For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

श्राद्ध.....लघुकथा..../अलका 'कृष्णांशी'

श्राद्ध

" पर....? हर बार तो आनंद ही ..." दूसरी तरफ की कड़क आवाज़ में बात अधूरी ही रह गई

"जी ,जैसा आप ठीक समझें ,पैरी पै..." बात पूरी होने से पहले ही दूसरी तरफ से मोबाइल कट गया ....

रुआंसी सी प्राप्ति सोफे में ही धंस गई , बंद आँखों से अश्क बह निकले

"८ बरसों में जड़ें भी मिटटी पकड़ चुकी थी ......"

"पर आंगन को फूल देना कितना जरूरी है ये एहसास देवरानी के बेटा पैदा होने के बाद हुआ ....."

"नर्म हवाओं ने तूफान बन कर सब रौंदते हुए रुख जब आनंद की ओर किया तो आनंद ने बिना किसी से सलाह किये ये किराए का मकान ले लिया " मेरे विरोध के स्वर ये कह कर चुप करा दिए "सबके बीच भी तो तुम अकेली ही हो ,कहती नहीं हो तो क्या मुझे दिखता भी नहीं।"

पर आज....!

जाने क्या क्या सोचते हुए दिन अश्को संग ही बह गया शाम तक प्राप्ति "समझदारी दिखाने" का फैसला ले चुकी थी..... "बड़े बेटे के अधिकार छीने जा सकते है फ़र्ज़ नहीं। "

और बाजार जाकर आटे की थैली , दाल, चीनी, फल वगैरह एक बाल्टी में मग और तौलिया समेत लेकर घर आ गई।

जब मन की बात आनंद को बताई तो.... "पर बाई को क्यों , मम्मी तो पंडितों .... "

आनंद की बात को बीच में ही काटते हुए प्राप्ति बोली ......"दिल से निकली दुआएं पूर्वजो तक पहुंचाने के लिए ...

"भरे हुए पेट में खीर डालने" जैसी रस्मों का श्राद्ध जरूरी है......"

नम आँखों से आनंद ने बड़े प्यार से प्राप्ति के दोनों हाथ कस कर पकड़ लिए। हाथो से होती हुई प्रेम की अनुभूति किराये के मकान को घर बन रही थी 

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 659

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 1, 2017 at 12:48pm

आदरणीया Nita Kasar ji ,रचना पर उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद। कोशिश सफल न हो पाई, पर फिर भी और सिख कर कोशिश जरूर करूंगी।  सादर 

Comment by Nita Kasar on September 21, 2017 at 4:30pm
कथा के जरिये आपने बहुत उम्दा संदेश देना चाहा है पर स्पष्ट ना हो पाया है ।फ़िलहाल बधाई आद० अलका जी ।
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 20, 2017 at 5:45pm

आदरणीय Samar Kabeer जी ,सादर अभिवादन ,रचना पर उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद। सादर। 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 20, 2017 at 5:42pm

आदरणीय  Mohammed Arif  जी,सादर अभिवादन, रचना को समय देने व् कमी बताने के लिए हार्दिक आभार..... लघुकथा कहने के प्रयास में शायद में असफल हुई ,रचना लिखते वक्त बस इतना ही भाव था की  कुछ पुरानी रस्में अक्सर सिर्फ बड़ों का मान रखने के लिए निभाई जाती है। पर वही बड़े कई बार कुछ मामलों में  बड़प्पन नहीं दिखा पाते। आहत मन जब अपने हिसाब से सोचता है तब सबसे पहले उन रूढ़ियों को तोड़ता है जो प्रैक्टिकली गलत लगती है। यहां भी प्राप्ति ने श्राद्ध में  भरे पेट यानि की (पंडित जी) को दान देने के बजाए जरूरतमंद बाई (घर में कामवाली ) को दान की वस्तुए देना ज्यादा सही समझा।   सादर

Comment by Samar kabeer on September 20, 2017 at 11:58am
मोहतरमा अलका जी आदाब,लघुकथा का प्रयास अच्छा है,बधाई ।
Comment by Mohammed Arif on September 20, 2017 at 8:26am
आदरणीया अलका जी आदाब, आखिर आप इस लघुकथा के बहाने क्या कहना चाहती हैं ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service