For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,137)

अर्घ्य

सांझ की पंचायत में..

शफ़क की चादर में लिपटा

और जमुहाई लेता सूरज,

गुस्से से लाल-पीला होता हुआ

दे रहा था उलाहना...



'मुई शब..!

बिन बताये ही भाग जाती है..'

'सहर भी, एकदम दबे पांव

सिरहाने आकर बैठ जाती है..'



'और ये लोग-बाग़, इतनी सुबह-सुबह

चुल्लुओं में आब-ए-खुशामद भर-भर कर

उसके चेहरे पे छोंपे क्यूँ मारते हैं?"



उफक ने डांट लगाई-

'ज्यादा चिल्ला मत..

तेरे डूबने का वक़्त आ गया..'



माँ समझाती थी-

"उगते…

Added by विवेक मिश्र on October 21, 2010 at 1:00pm — 10 Comments

"माँ"



(ये मेरी पहली कोशिश है ग़ज़ल लिखनें की... जहाँ गलती हो कृपया करके बे'झिझक बताएं... शुक्रिया...!!)





सख्त रास्तों पर भी आसान सफ़र लगता है...

ये मुझे माँ की दुआओं का असर लगता है...!!



हो जाती है, बोझिल आँखें जब रोते-रोते...

माँ से फ़िर मुश्किल चुराना ये नज़र लगता है...!!



नहीं आती नींद इन मखमली बिस्तरों पर...

माँ की थपकियों का यादों में जब मंज़र लगता… Continue

Added by Julie on October 20, 2010 at 10:30pm — 12 Comments

कहाँ कहाँ से बचा कर निकालते खुद को

कहाँ कहाँ से बचा कर निकालते खुद को
हरेक मोड़ पै कैसे संभालते खुद को

हमारी आँख से दरया कई रवाँ होते
जो आँसुओं की फ़िज़ाओं मैं ढालते खुद को

किसी पै तंज़ की हिम्मत कभी नहीं होती
ज़रा सी देर कभी जो खंगालते खुद को

बड़े ही ज़ोर से आकर ज़मीन पर गिरते
जो आसमान की जानिब उछालते खुद को

बहुत गुरूर है तुमको चिराग होने पर
कभी मचलती हवाओं मैं पालते खुद को

Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 20, 2010 at 9:30pm — 2 Comments

"कवि"



((( यूँ तो हूँ साधारण-सी इंसान बस... पर आजकल भावनाओं को शब्द देने आ गया है और लोग मुझे 'कवि' (कवयित्री) के नाम से पुकारने लगे हैं... पर अभी इस उपाधि से हमें नवाज़ा जाए ये हम सही नहीं समझते... अभी ऐसे किसी विषय पर लिखा नहीं... मैं अभी "कवि" नहीं...!! ये रचना बस यही सोचते सोचते बन पड़ी के मैं कवि क्यूँ नहीं और कब होउंगी...!! -जूली )))



मैं "कवि" 'नहीं' हूँ... ...… Continue

Added by Julie on October 20, 2010 at 8:30pm — 5 Comments

रुख पे उदासी , आँख क्यूँ नम है

रुख पे उदासी , आँख क्यूँ नम है
यार बता , तुझे कौन सा गम है

ज़ख्म जिगर के मुझको दिखा दे ,
मेरी नज़र भी इक मरहम है .

तेरी पलक का अश्क मैं अपने
लब पे उठा लूं , ये शबनम है.

लगता है मुझको तुझमे खुदा है ,
हंस कर बोले लोग वहम है

जिस्म तेरा या रूह हो तेरी
मेरे लिए यह दैरो- हरम है

कहना ग़ज़ल यूं मैं क्या जानू
यह तो खुदा का रहमो- करम है

आनंद तनहा

Added by anand pandey tanha on October 20, 2010 at 7:03pm — 5 Comments

पीठ मे छुरा घोपना किसे कहते हैं?

इस घटना ने मुझे जबरदस्त सबक सिखा दिया ! हुआ यह कि पिछले दिनों मेरे एक जो की किसी ज़माने में मेरे रूममेट हुआ करते थे मेरे घर पधारे ! उनको मेरे शहर में ही नौकरी मिली थी, लेकिन नया होने की वजह से उनको रहने का कोई ठिकाना अभी तक नहीं मिल पाया था ! क्योंकि उनसे पुरानी जान पहचान थी तो मैं उन्हे अपना समझकर अपने कमरे की चाबी सौंप कर अपने काम पर निकल गया ! लेकिन उस मित्र ने इस पल का भरपूर इस्तेमाल करते हुए मेरे कंप्यूटर की हार्ड डिस्क ही बदल डाली| इस बात का आभास मुझे कल ही हुआ जब मैंने कंप्यूटर ठीक करवाने… Continue

Added by ABHISHEK TIWARI on October 20, 2010 at 1:30pm — 4 Comments

काश हर आह सर्द हो जाये,

काश हर आह सर्द हो जाये,
काश हमदर्द दर्द हो जाये .
अब दवा से मुझे क्या लेना ,
ला- दवा मेरा मर्ज़ हो जाये .
मौत री! ले ले मुझ को दामन में ,
दूर जीवन का कर्ज़ हो जाये .
आंसुओ सूख जाना भीतर ही ,
कहीं जग में न नशर हो जाये .
दीप जीर्वी
09815524600

Added by DEEP ZIRVI on October 20, 2010 at 6:48am — 4 Comments

सफ़र....

ढलती हुई शाम ने

अपना सिंदूरी रंग

सारे आकाश में फैला दिया है,

और सूरज आहिस्ता -आहिस्ता

एक-एक सीढ़ी उतरता हुआ

झील के दर्पण में

खुद को निहारता

हो रहा हो जैसे तैयार

जाने को किसी दूर देश

एक लंबे सफ़र पर I



काली नागिन सी,

बल खाती सड़कों पर

अधलेते पेड़ों के सायों के बीच

मैं,

अकेला,

तन्हा,

चला जा रहा हूँ

करता एक सफ़र,

इस उम्मीद पर

कि अगले किसी मोड़ पर

राहों पर अपनी धड़कनें बिछाए

तुम करती होगी… Continue

Added by Veerendra Jain on October 20, 2010 at 1:08am — 9 Comments

जानलेवा प्यार है, इस प्यार से तौबा करो

सभी को मेरा प्रणाम ... एक नयी कोशिश की है आपके सामने पेश है ...



बहर है 2122 212 2 212 2 212

मंज़िले अपनी जगह, रास्ते अपनी जगह ... आप इस गाने की धुन पे इसे गुनगुना सकते हैं ...

_____________________________________________________________________



जानलेवा प्यार है, इस प्यार से तौबा करो

नासमझ ये दिल सही तुम तो इसे टोका करो



किस तरफ हो जा रहे, इस राह की मंज़िल है क्या

देर थोड़ी बैठ कर, तुम दूर तक सोचा करो



तुम बचाओ मुझसे दामन, पास… Continue

Added by vikas rana janumanu 'fikr' on October 19, 2010 at 3:00pm — 10 Comments

ग़ज़ल:काम बेशक न कीजिये

काम बेशक न कीजिए ज्यादा,

मीडिया में मगर दिखिए ज्यादा.



ये सियासत के खेल है साहब ,

बोइये कम छीटिए ज्यादा.



मिल गया है रिमांड पर अभियुक्त

पूछिए कम पीटिए ज्यादा.



सैलरी झाग दूध रिश्वत है,

फूंकिए कम पीजिए ज्यादा.



शेख जी हैं नए नए शायर ,

दाद कुछ और दीजिए ज्यादा.



लिफ्ट छाते में देकर देख लिया ,

बचिए कम भीगिए ज्यादा.



सभ्यता की पतंग और पछुआ बयार,

ढीलिए कम लपेटिए ज्यादा.



अपसंस्कृति की पपड़ियाँ… Continue

Added by Abhinav Arun on October 19, 2010 at 1:30pm — 13 Comments

दोहा सलिला: जिज्ञासा ही धर्म है -------संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:



जिज्ञासा ही धर्म है



संजीव 'सलिल'

*

धर्म बताता है यही, निराकार है ईश.

सुनते अनहद नाद हैं, ऋषि, मुनि, संत, महीश..



मोहक अनहद नाद यह, कहा गया ओंकार.

सघन हुए ध्वनि कण, हुआ रव में भव संचार..



चित्र गुप्त था नाद का. कण बन हो साकार.

परम पिता ने किया निज, लीला का विस्तार..



अजर अमर अक्षर यही, 'ॐ' करें जो जाप.

ध्वनि से ही इस सृष्टि में, जाता पल में व्याप..



'ॐ' बना कण फिर हुए, ऊर्जा के… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 18, 2010 at 11:30pm — 1 Comment

तन्हाई का कैसा यारो फंडा

तन्हाई का कैसा यारो फंडा

कोई कैसे तन्हा भी हो सकता है ?

फूल कही

हो खुशबु उसके साथ रहे ,

खुशबू हो जो वो भी हवा के साथ बहे

खुशबु से

हम सब का दामन भरता है ,

तन्हाई का कैसा यारो फंडा है ,

कोई कैसे

तन्हा भी हो सकता है ?

दिल के साथ है धड़कन ,

आँख के साथ स्वप्न ,

सुखदुख

साथ में मिलके बनता है जीवन ।

जीवन धार में मिलके जीवन चलता है ,

तन्हाई

का कैसा यारो फंडा है ।

कोई कैसे तन्हा भी हो सकता है ?

दीप के साथ

है… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 18, 2010 at 9:00pm — 4 Comments

क्या हमारे सितारे झूठ बोलते हैं ,

क्या हमारे सितारे झूठ बोलते हैं ,

ये सोच कर मेरा दिल जलता हैं ,

एक जन सेमसंग गुरु का रट लगाया ,

मेरे पॉकेट से अच्छा चूना लगवाया ,

एक बादशाह हैं अच्छा उल्लू बनाया ,

हप्ता क्या सालो मला ना चमक पाया ,

एक महानायक हमें जो बताया ,

हकीकत के पास उन्हें भी ना पाया ,

सर जी ने बोला आइडिया बदल देगी ,

नही पता था तीस रुपया वो काट लेगी ,

गलती से बेटा ने दबा दिया जो फोन आया ,

मेरे बैलेंस से तीस रुपया का चूना लगाया ,

बाद में पता चला १० और खा गया वो… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on October 18, 2010 at 7:30pm — 5 Comments

मुफलिस ही रहने दो हमको

मुफलिस ही रहने दो हमको
हम न मांगे चांदी -सोना .
इश्क की दौलत पास हमारे ,
कैसी ग़ुरबत -कैसा रोना

जाहिद जाने रसमे -इबादत,
हमको उसके ,इश्क की आदत
जिसके नूर की एक शफक से,
रोशन दिल का कोना- कोना

इश्क- ए- खुदा हो जाने दे कामिल
उसकी नज़र में ,होकर शामिल
दिन भर रब की मैय को पीकर
रात में चादर तान के सोना

ये है सराय घर न तेरा
जिसमे लगाया तूने डेरा
कल आयेंगे , और मुसाफिर
मालिक बदले रोज बिछौना

आनंद तनहा

Added by anand pandey tanha on October 18, 2010 at 7:00pm — 4 Comments

धड़कते दिल की सदा है तू

धड़कते दिल की सदा है तू

मुहब्बतों की खुदा है तू



के तेरा नाम है मुहब्बत

किसे खबर है के क्या है तू



तेरी ज़रूरत है इस जहाँ को

दहकती हुई हर इक फ़िज़ा को



तू ही मंदिर तू ही मस्जिद

तू ही बच्चे की तोतली बोली



तू ही ममता का बे हिसाब साया

तू ही है पापा की डांट जानूं



तू ही चिड़ियों की चहचहाहट

तू ही है कलियों की मुस्कुराहट



तेरे दम से बहार क़ायम

मैं क्या गिनाऊँ तेरे गुणों को



के तू मुहब्बत है तू… Continue

Added by mohd adil on October 18, 2010 at 6:30pm — 2 Comments

धूप के दरिया में नहाता है गुलाब

धूप के दरिया में नहाता है गुलाब
फिर भी ताज्जुब है मुस्काता है गुलाब

जिनके चेहरों पर उदासी होती है
मुस्कुराना ऐसों को सिखाता है गुलाब

जब किसी के लिए बिखरता है
तब कहीं जाके चैन पाता है गुलाब

रास्ते में बिखेर कर खुद को
साथ राही के भी जाता है ग़ुलाब

जो ज़माने में नामवर थे कभी
वाक़ए उन के सुनाता है गुलाब

Added by mohd adil on October 18, 2010 at 6:00pm — 2 Comments

रिपोर्ट:जब बच्चन जी ने बेची 'मधुशाला'

दशहरा के अवसर पर १७ अक्टूबर २०१० को वाराणसी स्थित श्री शारदापीठ मठ सभागार में वरिष्ठ शायर श्री अनुराग शंकर वर्मा के ग़ज़ल संग्रह "कहने को जुबां है"का विमोचन और इस मौके पर कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया. मैं भी आमंत्रित था यह आयोजन कई मायनों में यादगार रहा. पहली बात यह कि श्री अनुराग जी अभी उम्र के ८३ वें वर्ष में चल रहे है और यह उनका पहला संग्रह है. जो उनकी स्वयं की इच्छा से नहीं बल्कि दूसरों के अधिक प्रयास से साकार रूप ले सका है. अनुराग जी का सारा लेखन उर्दू में है और उसे समेटना काफी मुश्किल था… Continue

Added by Abhinav Arun on October 18, 2010 at 4:30pm — 5 Comments

विशेष लेख- भारत में उर्दू : संजीव 'सलिल'

विशेष लेख-



भारत में उर्दू :





संजीव 'सलिल'



*



भारत विभिन्न भाषाओँ का देश है जिनमें से एक उर्दू भी है. मुग़ल फौजों द्वारा आक्रमण में विजय पाने के बाद स्थानीय लोगों के कुचलने के लिये उनके संस्कार, आचार, विचार, भाषा तथा धर्म को नष्ट कर प्रचलित के सर्वथा विपरीत बलात लादा गया तथा अस्वीकारने पर सीधे मौत के घाट उतारा गया ताकि भारतवासियों का मनोबल समाप्त हो जाए और वे आक्रान्ताओं का प्रतिरोध न करें. यह एक ऐतिहासिक सत्य है जिसे कोई झुठला नहीं सकता. पराजित… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 18, 2010 at 9:56am — 3 Comments

कश्ती का है क़ुसूर न मैरा क़ुसूर है

कश्ती का है क़ुसूर न मैरा क़ुसूर है

तूफान है बज़ीद के डुबोना ज़रूर है


जो मैरे साथ साथ है साए की शक्ल मैं

महसूस हो रहा है वही मुझ से दूर है


मोजों का यह सुकूत न टूटे तो बात हो

दरया मैं डूबने का किसी को शऊर है


देखा है जब से तुमको निगाहों मैं बस गये

हद्दे निगाह सिर्फ़ तुम्हारा ज़हूर है


दामन मैं सिर्फ़ धूप के दरया समाए हैं

सहरा को इस वजूद पे फिर भी गुरूर है

Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 17, 2010 at 7:00pm — No Comments

सच की जीत मनाएँ हम

सच की जीत मनाएँ हम



टूटे दिलों को एक मनाएँ हम



आज के दिन को एकता के रूप मैं मनाएँ हम



हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई एक होजाएँ हम



जीत हुई सच्चाई की



और रावण हार गया



छोड़ कर जीवन परलोक सिधार गया



सच्चाई के रखवालों ने



नेकी के करने वालों ने



एक एसा सबक़ सीखा दिया उसको



हमेशा के लिए मिटादिया उसको



सारे नेकी के करने वालों ने



उस को याद करेगें शेतानो मैं



राम का नाम रहेगा हर… Continue

Added by mohd adil on October 17, 2010 at 12:30pm — 1 Comment

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
8 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service