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सूरज ने फक्कड़ से कहा:
"मुझे झुक कर सलाम कर !"
"तुझे सलाम करूं ? मगर क्यों?"
"ये दुनिया का दस्तूर है, चढ़ते सूरज को सभी सलाम करते हैं !"
"करते होंगे, मगर मैं तेरे आगे सिर नहीं झुकऊँगा !"
"मगर क्यों ?"
"क्योंकि तू बहुत कमज़ोर और निर्बल है, जिस दिन सबल हो जाएगा मैं तेरे आगे सर ज़रूर झुकाऊंगा !"
"कमज़ोर और निर्बल ? और वो भी मैं ?"
"हाँ !"
"तो अगर मैं ये साबित कर दूं कि मैं सबल हूँ, तो क्या तुम मुझे सलाम करोगे?"
"एक बार नही सौ सौ बार सिर झुकाकर सलाम करूँगा !"
"तो फिर जल्दी से बतायो कि तुम्हें यकीन दिलवाने के लिए मुझे क्या करना होगा ?
फक्कड़ ने मुस्कुराते हुए कहा:
"एक बार, सिर्फ एक बार रात में उदय होकर दिखा दो !"

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2015 at 7:57pm
बड़ा सन्देश देती लघुकथा। मूल भाव सम्प्रेषण में सफल। आदरणीय योगराज सर बधाई स्वीकार करें।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 22, 2012 at 12:53pm

 सादर धन्यवाद AjAy Kumar Bohat  जी


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 22, 2012 at 12:52pm

लघुकथा पसंद के लिए दिल से आभार रेखा जोशी जी .

Comment by AjAy Kumar Bohat on May 22, 2012 at 11:48am

Chhoti si kahani, ek bahut badi seekh deeti hai... badhai aadarniye Prabhakar ji

Comment by Rekha Joshi on May 21, 2012 at 8:58pm

आदरणीय प्रभाकर जी ,बहुत बढ़िया लघु कथा ,सलाम |


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 21, 2012 at 7:08pm

अब फक्कड़ तो फक्कड़ ठहरा आदरनीय कुशवाहा जी, सूरज हो या उसका बाप - की फर्क पैंदा ???


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 21, 2012 at 7:06pm

सही कहा शुभ्रांशु जी... :)

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 21, 2012 at 4:56pm

आदरणीय योगराज जी, सादर 

सलाम ..सूरज और फक्कड़ , नहले पर दहला . 
बधाई.
Comment by Shubhranshu Pandey on May 21, 2012 at 4:34pm

सूरज अब कुछ दिनों तक घनचक्कर बन चक्कर खाता रहेगा.....अलख निरंजन............))))))))


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 21, 2012 at 2:10pm

सादर धन्यवाद राजेश कुमारी जी।

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