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तीन क्षणिकाएं :

तीन क्षणिकाएं :

दूर होगई
हर बाधा
निजी स्वतंत्रता की
माँ-बाप को
वृद्धाश्रम
भेजकर

...................

रूकावट था
ईश मिलन में
अपनों का
मोह बंधन
देह दाह से
श्वास प्रवाह
मुक्त हुआ
अंश,
अंश में
विलुप्त हुआ

.........................

निकल पड़ी

पाषाणों से लड़ती
कल कल करती
निर्मल जल धार
हर रुकावट को रौंदती
मिलने
अपने सागर से
पाषाणों के
उस पार


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on December 30, 2018 at 4:22pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन भावों की गहनता पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on December 30, 2018 at 4:22pm

आदरणीय नरेंद्र चौहान जी सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on December 30, 2018 at 4:21pm

आदरणीया प्रतिभा पांडेय जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Samar kabeer on December 29, 2018 at 8:02pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,तीनों ही क्षणिकाएँ उत्तम हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by narendrasinh chauhan on December 29, 2018 at 10:18am

हार्दिक बधाई , आदरणीय सुशील सरना जी

Comment by pratibha pande on December 29, 2018 at 8:21am

आध्यात्मिकता का भाव लिये गहरी बात कहती हर क्षणिका लाजवाब है। हार्दिक बधाई आपको आदरणीय सुशील सरना जी

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