For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,122)

ग़ज़ल: बारम्बार सियासत की क्या (५ )

( 22 22 22 22 22 22 22 2 )

***

बारम्बार सियासत की क्या यह नादानी अच्छी है ? 

धर्मों की आपस में क्या आतिश भड़कानी अच्छी है ? 

***

रखना दोस्त बचाकर मोती कुछ ख़ुशियों की  ख़ातिर भी 

छोटे मोटे ग़म पर आती क्या तुग़्यानी* अच्छी है ?(*बाढ़ )

***

सोचा समझा था पुरखों ने फिर कानून बनाये कुछ 

आज़ादी की ख़ातिर तन की क्या उर्यानी* अच्छी है…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 27, 2018 at 11:30am — 8 Comments

अंतिम संस्कार :लघुकथा:हरि प्रकाश दुबे

“अरे सुनो !”

“अभी अम्मा जाग रहीं है... चुप !”

“बक पगली, कुछ काम की बात है, इधर तो आओ !”

“हां , बोलो !”

अरे ये मूँगफली का ठेला अब बेकार हो गया है, कोई कमाई नहीं रही !”

“काहें, अब का हुआ?!”

अरे, ससुरे सब आतें हैं , थोडा सा कुछ खरीदतें हैं बाकी सब फोड़-फोड़ चबा जातें है, जानती…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on December 26, 2018 at 8:30pm — 3 Comments

दिल जो टूटा अभी तक जुड़ा ही नहीं

212 212 212 212

कैसे कह दूं हुआ हादसा ही नहीं ।

दिल जो टूटा अभी तक जुड़ा ही नहीं।।

तब्सिरा मत करें मेरे हालात पर ।

हाले दिल आपको जब पता ही नहीं ।।

रात भर बादलों में वो छुपता रहा ।

मत कहो चाँद था कुछ ख़फ़ा ही नहीं ।।

आप समझेंगे क्या मेरे जज्बात को ।

आपसे जब ये पर्दा हटा ही नहीं ।।

मौत भी मुँह चुराकर गुज़र जाती है ।

मुफ़लिसी में कोई पूछता ही…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on December 26, 2018 at 6:02pm — 9 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८८

2212 1212 2212 12



रुक्का किसी का जेब में मेरी जो पा लिया

उसने तो सर पे अपने सारा घर उठा लिया //१



लगने लगा है आजकल वीराँ ये शह्र-ए-दिल

नज्ज़ारा मेरी आँख से किसने चुरा लिया //२



ममनून हूँ ऐ मयकशी, अय्यामे सोग में

दिल को शिकस्ता होने से तूने बचा लिया //३



सरमा ए तल्खे हिज्र में सहने के वास्ते

दिल में बहुत थी माइयत, रोकर…

Continue

Added by राज़ नवादवी on December 26, 2018 at 4:00pm — 20 Comments

गर मीर* ही न ध्यान रखेगा अवाम का। .....(४)

गर मीर* ही न ध्यान रखेगा अवाम का (*नायक )

फिर क्या करे अवाम भी ऐसे निज़ाम का 

***

अब तक न याद आई थी उसको अवाम की 

क्या रह गया यक़ीन फ़क़त आज राम का 

***

दौलत कमाई ख़ूब मगर इतना याद रख-

"बरकत नहीं करे कभी पैसा हराम का "

***

बेकार तो जहाँ में नहीं जिन्स* कोई भी (*वस्तु )

गर्द-ओ-गुबार भी कभी होता है काम…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 26, 2018 at 2:30pm — 14 Comments

एक ही  सपना  हमारा  जी  हजूरी की जगह - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

अब किसी के मुख न उभरे कातिलों के डर दिखें

इस वतन में हर तरफ खुशहाल सब के घर दिखें।१ ।



काम हासिल हो सभी को जैसा रखते वो हुनर

फैलते सम्मुख किसी के अब न यारो कर दिखें।२।



भाईचारा जब हो कहते हम सभी के बीच तो

आस्तीनों में छिपाये  लोग  क्यों खन्जर दिखें।३।



हौसला कायम रहे  यूँ सच बयानी का सदा

आईनों के सामने आते न अब पत्थर दिखें।४।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2018 at 10:51am — 3 Comments

क़ैद मैं....संतोष

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फेलुन

क़ैद मैं, कैसे दायरे में हूँ

कौन है जिसके सिलसिले में हूँ

आप तो मीठी नींद सोते हैं

और मैं सदियों…

Continue

Added by santosh khirwadkar on December 26, 2018 at 7:00am — 4 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
जश्न सा तुझको मनाऊँ (एक गीत )

गुनगुनी सी आहटों पर

खोल कर मन के झरोखे

रेशमी कुछ सिलवटों पर सो चुके सपने जगाऊँ..

इक सुबह ऐसी खिले जब जश्न सा तुझको मनाऊँ..

साँझ की दीवानगी से कुछ महकते पल चुराकर

गुनगुनाती इक सुबह की जेब में रख दूँ छिपाकर

थाम कर जाते पलों का हाथ लिख दूँ इक कहानी

उस कहानी में लिखूँ बस साथ तेरा सब मिटाकर

हर छुपे एहसास को…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on December 25, 2018 at 11:12pm — 7 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
कुछ अपनी कुछ जग की : तब और अब बनाम बच्चे परिवार को वृत बनाते हैं // -- सौरभ

 

आज मन फिर से हरा है। कहें या न कहें, भीतरी तह में यह मरुआया-सा ही रहा करता है। कारण तो कई हैं। आज हरा हुआ है। इसलिए तो नहीं, कि बेटियाँ आज इतनी बड़ी हो गयी हैं, कि अपनी छुट्टियों पर ’घर’ गयी हैं, ’हमको घर जाना है’ के जोश की ज़िद पर ? चाहे जैसे हों, गमलों में खिलने वाले फूलों का हम स्वागत करते हैं। मन का ऐसा हरापन गमलों वाला ही फूल तो है। इस भाव-फूल का स्वागत है।

अपना 'तब वाला' परिवार बड़ा तो था ही, कई अर्थों में 'मोस्ट हैप्पेनिंग' भी हुआ करता था। गाँव का घर, या कहें,…

Continue

Added by Saurabh Pandey on December 25, 2018 at 2:00pm — 2 Comments

कुछ अलग सी वजह-- लघुकथा



आज उसके छह महीने पूरे हो रहे थे, कल से वह वापस अपनी खूबसूरत और आरामदायक दुनिया में जा सकता था. उसे याद आया, जब से सरकार ने नियम बनाया था कि हर डॉक्टर को छह महीने गांव में प्रैक्टिस करनी पड़ेगी, उसके लिए यह करना सबसे कठिन था. पिताजी की अच्छी खासी दुनिया थी उस महानगर में, बड़ी हवेली, भरा पूरा परिवार और हर तरह की सुख सुविधा. एम बी बी एस करने के बाद सबने यही कहा था कि छह महीने तो फटाफट गुजर जायेंगे और उसके बाद पिताजी महानगर में ही सब इंतज़ाम करा देंगे.

गांव में जिसके घर वह रह रहा था,…

Continue

Added by विनय कुमार on December 25, 2018 at 1:12pm — 6 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८७

2212 1212 2212 12



आती नहीं है नींद क्यों आँखों को रात भर

हमने तो उनसे की थी बस दो टूक बात भर //१



दिल में न और ज़िंदगी की ख्व़ाहिशात भर

हस्ती है सबकी नफ़सियाती पुलसिरात भर //२



पढ़ ले तू मेरी आँख में जो है लिखा हुआ

गरचे किताबे दिल नहीं है काग़ज़ात भर //३



हर आदमी में मौत की ज़िंदा है एक लौ

तारीकियों की बज़्म ये रौशन है रात भर //४…

Continue

Added by राज़ नवादवी on December 25, 2018 at 12:17pm — 15 Comments

विरासत ...

विरासत ...

तुम

देर तक

ठहरे रहे

मेरे संग

बरसात में भीगते हुए

जो सोचा था

वो कह न सकी

जो कहा

वो सोचा न था



लबों की जुम्बिश से

यूँ लगता था जैसे

तुमने भी

मुझसे मिलकर

कुछ कहना था शायद

जो कह न सके

मेरी तरह

देर तक

तुम्हारी नज़रों के

लम्स

ख़ामोश अहसासात का

तर्ज़ुमा करते रहे

बरसात होती रही

अलफ़ाज़

इश्क की इबारत गढ़ते रहे

अपनी अपनी खामोशी में

हम…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 24, 2018 at 7:51pm — 4 Comments

ग़ज़ल:पुरखार रहगुज़र है चलना सँभल सँभल के......(३)

(221 2122 221 2122 )



पुरखार रहगुज़र है चलना सँभल सँभल के

आसाँ नहीं निभाना मत लेना इश्क़ हल्के

***

सच कह रहे हैं हमने देखा बहुत ज़माना

रह जाएँ आग में सब आशिक़ कहीं न जल के

***

दम तोड़ती यहाँ पर आई नज़र है हसरत

देखे हैं लुटते अरमाँ हर पल मचल मचल के

***

जो चाहते हैं अपना चैन-ओ-सुकून खोना

मैदाँ में वो ही आये हाथों में थूक मल के

***

अक़्सर यहाँ पे पड़ता मिर्गी के जैसा दौरा

कटती है रात सारी करवट बदल बदल के

***…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 24, 2018 at 11:30am — 6 Comments

कुण्डलिया छन्द

कुण्डलिया

जन को ढलना चाहिए, मौसम के अनुकूल

संकट होगा स्वास्थ्य पर, अगर करेंगे भूल

अगर करेंगे भूल, बात यह सही विचारो

खान-पान औ वस्त्र, सही ऋतुशः ही धारो

सतविंदर व्यवहार, सही हो रख पक्का मन

तन इसके अनुरूप, नहीं मन मौसम हो जन!

2.

जय-जय जय-जय हे अरुण!, तुम आभा भंडार

मिलती तुमसे जब किरण, तब चालित संसार

तब चालित संसार, प्रेरणा बात तुम्हारी

ऊर्जा तुमसे देव, मही अम्बर ने धारी

सतविंदर हर श्वास, सतत चलता है निर्भय

युग-युग रहो…

Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on December 24, 2018 at 7:00am — 8 Comments

विरासत- लघुकथा

लगभग सभी रिश्तेदार अब जा चुके थे, चौथी बाहर दालान में बैठे बैठे खलिहान की तरफ देख रहे थे. आज पिताजी को गुजरे १५ दिन बीत गए थे, तेरही ठीक तरह से निपट गयी थी, गांव घर के लोग भी भोज से संतुष्ट थे. बहनें जाते जाते उसको समझा गयी थीं कि अब तुम्हीं घर के बड़े हो और घर की सारी जिम्मेदारी अब तुम्हारी है. माँ बगल की खाट पर लेटी थी, उधर खलिहान में बंधी काली गईया नांद पर चुपचाप खड़ी थी, उसका मुंह नांद में कम ही जा रहा था.

"क्या पिताजी, आप रोज इस काली गईया को क्यों खाते समय सहलाते हैं. अरे आख़िरकार यह… Continue

Added by विनय कुमार on December 24, 2018 at 12:07am — 4 Comments

फ़न-फ़ेअर (संस्मरण)

पिछले महीने की ही बात है। गुड्डू को लेकर हम सभी सपरिवार अपने बच्चों के स्कूल में आयोजित 'फ़न-फ़ेअर' दिखाने ले गये। उसके दोनों बड़े भाई-बहन ने मेले में समोसे-पकोड़े की स्टॉल में सहभागिता की थी। बच्चों के प्रोत्साहन और टिकट-ड्रॉ की लालसा में हमने बीस टिकट पहले ही ख़रीद लिये थे, जो गुड्डू के ही पर्स में सुरक्षित रखे हुए थे।

"वाओ! कितना सुंदर गेट सज़ा है! हमारे स्कूल का फ़न-फ़ेअर देखते ही रह जाओगे आप लोग!" वह ऐसे बोला जैसे कि वह यह मेला पहले ही घूम चुका हो या बहुत जानकारी हासिल कर चुका हो।…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 23, 2018 at 5:30pm — 3 Comments

है बहुत कहने को लेकिन अब तो चुप बहतर है।।

बह्र- 2122-2122-2122-22

है बहुत कहने को लेकिन अब तो चुप बहतर है।।

जो समझ पाए न तुम क्या फायदा कहकर है।।

शोर कितना ही मचाये, या करे अब बकझक।

मैं समझ लेता हूँ मेरा दिल भी इक दफ्तर है।।

खुश नशीबी है मेरी नफ़रत मुहब्बत जंग की।

हार कर भी जीतने जैसा ही इक अवसर है।।

अब मैं ढक लेता हूँ  खुद-का ये बदन अच्छे से।

अब नहीं मैं पहले जैसा गन्दगी अंदर है।।…

Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on December 23, 2018 at 3:01pm — 2 Comments

ग़ज़ल --ज़मीँ थे तुम मुहब्बत की.......(२)

ज़मीँ थे तुम मुहब्बत की तुम्हीँ गर आस्माँ होते 

हमारे ग़म के अफ़साने ज़माने से निहाँ* होते (*छुपे हुए )

***

बने हो गैर के ,रुख़्सत हमारी ज़ीस्त से होकर 

न देते तुम अगर धोका हमारे हमरहाँ* होते (*हमसफर )

***

तुम्हारी आँख  की मय को अगर पीते ज़रा सी हम 

तुम्हीं साक़ी बने होते तुम्हीं पीर-ए-मुग़ाँ* होते(*मदिरालय का प्रबंधक ) 

***

बनाया हिज़्र को हमने…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 23, 2018 at 2:00pm — 7 Comments

स्वावलम्बी (लघुकथा)

“अरे यार! हद्द है ये तो, अब क्या इसके हाथ का खाना पड़ेगा?”



लोकल ट्रेन में बैठे एक व्यक्ति ने कहा। एक किन्नर इडली-सांभर के डिब्बों का थैला लिए डिब्बे में घूम रहा था| उसकी आवाज़ और उसके हाव-भाव से लोग उसकी ओर आकर्षित तो हो रहे थे | पर उससे सामान कोई नहीं खरीद रहा था| एक मनचले ने कहा, “ क्यों बे हिजड़े अब हमारे ऐसे दिन आ गए हैं कि ...|”



किन्नर ने उसके प्रतिउत्तर में कहा, “ क्यों रे? क्या तू किसी और तरह का अन्न खाता है?|



मनचले ने घृणा से उसकी ओर देखा|



किन्नर… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 22, 2018 at 10:23am — 10 Comments

हमें तुम भी मिटा पाए नहीं क्या

1222 1222 122

नए हालात पढ़ पाए नहीं क्या ।

अभी तुम होश में आए नहीं क्या ।।

उठीं हैं उंगलियां इंसाफ ख़ातिर ।

तुम्हारे ख़ाब मुरझाए नहीं क्या ।।

सुना उन्नीस में तुम जा रहे हो ।

तुम्हें सब लोग समझाए नहीं क्या ।।

किया था पास तुमने ही विधेयक ।

तुम्हारे साथ वो आए नहीं क्या ।।

जला सकती है साहब आह मेरी ।

अभी तालाब खुदवाए नहीं क्या ।।

है टेबल थप थपाना याद मुझको ।

अभी तक आप शरमाए…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on December 21, 2018 at 5:36pm — 3 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
Saturday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उम्र  का खेल । स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।…See More
Saturday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार…"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपकी लघुकविता का मामला समझ में नहीं आ रहा. आपकी पिछ्ली रचना पर भी मैंने…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service