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अलका 'कृष्णांशी''s Blog (25)

चुनावी हवा सरसराने लगी है...//अलका 'कृष्णांशी'

122 122 122 122

.

सियासत बिसातें बिछाने लगी है

चुनावी हवा सरसराने लगी है...

.

जगा फिर से मुद्दा ये पूजा घरों का

दिलों में ये नफरत बढ़ाने लगी है।

चुनावी हवा.....

.

यहाँ बाँट डाला है रंगो में मजहब

बगावत की आंधी सताने लगी है।

.

कहीं नाम चंदन कहीं चाँद दिखता

ये लाशें जमीं पर बिछाने लगी है

.

नही बात होती है अब एकता की

हमारी उमीदें घटाने लगी है

.

क्युँ इन्सां हुआ जानवर से भी…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on February 3, 2018 at 10:30am — 13 Comments

आज़ादी के बाद सभी को, देश बनाना होता है..../ अलका 'कृष्णांशी'

छन्द- तांटक

जात धरम और ऊँच नीच का, भेद मिटाना होता है

आज़ादी के बाद सभी को, देश बनाना होता है

कैसी ये आज़ादी है औ, क्या हम सब ने पाया है

तहस नहस कर डाला सब कुछ ,दिल में जहर उगाया है

फुटपाथों पर फ़टे कम्बलों, में जब बचपन रोता है

तब प्रगति के आसमान की ,धुँध में सब कुछ खोता है

आज़ादी के बाद सभी को, देश बनाना होता है

क्या किसान औ क्या जवान है, सबकी हालत खस्ता है

टैक्स भरें भूखे मर जाएँ ,क्या ये ही इक रस्ता है

बीमारी…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on January 23, 2018 at 12:54am — 8 Comments

जला पुतला सभी ने पाप की कर दी विदाई है//अलका 'कृष्णांशी'

1222 1222 1222 1222 

.

हमारे सामने सबने कसम गीता की खाई है

जला पुतला सभी ने पाप की कर दी विदाई है

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सभी ये बेटियाँ बहनें सुरक्षित आज से होंगी

अजी रावण की रावण ने यहां कर दी पिटाई है

.

बड़ी बातें सभी करते नही है राम कोई भी

कहीं हिन्दू कहीं सिख है यहाँ कोई ईसाई है

.

न होती धर्म की सेवा न है संस्कार से नाता

दया बसती नही दिल में दिखावे की भलाई है

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लगाकर हाथ आँचल को वहीं खींसे…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on October 1, 2017 at 1:00pm — 12 Comments

श्राद्ध.....लघुकथा..../अलका 'कृष्णांशी'

श्राद्ध

" पर....? हर बार तो आनंद ही ..." दूसरी तरफ की कड़क आवाज़ में बात अधूरी ही रह गई

"जी ,जैसा आप ठीक समझें ,पैरी पै..." बात पूरी होने से पहले ही दूसरी तरफ से मोबाइल कट गया ....

रुआंसी सी प्राप्ति सोफे में ही धंस गई , बंद आँखों से अश्क बह निकले

"८ बरसों में जड़ें भी मिटटी पकड़ चुकी थी ......"

"पर आंगन को फूल देना कितना जरूरी है ये एहसास देवरानी के बेटा पैदा होने के बाद हुआ ....."

"नर्म हवाओं ने तूफान बन कर सब रौंदते हुए रुख जब आनंद की ओर किया तो आनंद…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on September 19, 2017 at 4:51pm — 6 Comments

हिंदी क्यूँ ऐसे लगती ज्यूँ वृदाश्रम की माई है ;अलका 'कृष्णांशी'

समीक्षार्थ.........छंद-- तांटक  (एक प्रयास)

*******

हिन्दी का घटता रुझान पर , भाषा में गहराई है

हिंदी क्यूँ ऐसे लगती ज्यूँ वृदाश्रम की माई है

.

नव पीढ़ी ने हिंदी में अब, लिखना पढ़ना छोड़ा है

परिवर्तन ऐसा आया दिल ,अंग्रेजी से जोड़ा है

निज भाषा का परचम लहराने का करते हैं दावा

मंचों से ही है चिंतन अंग्रेजी पर बोलें धावा

.

अंग्रेजी स्टेटस सिंबल है, हिंदी दिखती काई है

हिंदी क्यूँ ऐसे लगती ज्यूँ वृदाश्रम की माई है

.…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on September 14, 2017 at 7:00pm — 15 Comments

कोमल स्पंदन मन चिर उन्मन, (गीत) :अलका ललित

16 मात्रा आधारित गीत (चोपाई छन्द आधारित )

*****

कोमल स्पंदन मन चिर उन्मन

रे स्याह भौंर गुंजन गुंजन

.

किसलय पुंजित ह्रदय हुलसित

उत्कंठा इंद्रजाल पुलकित

नित भोर भये चिर कोकिल-रव

मधु कुंज कुंज गुंजित कलरव

.

रे गंध युक्त मसिमय अंजन

रे स्याह भौंर गुंजन गुंजन

.

घनघोर घटा चितचोर विहग

नभ अंतःपुर द्युतिमान सुभग

अकलुष प्रदीप्त कोमल उज्ज्वल

तप नेह वेदना में प्रतिपल

.

रे स्वर्ण…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on August 8, 2017 at 4:30pm — 14 Comments

उल्फत न सही बैर निभाने के लिए आ.(समीक्षार्थ ग़ज़ल) :अलका ललित

221 1221 1221 122

***

उल्फत न सही बैर निभाने के लिए आ

चाहत के अधूरे से फ़साने के लिए आ

.

चाहत भरी दस्तक भी सुनी थी कभी दिल ने

वीरानियों को फिर से बसाने के लिए आ

.

शब्दों की कमी तो मुझे हरदम ही रही है

खामोश ग़ज़ल कोई सुनाने के लिए आ

.

सागर ये गमों का कहीं तट तोड़ न जाए

ऐ राहते जां बांध बनाने के लिए आ

.

रौशन दरो दीवार है झिलमिल है सितारे 

ऐ चाँद मेरे मुझको…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on May 8, 2017 at 4:00pm — 10 Comments

मीत बन जाइए....मनहरण घनाक्षरी...समीक्षार्थ..//अलका ललित

समीक्षार्थ

मनहरण घनाक्षरी ....(एक प्रयास)

***

 

आशा का प्रकाश कर

बांस को तराश कर

बांसुरी के सुर संग

गीत बन जाइए

.

हौसले पकड़ कर

आँधियाँ पछाड़ कर

बहती नदी सी इक

रीत बन जाइए

मछली पे आँख रहे

धरती पे पाँव रहे

आसमान छू के जरा

जीत बन जाइए

बहुत जीया है इस

दुनिया की सोच कर

अब अपने भी जरा

मीत बन…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on April 17, 2017 at 6:30pm — 14 Comments

मनहरण घनाक्षरी...समीक्षार्थ..अबके चुनाव में...//अलका ललित

समीक्षार्थ

मनहरण घनाक्षरी ....(एक प्रयास)

***

भ्रष्टाचारियों से बड़ी

चोट खाई पीढ़ियों ने

चोट ये मिटानी होगी

अबकी चुनाव में  

.

दांव न लगाने देंगे

झूठे वादों का जी अब

हार भी चखानी होगी

अबकी  चुनाव में

.

मतदाता याद आए

पांच साल बाद जिसे

मात उसे खानी होगी

अबकी…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on April 9, 2017 at 5:00pm — 6 Comments

गूंज....लघुकथा //अलका ललित

कुछ दिनों से गर्ल्स स्कूल के सामने लड़को की भीड़ और उनकी बद्तमीज़ियां बढ़ती ही जा रही थी ,छात्राओं का गेट से निकलना भी मुश्किल होता जा रहा था। आज यहाँ बहुत तेज तेज आवाज़े गूंज रही है क्योकि स्कूल टीचर्स  की कंप्लेंट पर आज पुलिस ने सादा लिबास में मजनुओं की टोली को पकड़ लिया था और पुलिस स्टेशन ले जा रहे थे। 

उनके खिलाफ गवाही देने के लिए  नीलम और उसके साथ की ही कुछ अन्य टीचर्स भी पुलिस स्टेशन पहुंच गई  कुछ इंतजार के बाद  ही उन लड़को के पेरेंट्स भी पुलिस स्टेशन पहुँच गए और अपने लड़को को डांटते …

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on April 4, 2017 at 4:00pm — 11 Comments

सांगोपांग सिंघावलोकन मनहरण घनाक्षरी .//अलका ललित

घनाक्षरी में सांगोपांग सिंहावलोकन छंद के साथ  प्रथम प्रयास 

**

जाइए यहाँ से अभी

सरदी बहुत है जी

बादल आवारा सुनो

गर्मियों में आइए

.

आइए जो गरमी में

बरखा बहार संग

ठंडी सी हवाओं वाला

रस भी तो लाइए

.

लाइए जो बिजली तो

गरज गरज कर

कसक बरसने की

हमे न दिखाइए

.

खाइए न भाव अब

उचित समय पर

कृषकों की आस जरा

पूरी कर जाइए

**

 "मौलिक व…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on April 3, 2017 at 3:00pm — 18 Comments

मत्तगयन्द सवैया

समीक्षार्थ 

मत्तगयन्द सवैया...... (एक प्रयास)

..

मंगल हो नववर्ष खिले मन वैभव ज्ञान सगे हरषाए

शीतल वायु बहे नित वासर धान फलें नहिं रोग सताए
भाग्य बने अरु धर्म जगे नवरोज़ शुभ यश गान सुनाए
जीवन में नित प्रीत पले रिपु बैर तजें स सखा बन जाए

..

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Added by अलका 'कृष्णांशी' on March 28, 2017 at 4:00pm — 7 Comments

देश ये महान है--घनाक्षरी// अलका ललित

घनाक्षरी में आज का प्रयास

***

चेहरा चमक रहा

बटुआ खनक रहा

सबका है मन काला

देश ये महान है

.

योजनाएं बड़ी बड़ी

बनाते है हर दिन

कैसे करना घोटाला

देश ये महान है

.

हर योजना में यहॉ

देश के खजाने पर

हुआ गड़बड़ झाला 

देश ये महान है

.

बेटियां सुबक रही

डर के…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on February 4, 2017 at 11:00am — 9 Comments

शान बड़ी गणतंत्र दिवस की , दुनियां को दिखलायें क्यों (गीत) //अलका ललित

छंद--तांटक

-.-

शान बड़ी गणतंत्र दिवस की , दुनियां को दिखलायें क्यों

.

ख़ौफ़ ज़दा सड़को पर चलती, डर के साये में जीती

देश की बेटी न बोलेगी , क्या क्या उस पर है बीती

नन्ही नन्ही कलियाँ खिलने, से पहले ही तोडा है

जननी को जो जन्मा तो फिर, नारी के सर कोड़ा है

क्या पहने पोशाक यहाँ हम , मुनिया को समझायें क्यों 

शान बड़ी गणतंत्र दिवस की......

.

वादों का सैलाब लिए वो, पाँच साल में आते है

अपनी जेबें भरते है पर जन सेवक कहलाते…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on January 26, 2017 at 7:00pm — 7 Comments

गीत-गुलसितां दिल का खिलाते रह गए//(अलका ललित )

2122 2122 212

.

गुलसितां दिल का खिलाते रह गए

फासले दिल के मिटाते रह गए

गुलसितां दिल का........

.

चाहतें अपनी बड़ी नादान थी

इश्क की राहें कहा आसान थी

फिर भी हम कसमें निभाते रह गए

फासले दिल के मिटाते ......

.

हाथ में तेरे मेरा जब हाथ हो

जिंदगी कट जाएगी गर साथ हो

हम भरोसा ही जताते रह गए

फासले दिल के मिटाते ...

.

चाह थी तो छोड़ कर ही क्यूँ गया

वास्ता देकर वफ़ा का क्यूँ भला

बेवजह दामन हि थामे रह…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on January 16, 2017 at 9:00pm — 12 Comments

ग़ज़ल -जो तुम खामोशियाँ पढ़ लो नियामत और हो जाए

1222 1222 1222 1222

****

निगाहों से बुला लीजे शरारत और हो जाए ।

जो धड़कन में बसा लीजे इनायत और हो जाए।।

.

कलाई की अदा देखी कई पैगाम  देती है ।

जरा कंगन बजा दीजे कयामत और हो जाए।।

.

ये परवानों की महफ़िल है गिरा दीजे ज़रा चिलमन।

कहीं ऐसा न हो हमदम अदावत और हो जाए।।

.

दिलों को चैन हम देंगे जफ़ा से तौबा करने दो।

वफ़ा की राह में चाहे बगावत और हो जाए।।

.

मेरे ख़त में तड़पती…

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Added by अलका 'कृष्णांशी' on December 22, 2016 at 9:30pm — 8 Comments

तांटक छंद // अलका

तलवों तले सपनो की चुभन, भूल नहीं तुम पाओगे।
अंधकार से जूझोगे जब , नवजीवन तब पाओगे।।
स्वयम की खोज करो तब ही विश्व तुम्हे अपनायेगा।
गोद तिमिर की जब छानोगे आलोक निकल आयेगा।।

.

प्राण भी व्याकुल करेंगे जब साथ अँधेरे पाओगे।
बीज सृजन का पाने को प्रलय के गर्भ में जाओगे।।
जन्म तुम्हे वरदान मिला विशेष .. शेष में पायेगा।
तू चले या रुके फर्क नहीं वक्त चलता जायेगा।।


"मौलिक व अप्रकाशित" 

Added by अलका 'कृष्णांशी' on November 8, 2016 at 4:00pm — 2 Comments

गीतिका //अलका ललित

2 2 2 2 2 2 2

-.-
पन्नो में घुल जाती हूँ
स्याही सी बह जाती हूँ

.

नाता बस मन से मेरा
भावो को कह जाती हूँ

.

जानूँ न* मैं छंद पिरोना
मन की तह बताती हूँ

.

न सुर है न लय सलीका
पाबन्दी तज जाती हूँ

.

खिलती भी हूँ सावन सी
पतझड़ सी झड़ जाती हूँ

.

सजा कर खुद को फिर से
पन्नो पर सज जाती हूँ

-.-
 "मौलिक व अप्रकाशित"

Added by अलका 'कृष्णांशी' on October 23, 2016 at 9:02pm — 13 Comments

तुम्हारी ख़ामोशी तुम्हारा पयाम हुई // अलका

एक प्रयास

***********

कान्हा की मैत्री मेरा मान हुई

तुमसे जुड़ा जो नाता मेरी शान हुई

इसे जोड़ा है गिरधर ने बड़े प्रेम से

हमारी खुशियां ही मुरली की तान हुई

मैं उलझी थी शब्दो की उलझन में

तुम्हारी ख़ामोशी तुम्हारा पयाम हुई

धूप में बादल से तुम, अंधेरों में किरण सी मैं

तुम्हारी बाहें हर तूफ़ां में मेरी मचान हुई

कई दांव देखे है रिश्तों के हमने

निष्ठा हमारी लोबान हुई

बीते बरस इम्तहानों के जैसे…

Continue

Added by अलका 'कृष्णांशी' on October 14, 2016 at 4:03pm — 6 Comments

ग़ज़ल /अलका चंगा

2122 1212 22

जुगनुओं की बरात मुश्किल है।
साथ हो कायनात मुश्किल है।।

चांदनी गर बिखर नहीं जाती
इन निगाहों से मात मुश्किल है।।

यूँ हकीकत छुपी नहीं रहती।
आईने से निजात मुश्किल है।।

रात के बाद निकलता है दिन।
कैसे कह दूँ हयात मुश्किल है।।

दो जहां को सवाँर दूँ तब भी।
इस जहां की बिसात मुश्किल है।।

फासले दरमियाँ न आ पाते।
चुगलियों से निजात मुश्किल है।।


मौलिक और अप्रकाशित

Added by अलका 'कृष्णांशी' on September 29, 2016 at 10:00pm — 18 Comments

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