Added by Manan Kumar singh on September 15, 2016 at 8:30pm — 9 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 15, 2016 at 8:21pm — 3 Comments
2122 2122 2122
जो हुई पाहुन कभी अपने हि घर में
आज अपनों से हुआ अब सामना है
हर जनम का साथ चाहा है दिलों ने
तीन लफ़्ज़ों को नहीं अब थामना है
हाथ जो भरते है उसकी मांग सूनी
उम्र भर का साथ ही अब कामना है
डोलियां उठती है जो शहनाइयों में
अर्थियां उनकी सजाना हाँ... मना है
चाहतें अपनी तभी तक हैं अधूरी
इश्क में अश्कों भरा दिल गर सना है
"मौलिक व…
ContinueAdded by अलका 'कृष्णांशी' on September 15, 2016 at 7:30pm — 11 Comments
लोगों से अब मिलते-जुलते
अनायास ही कह देता हूँ--
यार, ठीक हूँ..
सब अच्छा है !..
किससे अब क्या कहना-सुनना
कौन सगा जो मन से खुलना
सबके इंगित तो तिर्यक हैं
मतलब फिर क्या मिलना-जुलना
गौरइया क्या साथ निभाये
मर्कट-भाव लिए अपने हैं
भाव-शून्य-सी घड़ी हुआ मन
क्यों फिर करनी किनसे तुलना
कौन समझने आता किसकी
हर अगला तो ऐंठ रहा है
रात हादसे-अंदेसे में--
गुजरे, या सब
यदृच्छा है !
आँखों में कल…
Added by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 5:30pm — 23 Comments
छोटे मुँह की बात भी,ऊँची राह सुझाय ।
सीख कहीं से भी मिले, सीखो ध्यान लगाय ।।
औरन को अपना कहें , सुनते उनकी बात ।
अपनों की सुध है नहीं, उनसे करते घात।।
ऐसा नाम कमाइए, मन के खोले द्धार ।
अपनों की सुध लीजिये, बढे प्रेम व्यव्हार ।।
खुशियों की खामोशियां , खा जाती सुख चैन।
यादें ना हो साथ तो ,दिन बीते ना रैन ।।
.
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by अलका 'कृष्णांशी' on September 15, 2016 at 4:00pm — 6 Comments
सिंदूरी हो गयी ... (क्षणिकाएं )....
१.
ठहर जाती है
ज़िदंगी
जब
लंबी हो जाती है
अपने से
अपनी
परछाईं
...... .... .... .... ....
२.
एक सिंदूर
क्या रूठा
ज़िन्दगी
बेनूरी हो गयी
इक नज़र
क्या बन्द हुई
हर नज़र
सिंदूरी हो गयी
..... ..... ..... ..... ..... ....
३.
ज़ख्म
भर जाते हैं
समय के साथ
शेष
रह जाते हैं
अवशेष
घरौंदों में
स्मृतियों के
इक अनबोली
टीस के…
Added by Sushil Sarna on September 15, 2016 at 3:55pm — 2 Comments
हिन्दी तो अनमोल है, मीठी सुगढ़ सुजान।
देवतुल्य पूजन करो, मात-पिता सम मान।।
मात-पिता सम मान, करो इसकी सब सेवा।
मिले मधुर परिणाम, कि जैसे फल औ मेवा।।
कहे पवन ये बात, सुहागन की ये बिन्दी।
इतराता साहित्य, अगर भाषा हो हिन्दी।१।
दुर्दिन जो हैं दिख रहे, इनके कारण कौन।
सबकी मति है हर गई, सब ठाढ़े हैं मौन।।
सब ठाढ़े हैं मौन, बांध हाथों को अपने।
चमत्कार की आस, देखते दिन में सपने।।
सुनो पवन की बात, प्रीत ना होती उर बिन।
होती सच्ची चाह, न…
Added by डॉ पवन मिश्र on September 14, 2016 at 9:30pm — 13 Comments
हिंदी सभ्यता मूल पुरातन भाषा है
संस्कृति के जीवित रहने की आशा है
एक चिरंतन अभिव्यक्ति का साधन है
भारत माता का अविरल आराधन है
हिंदी पावनता का एक उदाहरण है
मातृभूमि की अखंडता का कारण है
उत्तर से दक्षिण पूरब से पश्चिम तक
सारी बोलीं हिंदी माता की चारण हैं
हिंदी सरस्वती, दुर्गा माँ काली है
संस्कृति की पोषक माँ एक निराली है
पूरब में उगते सूरज की आभा है
पश्चिम में छिपते सूरज की लाली है
जन मन की अभिव्यक्ति की…
ContinueAdded by Aditya Kumar on September 14, 2016 at 8:51pm — 11 Comments
Added by ram shiromani pathak on September 14, 2016 at 8:14pm — 10 Comments
आज सुबह सुबह ही सब लोग ईद की तैयारी में लग गएI अब्दुल मियां एक बकरी का बच्चा लाये और क़ुरबानी की तैयारियां शुरू हुई,
अब्दुल का दस साल का लड़का सलीम गुमसुम सा ये सब देख रहा था,…
Added by harikishan ojha on September 14, 2016 at 6:00pm — 10 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 14, 2016 at 5:23pm — 4 Comments
कुकुभ छंद -२
देश की एकता, अखण्डता, सबकी वाहक है हिंदी
भाव, विचार, पूर्णता, संस्कृति, सभी का प्रतिरूप हिंदी |
आम जन की मधुर भाषा है, भारत को नई दिशा दी
है विदेश में भी यह अति प्रिय, लोग सिख रहे हैं हिंदी ||
सहज सरल है लिखना पढ़ना, सरल है हिन्द की बोली
संस्कृत तो माता है सबकी, बाकी इसकी हम जोली |
हिंदी में छुपी हुई मानो, आम लोग की अभिलाषा
जोड़ी समाज की कड़ी कड़ी, हिंदी जन-जन की भाषा ||
ताटंक -१
देश की…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 14, 2016 at 3:57pm — 4 Comments
दरवाजों पर ताले रखना
चाबी जरा संभाले रखना।
ठंडी होगयी चाय सुबह की
पानी और उबाले रखना।
संसद में घेरेंगे तुझको
तू भी प्रश्न उछाले रखना।
गाँवों का सावन है फीका
नीम पर झूले डाले रखना।
चिडियों की चीं चीं खेतों में
कुछ गौरैयाँ पाले रखना|
दूर ना होना अपनों से तू
रिश्ते सभी संभाले रखना।
...आभा
अप्रकाशित एवं मौलिक
…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on September 14, 2016 at 1:00pm — 6 Comments
भाषा यह हिन्दी, बनकर बिन्दी, भारत माँ के, माथ भरे ।
जन-मन की आशा, हिन्दी भाषा, जाति धर्म को, एक करे ।।
कोयल की बानी, देव जुबानी, संस्कृत तनया, पूज्य बने ।
क्यों पर्व मनायें,क्यों न बतायें, हिन्दी निशदिन, कंठ सने ।।
Added by रमेश कुमार चौहान on September 14, 2016 at 12:00pm — 5 Comments
हिंदी दिवस की शुभ कामनाओं के साथ कुछ दोहे -
हमें बढ़ाना मान (दोहे)
=================
हिंदी में साहित्य का, बढ़ा खूब भण्डार
हम संस्कृति का देखते, शब्दों में श्रृंगार |
कविता दोहा छंद में, सप्त सुरों का राग
गीत गीतिका छंद में, भरें प्रेम अनुराग…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 14, 2016 at 11:30am — 12 Comments
सावन
सूखी रह गई,
सूखे भादो मास
विरहन प्यासी धरती कब से,
पथ तक कर हार गई
पनघट पूछे बाँह पसारे,
बदरा क्यों मार गई
पनिहारिन
भी पोछती
अपनी अंजन-सार
रक्त तप्त अभिसप्त गगन यह,
निगल रहे फसलों को
बूँद-बूँद कर जल को निगले,
क्या दें हम नसलों को
धूँ-धूँ कर
अब जल रही
हम सबकी अँकवार
कब तक रूठी रहेगी हमसे,
अपना मुँह यूॅं फेरे
हम तो तेरे द्वार खड़े हैं
हृदय हाथ में…
Added by रमेश कुमार चौहान on September 14, 2016 at 11:27am — 3 Comments
Added by S.S Dipu on September 14, 2016 at 4:46am — 10 Comments
Added by amita tiwari on September 14, 2016 at 3:05am — 5 Comments
पहाड़ी के बीच
**************************
ऊँची नीची पहाड़ी पगडंडियों में
बल खाती घुमावदार सड़कों के बीच
दिखती है एक चाय की दुकान
यह दुकान होती है
छोटे मोटे मकानों में
किसी भी पगडंडी पर
किसी खोखे जैसी दुकान
उस में चाय भी बनती है
आलू प्याज के बनते हैं पकौड़े भी
यहाँ कभी कभी टहलते हुये
होते हैं लोग इकट्ठा
करतें हैं अपने ऊँची चोटी पर बसे गाँव की बातें
इसी बीच इन्हीं दुकानों पर
वे कर लेते…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on September 13, 2016 at 11:00pm — 7 Comments
2122 2122 2122 212
तुम पिया आये नहीं बरसात बैरन आ गई
दिन गुजारा बेबसी में रात बैरन आ गई
था हवाओं ने कहा मनमीत का सन्देश है
ले जुदाई बेशरम की बात बैरन आ गई
ढोल ताशे बज उठे हैं गूंजती शहनाइयाँ
हाय रे महबूब की बारात बैरन आ गई
मुट्ठियों में दिल समेटा होंठ भी भींचे खड़े
आँसुओं की आँख से सौगात बैरन आ गई
भाइचारा भूल जाओ अब मियाँ तकरीर में
धर्म मजहब आदमी की जात बैरन आ…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 13, 2016 at 8:00pm — 12 Comments
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