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गूंज....लघुकथा //अलका ललित

कुछ दिनों से गर्ल्स स्कूल के सामने लड़को की भीड़ और उनकी बद्तमीज़ियां बढ़ती ही जा रही थी ,छात्राओं का गेट से निकलना भी मुश्किल होता जा रहा था। आज यहाँ बहुत तेज तेज आवाज़े गूंज रही है क्योकि स्कूल टीचर्स  की कंप्लेंट पर आज पुलिस ने सादा लिबास में मजनुओं की टोली को पकड़ लिया था और पुलिस स्टेशन ले जा रहे थे। 

उनके खिलाफ गवाही देने के लिए  नीलम और उसके साथ की ही कुछ अन्य टीचर्स भी पुलिस स्टेशन पहुंच गई  कुछ इंतजार के बाद  ही उन लड़को के पेरेंट्स भी पुलिस स्टेशन पहुँच गए और अपने लड़को को डांटते  हुए पुलिस से उन्हें छोड़ देने की रिक्वेस्ट करते रहे। उन्ही में राजीव को देख कर नीलम चौंक गई उसने देखा की राजीव अपने बेटे वंश को छुड़ाने के लिए कभी  पुलिस तो कभी टीचर्स के आगे हाथ जोड़ रहा था,और उसके फ्यूचर का वास्ता देकर माफ़ी की गुहार लगा रहा था

इस सब तमाशे में वो  नीलम के सामने पहुंच गया ,उसे देखते ही राजीव भी ठिठक गया।  इससे पहले की वो कुछ कहता नीलम सबको सुनाते हुए राजीव से कहने लगी  " जिस बेटे की चाह में तुम इंसानियत भी भूल गए थे आज उसी बेटे ने क्या नाम रोशन किया  है तुम्हारा ? "

"शायद आज तुम सच्चाई का आइना ठीक से देख पाओगे ! मेरी बड़ी बेटी स्नेहा इस देश की सम्मानित आईएएस ऑफिसर बन चुकी है और मेरी छोटी बेटी दिशा , जिसके बारे में जाँच में पता लगने के बाद तुम कोख में ही मार देना चाहते थे आज विदेश के नामचीन मेडिकल कॉलेज से वहीँ की स्कॉलरशिप से पढ़ाई करके डॉक्टर बन कर देश वापिस आ रही है।"

"आज तुम जैसे लोगो को ये मानना ही होगा  कि   " बेटियां बोझ नहीं बल्कि गुरुर होती है !"

"बरसो पहले तुमसे अलग होने का मेरा फैसला बिलकुल सही था। तुम्हारी दूसरी शादी से जन्मे तुम्हारे बेटे की नालायकी आज सबके सामने है , जो पुरखों की दौलत और इज़्ज़त  अय्याशी में उड़ा रहा है। "

"क्या अब भी कहोगे की बेटा ही वंश का नाम रोशन करता है ! "

जवाब का इंतज़ार किये बिना नीलम गर्विता सी सधे हुए कदमों से बाहर निकल गई और छोड़ गई अपने पीछे सन्नाटों की गूंज।

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 9, 2017 at 5:55pm

आदरणीय Mahendra Kumar जी , प्रयास को समय देने व् उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद। मार्गदर्शन हेतु जो बिंदु साँझा किये है आपने उनके लिए हार्दिक आभार। सादर।

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 9, 2017 at 5:42pm

आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani जी , रचना को समय देने व् उत्साहवर्धन के लिए आभार आपका। सादर।

Comment by Mahendra Kumar on April 6, 2017 at 10:27pm
आदरणीया अलका जी, लघुकथा का बढ़िया प्रयास है। मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। चूँकि आपने कहा है कि आपने पहले कहानियाँ नहीं लिखी हैं इसलिए कुछ बातें आपसे साझा करना चाहूँगा।
1. कहानी की कोई भी विधा हो उसमें जितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका कहानी की होती है उतनी ही महत्त्वपूर्ण भूमिका उस कहानी को कहने के ढंग की भी होती है। आपकी कहानी की शुरुआत अच्छी हुई थी पर बाद में कहानी के उपदेशात्मक हो जाने के कारण इस पक्ष की उपेक्षा हुई।
2. कहानी का जो भी सन्देश हो वह कहानी में स्वयं उभर कर आना चाहिए। उसके लिए भाषण आदि के प्रयोग से बचना चाहिए। आपकी इस लघुकथा में इसका स्पष्ट उल्लंघन है।
3. लघुकथा में पात्रों की संख्या यथासम्भव कम से कम हो। आपकी कहानी का सन्देश है कि बेटियाँ बेटों से कम नहीं होतीं। इसके लिए आपने दो बेटियों का उदाहरण दिया है। क्या यह काम सिर्फ एक बेटी से नहीं चल सकता था?
4. कहानी में शीर्षक की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। आपने इस ओर ध्यान दिया है। मेरी तरफ से बधाई।
उम्मीद है आप इन बिन्दुओं का भविष्य में ध्यान रखेंगी। आपको ढेर सारी शुभकामनाएँ। सादर।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 6, 2017 at 9:50pm
मोहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ साहब व मोहतरमा राजेश कुमारी जी की टिप्पणियों से हमें यहाँ बढ़िया मार्गदर्शन मिला है । बढ़िया रचना में एक से अधिक पलों को समेट लिया है। इस बढ़िया प्रयास हेतु बहुत बहुत बधाई आदरणीय अलका ललित जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 6, 2017 at 9:50pm
मोहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ साहब व मोहतरमा राजेश कुमारी जी की टिप्पणियों से हमें यहाँ बढ़िया मार्गदर्शन मिला है । बढ़िया रचना में एक से अधिक पलों को समेट लिया है। इस बढ़िया प्रयास हेतु बहुत बहुत बधाई आदरणीय अलका ललित जी।
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 6, 2017 at 6:01pm

आदरणीय राजेश दी,प्रयास को समय देने के लिए धन्यवाद। आप सभी गुणीजनों की इस्स्लाह अनुसार संशोधन का प्रयास कर पोस्ट को Edit किया है, कभी पहले कहानियाँ लिखी नहीं तो जरा समय लग गया। उम्मीद है कि लघुकथा अब कुछ असरदार होगी। फिर भी कुछ त्रुटि हो तो कृपया मार्गदर्शन कीजियेगा। सादर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 6, 2017 at 10:45am

अच्छी लघु कथा संदेशप्रद भी किन्तु और बेहतर हो सकती है यदि इसका कलेवर आद० मोहम्मद आरिफ जी की इस्स्लाह अनुसार हो अर्थात राजीव और नीलम का दुबारा मिलना संयोग वश इत्तेफाक से हो फिर देखिये ये लघु कथा कितनी असरदार होगी |आपको इस सुन्दर कथानक के लिए बहुत बहुत बधाई |

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 5, 2017 at 10:16pm

आदरणीय  लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी , उत्साह वर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार। सादर।

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on April 5, 2017 at 10:14pm

आदरणीय Mohammed Arif जी ,मार्गदर्शन के लिए बहुत आभार आपका ,अब बार बार पढ़ा तो आपकी बात सही लगी की कहानी में भड़ास ही दिख रही है , आगे से इस बात का ख्याल रखूंगी।  सादर।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 5, 2017 at 11:22am

कहानी सुंदर कथ्यों पर रची है | सुंदर संदेश निहित  है | बहुत बहुत बधाई

कृपया ध्यान दे...

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