1212 1212 1212
जगी थीं जो भी हसरतें, सुला गए ।
निशानियाँ वो प्यार की मिटा गए।।
उन्हें था तीरगी से प्यार क्या बहुत।
चिराग उमीद तक का जो बुझा गए ।।
पता चला न, सर्द कब हुई हवा।
ठिठुर ठिठुर के रात हम बिता गए ।।
लिखा हुआ था जो मेरे नसीब में ।
मुक़द्दर आप अदू का वो बना गए।।
नज़र पड़ी न आसुओं पे आपकी
जो मुस्कुरा के मेरा दिल दुखा गये ।।
न जाने कहकशॉ से टूटकर कई ।
सितारे क्यों…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on December 11, 2017 at 11:09pm — 5 Comments
अब तो आओ कृष्ण धरा ये थर्राती है।
लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती है।।
द्युत क्रीड़ा में व्यस्त युधिष्ठिर खोया है,
अर्जुन का गांडीव अभी तक सोया है।
दुर्योधन निर्द्वन्द हुआ है फिर देखो,
दुःशासन को शर्म तनिक ना आती है।।
लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती है।।
धधक रही मानवता की धू धू होली,
विचरण करती गिद्धों की वहशी टोली।
नारी का सम्मान नहीं अब आँखों में,
भीष्म मौन फिर गांधारी सकुचाती है।।
लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती…
Added by डॉ पवन मिश्र on December 11, 2017 at 8:30pm — 15 Comments
आज चुनावी रंग में, रँगे गली औ' गाँव।
प्रत्याशी हर व्यक्ति के, पकड़ रहे हैं पाँव।।1।।
पोस्टर बैनर से पटे, हैं सब दर-दीवार।
सभी मनाएँ प्रेम से, लोकतंत्र-त्यौहार।।2।।
सोच-समझ कर ही चुनें, जन प्रतिनिधि हे मीत!
सच्चे नेता यदि मिलें, लोकतंत्र की जीत।।3।।
धन-जन-बल-षडयंत्र से, वोट रहे जो मोल।
अरि वे राष्ट्र-समाज के, मत दें हिय में तोल।।4।।
जाति-धर्म के भेद हर आग्रह से हो मुक्त।
चुनें सहज नेतृत्व निज, कर्मठ…
Added by रामबली गुप्ता on December 11, 2017 at 8:00pm — 10 Comments
सो गया बच्चा
नींद की पालकी में सवार
सो गया बच्चा
शरारती बन्दर बना बछड़ा
लगा बहुत अच्छा |
------------सो गया बच्चा
दिन भर की चपलता
लेटा आँख मलता
“सोना है मुझे “
भाव सीधा-सच्चा |
--------------सो गया बच्चा |
गीत में उमंग नहीं
फूल में सुगंध नहीं
चित्र में रंग नहीं
घर ना लगे अच्छा
----------------सो गया बच्चा |
सपनों का…
ContinueAdded by somesh kumar on December 10, 2017 at 11:42pm — 7 Comments
तेवर देखे ठंड के , थर-थर काँपे गाँव ।
सभी तलाशे धूप को , सूनी लगती छाँव ।।
यार बढ़े हैं आज तो , ठंडक के वो भाव ।
बस्ती के हर मोड़ पर , सुलगे देख अलाव ।।
बदला मौसम ने ज़रा , देखो अपना रूप ।
कितनी प्यारी लग रही , जाड़े की ये धूप ।।
अदरक वाली चाय से , होती सबकी भोर ।
बच्चों का भी शाम से , थम जाता है शोर ।।
किट-किट करते दाँत हैं , काँप रहे हैं हाथ ।
गर्मी लाने के लिये , गर्म चाय का साथ ।।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on December 10, 2017 at 10:35pm — 16 Comments
Added by Manan Kumar singh on December 10, 2017 at 11:52am — 19 Comments
उसे होश में आया देख डॉक्टर का नुमाइंदा पास आया और फरमान सुनाने लगा । अपने घर बात करके 15 हज़ार रुपये काउंटर में जमा करवा दो बाकि के पैसे डिस्चार्ज के समय जमा करा देना । मगर साहब मै बीमार नहीं, बस दो दिन से भूखा हूँ। उसकी आवाज़ घुट के रह गई, नुमाइंदा जा चुका था ।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by नादिर ख़ान on December 9, 2017 at 10:00pm — 12 Comments
"फाइनली ख़ुदकुशी करने का इरादा है क्या? सुसाइड नोट लिखने जा रही हो?"
"मैं! मैं ऐसी बेवक़ूफी करूंगी! कभी नहीं!"
"तो फिर सोशल मीडिया के ज़माने में काग़ज़ पर क्या लिखना चाहती हो?" कोई कविता, शे'अर या कथा?"
"वैसी वाली मूरख भी नहीं रही अब मैं! जो मुझे चैन से जीने नहीं देते, उन्हें भी चैन से जीने नहीं दूंगी अब मैं!"
"तो क्या एक और फ़र्ज़ी ख़त लिख रही हो अपने मायके और वकील मित्रों को झूठे ज़ुल्मो-सितम बयां करके!"
"कुछ तो इंतज़ाम करना पड़ेगा न! पता नहीं मेरा शौहर कब तलाक़ दे दे…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 9, 2017 at 7:32pm — 9 Comments
तेज़ अंधड़ के साथ खिड़कियों से पत्ते ,कीट-पतंगे और धूल कम्पार्टमेंट में घुस आई |जैसे ही हवा शांत हुई ट्रेन ने चलने का हार्न दिया |सीट पर आए पत्तों को साफ़ करने के लिए उन्होंने ज्यों ही हाथ बढ़ाया उनकी आँखे चमक उठी |हाँ ये वही वस्तु थी जिससे इर्द-गिर्द उनके बचपन का ग्रामीण जीवन पल्लवित-पोषित हुआ था |हृदयाकृति के बीचों-बीच जीवन का गर्भ यानि चिलबिल का बीज |
कुछ समय तक वो उस सुनहले बीज को निहारते रहे…
ContinueAdded by somesh kumar on December 9, 2017 at 4:38pm — 3 Comments
प्रश्न चिन्ह - लघुकथा –
आज छुट्टी थी तो सतीश घर के पिछवाड़े लॉन में अपने दोनों बच्चों के साथ बेडमिंटन खेल रहा था।
"सतीश,…. सतीश,…. पता नहीं बाहर क्या कर रहे हो? दो तीन बार आवाज़ दी, सुनते ही नहीं हो"?
"क्या हुआ क्यों चिल्ला रही हो सुधा जी। कोई इमरजेंसी आ गयी क्या"?
"हाँ, यही समझ लो"।
"क्या हुआ| कुछ बोलो भी"?
"पैथोलोजी लैब वाला आया था, मम्मी की ब्लड रिपोर्ट दे गया है"।
सतीश ने उत्सुकता से पूछा,"क्या लिखा है"?
"ब्लड कैंसर लिखा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 9, 2017 at 11:33am — 10 Comments
झूठ-सत्य के दो पलड़ों पर
टँगी हुई उम्मीदों बोलो-
कब तक झूलोगी ?
अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर
पाने की आवारा ज़िद में-
क्या-क्या भूलोगी ?
शब्दों की प्यासी बन कर तुम
चीख मौन की झुठलाती हो
बोलो आखिर क्यों ?
मनगढ़ मीठी बातें रखकर
खारापन बस तौल रही हो
इतनी शातिर क्यों…
Added by Dr.Prachi Singh on December 9, 2017 at 10:36am — 3 Comments
काफिया :आब ; रदीफ़ ;था
बह्र :२१२२ २१२२ २१२२ २१२
दिल को’ जिसने बेकरारी दी वही ऐराब था
जिंदगी के वो अँधेरी रात में शबताब था |
मेरे जानम प्यार का ईशान था, महताब था
चिडचिडा मैं किन्तु उसमे तो धरा का ताब था |
स्वाभिमानी मान कर खुद को, गँवाया प्यार को
सच यही, मैं प्यार में उनके सदा बेताब था |
आग को मैं था लगाता, बात छोटी या बड़ी
आग को ठंडा किया करता, निराला आब था |
शब कटी बेदारी’…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 8, 2017 at 3:30pm — 10 Comments
ग़ज़ल
मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन
भुलाने के लिए राज़ी तुझे ये दिल नहीं होता
तभी तो याद से तेरी कभी ग़ाफ़िल नहीं होता
महब्बत को अभी तक मैंने अपनी राज़ रक्खा है
तुम्हारा ज़िक्र यूँ मुझसे सरे महफ़िल नहीं होता
तुझे ही ढूँढता रहता मैं अपने आप में हर दम
सनम तू मेरे जीवन में अगर शामिल नहीं होता
दग़ा देना ही आदत बन गई हो जिसकी ऐ यारो
भरोसे के कभी वो आदमी क़ाबिल नहीं होता
हमेशा बीज बोता है जो…
ContinueAdded by santosh khirwadkar on December 8, 2017 at 9:30am — 11 Comments
बापमाँ (संसमरण-कथा)
19 मार्च 2017
एम्स के नेत्र वार्ड में दाखिल होने की सोच ही रहा था कि फ़ोन फिर से बज उठा |
बिटिया गोद में थी पत्नी ने फ़ोन जेब से निकाला,देखा और काट दिया |
“ कौन था ? ” “लो,खुद देखों -- -“
बिटिया को हाथ से छिनते हुए उसने फ़ोन बढ़ा दिया |
“विवेक-मधु |” स्क्रीन पर नाम दिखा |
पहले भी मिसकॉल आई थी | मैंने माहौल को हल्का करने के लहज़े से कहा |
“तीन-चार रोज़ से तो यही सिलसिला है |” पत्नी ने तीर छोड़ा
“वो…
ContinueAdded by somesh kumar on December 8, 2017 at 12:50am — 4 Comments
बह्र - फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
2122 2122 212
वो कबूतर बाज के पंजे में है।
फिर भी कहता है भले चंगे में है।
हम उसे बूढ़ा समझते हैं मगर,
एक चिन्गारी उसी बूढ़े में है।
ये सियासत आज पहुँची है कहाँ,
एक नेता हर गली कूचे में है।
वो मज़ा शायद ही जन्नत में मिले,
जो मज़ा छुट्टी के दिन सोने में है।
इस सियासत में फले फूले बहुत,
कितनी बरकत आपके धंधे में है।
नींद जो आती है खाली खाट पर,
वो कहाँ पर फोम के गद्दे में…
Added by Ram Awadh VIshwakarma on December 7, 2017 at 10:50pm — 13 Comments
(मफाईलुन-मफाईलुन -फऊलन )
किसी खंजर का मत अहसान लीजिए |
हमारी मुस्करा कर जान लीजिए |
जिसे अपना बनाने जा रहे हैं
उसे अच्छी तरह पहचान लीजिए |
हमारा साथ दोगे ज़िंदगी भर
वफ़ा से पहले दिल में ठान लीजिए |
मुझे तो बाद में चुन लीजिएगा
जहाँ की खाक पहले छान लीजिए |
किसे है ख़ौफ़ दिलबर इम्तहाँ का
कमाँ हाथों में अपने तान लीजिए |
किसी का लीजिए अहसान लेकिन
न दौलत मंद का अहसान लीजिए…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on December 7, 2017 at 2:00pm — 12 Comments
एक कार आकर रज़ाई बनाने वाले की दुकान के आगे खड़ी हुयी । कार के पिछले दरवाजे से साहबनुमा व्यक्ति बाहर निकला । दुकान वाले की बांछें खिल गईं । भला कौन इस तरह उसकी दुकान पर इतनी बड़ी गाड़ी लेकर आता है ।
दुकानदार से उन्मुख होते हुए साहब ने छोटे साइज़ के रज़ाई, गद्दा, तकिया और चद्दर दिखने को कहा । दुकानदार ने सोचा साहब को अपने छोटे बच्चे के लिए ये सब चाहिए, सो बड़े उत्साह से चीजें दिखने लगा । पर साहब ने बताया कि उन्हें ये सब समान अपने "डौगी" के लिए लेना है ।…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on December 7, 2017 at 10:30am — 8 Comments
2122 2122 212
फिर कोई सिक्का उछाला जा रहा ।
रोज मुझको आजमाया जा रहा ।।
मानिये सच बात मेरी आप भी ।
देश को बुद्धू बनाया जा रहा ।।
कौन कहता है यहां सब ठीक है ।
हर गधा सर पे बिठाया जा रहा ।।
हो रहे मतरूफ़ सारे हक यहां ।
राज अंग्रेजों का लाया जा रहा ।।
हर जगह रिश्वत है जिंदा आज भी ।
खूब बन्दर को नचाया जा रहा ।।
कुछ हिफाज़त कर सकें तो कीजिये ।
बेसबब ही जुर्म ढाया जा रहा…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 7, 2017 at 1:58am — 4 Comments
221 2121 1221 212
राह- ए- बदी से हम कभी वाक़िफ़ नहीं रहे
फिर भी तेरे निशाने पे वाइज़ हमीं रहे
कर ग़ौर अपने तौर-तरीकों पे एक बार
चहरा फ़क़त हसीं न हो दिल भी हसीं रहे
दिल के दियार की ज़रा रौनक बहाल हो
गर इस मकाँ में आप सा कोई मकीं रहे
कर इश्क या जगा दे तसव्वुफ़ तेरी रज़ा
ऐ दिल तेरे खिलाफ़ कभी हम नहीं रहे
अब भी यहीं हैं फूल कली चाँद सब मगर
दिलकश तुम्हारे बाद ये उतने नहीं रहे
दिल के…
Added by Gajendra shrotriya on December 6, 2017 at 8:30pm — 12 Comments
जीने के लिए ...
जाने
कितनी दुश्वारियों को झेलती
ज़िंदगी
रेंगती हसरतों के साथ
खुद भी
रेंगने लगती है
हर कदम
जीने के लिए
ज़ह्र पीती है
हर लम्हा
चिथड़े -चिथड़े होते
आरज़ूओं के
पैबंद सीती है
जाने कब
वक़्त
ज़िंदगी की पेशानी पर
बिना तारीख़ के अंत की
एक तख़्ती
लगा जाता है
उस तख़्ती के साथ
ज़िंदगी रोज
मरने के लिए
जीती है
और
जीने के लिए
मरती है
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 6, 2017 at 1:25pm — 9 Comments
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