभार. सादर 

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 18, 2018 at 7:24pm

आ0 समर कबीर सर सादर नमन के साथ आभार । आ0 राज नावादवी साहब तहे दिल से शुक्रिया । आप से सहमत हूँ । मिसरा बदल दिया ।

रात कैसे है गुज़ारी जानते हो ।।

Comment by Samar kabeer on December 18, 2018 at 3:56pm

// 
इस शेर में चूँकि 'मैंने' या 'हमने' छुपा है, और गुज़ारना' 'रातों' के लिए आया है जो बहुवचन है, मेरे ख़याल से 'गुज़ारी' के बदले 'गुजारीं ' लफ्ज़ आएगा, और उस सूरत क़ाफिया दोषपूर्ण हो जाएगा. क्या मैं सही सोच रहा हूँ?//

सहमत हूँ आपसे ।

Comment by राज़ नवादवी on December 18, 2018 at 3:47pm

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी एवं जनाब समर कबीर साहब, मेरी एक शंका है, 

झपकियों पर क्यूँ उठी हैं उंगलियां ये ।
किस तरह  रातें गुज़ारी जानते  हो।।

इस शेर में चूँकि 'मैंने' या 'हमने' छुपा है, और गुज़ारना' 'रातों' के लिए आया है जो बहुवचन है, मेरे ख़याल से 'गुज़ारी' के बदले 'गुजारीं ' लफ्ज़ आएगा, और उस सूरत क़ाफिया दोषपूर्ण हो जाएगा. क्या मैं सही सोच रहा हूँ? वैसे सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई. सादर.

Comment by Samar kabeer on December 18, 2018 at 3:08pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by PHOOL SINGH on December 18, 2018 at 12:24pm

बहुत खूब, त्रिपाठी जी बधाई स्वीकारे

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