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ग़ज़ल: है कितना मुझ पे तुम्हारा क़याम लिख देना।....(६ )

(1212 1122 1212 22 ) 
है कितना मुझ पे तुम्हारा क़याम लिख देना 
उठे जो दिल में वो बातें तमाम लिख देना 
**
ज़रा सा हाशिया आगाज़ में ज़रूरी है 
ख़ुदा का नाम ले ख़त मेरे नाम लिख देना 
***
मुझे बताना कि क्या चल रहा है अब दिल में 
गुज़र रही है तेरी कैसे शाम लिख देना 
***
तरीका और भी है बात मुझ तलक पहुँचे 
हवा के हाथ पे अपना पयाम लिख देना 
***
चमक रही है जो बादल में बिजलियाँ या रब 
उन्ही पे खूब कोई तुम कलाम लिख देना 
***
जो बचपने की मुहब्बत भरी शरारत थी 
कोई है बाक़ी अगर इंतक़ाम लिख देना 
** 
पता चले तो सही क्या वज़ह रही आखिर 
अभी तलक न हुए हम-कलाम लिख देना 
***
है कितना प्यार बता कर क़लम से, आखिर में 
नज़र से दिल से लबों से सलाम लिख देना 
***
तुम्हारे शह्र में आये 'तुरंत' कहने ग़ज़ल 
किया है बज़्म का क्या इंतज़ाम लिख देना
*** 
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी 
24 /10 /2017 
शब्दार्थ - क़याम= विश्वास ,पयाम=सन्देश 
हम-कलाम=आपस में बातचीत
****

(मौलिक और अप्रकाशित )

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