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विरासत ...

तुम
देर तक
ठहरे रहे
मेरे संग
बरसात में भीगते हुए

जो सोचा था
वो कह न सकी
जो कहा
वो सोचा न था


लबों की जुम्बिश से
यूँ लगता था जैसे
तुमने भी
मुझसे मिलकर
कुछ कहना था शायद
जो कह न सके
मेरी तरह

देर तक
तुम्हारी नज़रों के
लम्स
ख़ामोश अहसासात का
तर्ज़ुमा करते रहे
बरसात होती रही
अलफ़ाज़
इश्क की इबारत गढ़ते रहे
अपनी अपनी खामोशी में

हम
वो इबारत पढ़ते रहे
क्या कहने आये थे
क्या कह कर चल दिए
बंद मुट्ठी में विरासत
लम्हों की ले कर
चल दिए
बिन कहे ही कह दिया
सब कुछ यूँ बरसात में
ज़िंदगी को जी लिया
उस लम्हा उस रात में

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on December 30, 2018 at 4:24pm

आदरणीय फूल सिंह जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on December 30, 2018 at 4:23pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन भावों पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by PHOOL SINGH on December 28, 2018 at 2:30pm

"क्या कहने आये थे
क्या कह कर चल दिए
बंद मुट्ठी में विरासत
लम्हों की ले कर
चल दिए
बिन कहे ही कह दिया
सब कुछ यूँ बरसात में
ज़िंदगी को जी लिया
उस लम्हा उस रात में"
बहुत सूंदर रचना, बधाई स्वीकारें

Comment by Samar kabeer on December 26, 2018 at 2:23pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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