For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

" नज़रें ज़माने भर की उस इक गुलाब पर हैं "

बहर - 221 2122 221 2122


यूँ मेरी नज़रें ग़ज़लों की हर किताब पर हैं .......
जैसे....... शराबियों की नज़रें शराब पर हैं ....

जब .चल दिया मैं उनकी महफ़िल से तो वो बोले
ठहरो ......कुछेक पल लब मेरे ज़वाब पर हैं .....


हाँ , बेगुनाह होती है अपनी भावनायें
इल्जाम इसलिये तो लगते शबाब पर हैं .....

ऐ - मौला तुम भी रखना अपनी निगाहें उस पर
नज़रें ज़माने भर की उस इक ग़ुलाब पर हैं ......

मैंने चमकने की है जब से यूँ बात ठानी
तब से मिरी निगाहें उस आफ़ताब पर हैं .....

इक मेरा मुस्कुराना , दूजा है काम लिखना
यूँ ..... ख़ास पर्दे होते मेरे अज़ाब पर है ....

पंकजोम " प्रेम ".....

Views: 559

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manoj kumar shrivastava on December 21, 2017 at 3:47pm

आदरणीय पंकजोम जी सादर नमस्कार। इस बढ़िया रचना पर मेरी बधाई प्रेषित है।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2017 at 11:31pm

हार्दिक बधाई।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 20, 2017 at 8:10pm

बहुत ही खूब ग़ज़ल कही आदरणीय..सादर

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 20, 2017 at 2:06pm

वाह बहुत खूब । कबीर साहब की इस्लाह कीमती है ।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 19, 2017 at 9:30pm

आदरणीय पंकज भाई,दिली मुबारकबाद 

Comment by SALIM RAZA REWA on December 19, 2017 at 7:02pm
भाई पंकजोम जी
ग़ज़ल के लिए बधाई. उस्तादों के मसवरे से ग़ज़ल को ज़रूर निखारें।
Comment by पंकजोम " प्रेम " on December 19, 2017 at 3:52pm

जी आ0 दादा samar kabeer जी अभी दुरूस्त कर देता हूँ ग़ज़ल को ....... बेहद शुक्रगुज़ार हूँ आपके आशिर्वाद का ...

Comment by पंकजोम " प्रेम " on December 19, 2017 at 3:51pm

बेहद शुक्रगुज़ार हूँ  .. आपके आशिर्वाद आ0 दादा mohammed arif जी ....

Comment by Samar kabeer on December 19, 2017 at 2:44pm

जनाब पंक्जोम 'प्रेम'साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

दूसरे शैर के सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखिये, 'पल लब' ।

4थे शैर के ऊला में 'तुम' की जगह "तू" शब्द मुनासिब होगा ।

5वें शैर के ऊला मिसरे में 'बात ठानी' की जगह "दिल में ठानी" करना मुनासिब होग़ा ।

Comment by Mohammed Arif on December 18, 2017 at 7:47pm

आदरणीय पंकजोम जी आदाब,

                           एक अच्छी ग़ज़ल का प्रयास मगर और बेहतर हो सकती थी । हार्दिक बधाई.स्वीकार करें । गुणीजनों का इंतज़ार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
16 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service