For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज अपनों से हुआ अब सामना है (एक प्रयास ) /अलका चंगा

2122 2122 2122


जो हुई पाहुन कभी अपने हि घर में
आज अपनों से हुआ अब सामना है

हर जनम का साथ चाहा है दिलों ने
तीन लफ़्ज़ों को नहीं अब थामना है

हाथ जो भरते है उसकी मांग सूनी
उम्र भर का साथ ही अब कामना है

डोलियां उठती है जो शहनाइयों में
अर्थियां उनकी सजाना हाँ... मना है

चाहतें अपनी तभी तक हैं अधूरी
इश्क में अश्कों भरा दिल गर सना है

 "मौलिक व अप्रकाशित" 

"पाहुन" मराठी में इसका अर्थ है अस्थाई
सना-- चमक

Views: 807

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 20, 2016 at 3:20pm

आपका   हार्दिक आभार आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण  जी 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 20, 2016 at 3:20pm

आदरणीय समर कबीर  जी, प्रयास पर आपकी प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार............. मैं मतला ,ग़ज़ल कुछ नहीं जानती पर अब सीखूंगी और बस युही लिखी गई इस तुकबंदी को  ग़ज़ल बनाने की कोशिश करुँगी। सादर

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 20, 2016 at 3:20pm

आदरणीय सौरभ पांडेय जी ,त्रुटिया बताने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। इस अल्पबुद्धि से जो पंक्तियाँ लिखी उन्हें  शेर कहते है आपकी बधाई द्वारा ही पता चला। माफ़ कीजियेगा मैं नहीं जानती की ये गीत है या ग़ज़ल बस नेट पर ही पढ़ पढ़ कर ऐसे तुकबंदी करती हूँ।  आपकी सलाह अनुसार अब ठीक से सिखने की कोशिश करुँगी। सादर  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 19, 2016 at 8:12am

आदरणीय समर साहब, ज़रूर कोशिश करता हूँ. फिलहाल बाहर हूँ. उद्धरण देना संभव नहीं है. 

सादर

Comment by Samar kabeer on September 18, 2016 at 9:26pm
जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब,ये बात मुझे आज ही मालूम हुई कि मतले के बिना भी ग़ज़ल हो जाती है ।
में आपका आभारी रहूंगा,अगर आप उस्तादों की ऐसी ग़ज़लों की निशां दही करें तो मेरी मालूमात में भी इजाफा होगा । मेरी याद दाश्त में तो किसी उस्ताद की ऐसी ग़ज़ल नहीं है,बराह-ए-करम इतनी ज़हमत गवारा करें ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 18, 2016 at 8:30pm

छन्दोत्सव की रचनाओं के संकलन की सूचना मेन चैट बॉक्स में दिया गया है. कृपया देख लें. 

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 18, 2016 at 8:29pm

आदरणीया आलका जी, आपने बिना मतले की ग़ज़ल कही है. ऐसे किसी प्रयास से बचिये,. वह भी सीखने के इस दौर में. आपके पहले तीन शेर से यह अंदाज़ होता है कि काफ़िया ’आमना’ है. लेकिन यह भ्रम आखिरी के दो शेरों में टूट जाता है. क्यों कि ’हाँ’ के ’आँ’ और ’आ’ में भारी अंतर है. फिर, ’आमना’ के आगे ’गर सना’ की कोई सुनवाई ही नहीं होनी है. 

जो हुई पाहुन कभी अपने हि घर में ... इस पंक्ति का ’हि’ वस्तुतः ’ही’ होगा. अगर ही की मात्रा गिरायी गयी है तो यह पाठक समझ जायेंगे.

यह तो हुई शिल्प की बात.  बाकी आपके शेरों के भाव अच्छे और व्यापक हैं.   

हर जनम का साथ चाहा है दिलों ने 
तीन लफ़्ज़ों को नहीं अब थामना है................ इस शेर के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारिये 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 18, 2016 at 8:19pm

//इसे ग़ज़ल तो कह नहीं सकता क्योंकि इसमें मतला नहीं है //

आदरणीय समर साहब, मतला के बिना भी ग़ज़लें कही गयी हैं.और, उस्तादों ने कही हैं. ऐसे उदाहरण हैं. 

यह ज़रूर है कि मतले से ही बाकी के शेरों केलिए क़ाफ़िया निर्धारित होता है, इसलिए उनका होना ज़रूरी होता गया. लेकिन शाइर अपने हिसाब से क़ाफ़िया निर्धारित कर लेता है और उसी को आगे के सभी शेर में निभाता है.  इसी कारण, ऐसा कोई प्रयास आदत नहीं बन पायी, न ही प्रसिद्ध हो पायी. और, न ही ऐसे प्रयास को प्रोत्साहित किया जाता है. लेकिन बिना मतले के ग़ज़लें हुई हैं. इस मंच पर भी आयोजनों में ऐसी ग़ज़लें प्रस्तुत की गयी हैं. मैं ऐसा ही जानता हूँ 

सादर

Comment by Samar kabeer on September 18, 2016 at 4:06pm
मोहतरमा अल्का जी आदाब,में इसे ग़ज़ल तो कह नहीं सकता क्योंकि इसमें मतला नहीं है ।
उम्दा अशआर कहे आपने दाद के साथ बधाई स्वीकार करें ।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 18, 2016 at 3:42pm
आदरणीया अल्का चंगा जी, ओ बी ओ चित्र से काव्य छंदोत्सव - 65 का संकलन हो चुका है अब आप अपनी रचनाओं को संशोधित कर सकते हैं । सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"मौजूदा जीवन के यथार्थ को कुण्डलिया छ्ंद में बाँधने के लिए बधाई, आदरणीय सुशील सरना जी. "
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  ढीली मन की गाँठ को, कुछ तो रखना सीख।जब  चाहो  तब …"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"भाई शिज्जू जी, क्या ही कमाल के अश’आर निकाले हैं आपने. वाह वाह ...  किस एक की बात करूँ…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपके अभ्यास और इस हेतु लगन चकित करता है.  अच्छी गजल हुई है. इसे…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service