"અરે વીરુ ! આ બેન આવ્યા છે, આમનું પેકેટ પેલાં કબાટ માં રાખેલ છે, જરા કાઢીને લયી આઓ." શેઠજી બોલ્યા."જી શેઠજી! " વીરુ આટલું કહીને શેઠજીએ બતાવેલ કબાટ તરફ રૂખ કર્યું. ત્યાં જવા પેહલા એનું ધ્યાન દુકાન માં…Continue
Started by KALPANA BHATT ('रौनक़') Jun 12, 2018.
"આહ ! આ શું થઇ રહ્યું છે મને , આવી તો ના હતી હૂં કદી પણ , હે ભગવાન , આ મને શું થયું છે ? " અકળાયેલા મન થી સૌમ્યા સોફા પર બેસી ગયી . ઉપર જોયું તો પંખો ગોળ ગોળ ફરી રહ્યો હતો, પણ આજે એની હવા કેમ નથી…Continue
Started by KALPANA BHATT ('रौनक़'). Last reply by KALPANA BHATT ('रौनक़') Oct 11, 2017.
ઘરે મહેમાન ઘણાં હતા , એ વચ્ચે એક આગંતુક આવ્યો એને જોઈને બા એક્દુમ આશ્ચર્યચકિત થયા . બંને ની આંખો મળી , પણ બને ખામોશ રહ્યા . સોનાલી ના પપ્પા એ પણ એ આગંતુક ને જોઈ લીધેલા પણ એ પણ કશું ના બોલ્યા , તેઓએ…Continue
Started by KALPANA BHATT ('रौनक़'). Last reply by KALPANA BHATT ('रौनक़') Aug 29, 2017.
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गीत (छत्तीसगढ़ी )
जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़
माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़
जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीस गढ़
हिन्द के तैं हिरदै हव धान के कटोरा
बिस्नुभोग, जवाँफूल ले भर भर बोरा
तस्मई खुरमी, भजिया, लाड़ू जलेबी
हरेली, मड़ई, कमरछठ, तीजा अउ पोरा
बुड़ती राजनांदगाव ले उत्ती रैगढ़
जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़
सुआ, राउत-नाचा, भरथरी पंडवानी
लोरी, ददरिया,फुगड़ी आनी-बानी
गिल्ली-डंडा, रेस टीप, भौँरा अउ बाँटी
बासी चटनी संग छत्तीसगढ़ीया खांटी
उन्नति के रद्दा म जी बढ़ आघू बढ़
जय छत्तीसगढ़ जय- जय छत्तीसगढ़
महानदी, इंद्रावती, अरपा, सोंढूर
हमार महतारी बर,जल हे भरपूर
हमन सबले सच्चा, हमन सबले बढ़िया
हमन ढाई कोटि,सब्बो छत्तीसगढ़िया
नवा छत्तीसगढ़ हमन गढ़बो जी सुघ्घड़
जय छत्तीसगढ़ जय- जय छत्तीसगढ़
माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़
मौलिक एवं अप्रकाशित
दिल आपणे नै डाट भाई रै ।
क्यूं ठारया सिर पै खाटभाई रै ।
अस्त्र शस्त्र बतेरे देखे।
देखी सबकी काट भाई रै ।
भाइयां मैं तो रल कै रै ले।
क्यूं बण रया तों लाट भाई रै ।
बाहर कितनिए मौज मिल्ज्या।
घर बरगे नी ठाठ भाई रै ।
बुराई जे तनै आंदी दिखै।
भेड़ ले आपने पाट भाई रै ।
सब की सोच एक सी कोनी।
बातां नै ना चाट भाई रै।
कोई चुस्सै बलदी चिलम नै।
कोई पाणी का माट भाई रै।
'कल्याण' मन की गांठ खोल दे।
हाँ भर कै ना नाट भाई रै।।
मौलिक एवम् अप्रकाशित
सुरेश कुमार 'कल्याण'
लघुबाता – फिकर (मालवी) “ अरे ओ किसनवा ! लठ ले के कठे जा रियो हे ? मच्छी मारवा की ईच्छा हे कई ?” “ नी रे , माधवा ! गरमी मा पाच कौस पाणी लेवा नी जानो पड़े उको बंदोबस्त करी रियो हु.” “ ई लाठी थी ?” किसनवा से मोटी व वजनी लाठी देख कर माधवा की हंसी छुट गइ . “ हंस की रियो रे माधवा . बापू की लाठी से डरी ने मूँ सकुल जानो रुक सकू तो ये नदि का नी रुक सके.” ------------------------------ लघुकथा – चिंता “ अरे किसन ! लाठी ले कर किधर जा रहा है ? मछली खाने की इच्छा है ?” “ नहीं रे माधव ! गर्मी में पांच मील पानी लेने जाना पड़ता है. उसी का इंतजाम करना चाहता हूँ.” “ इस लाठी से ?” किसन से लम्बी और भारी लाठी देख कर माधव की हंसी छुट गई . “ हंस क्यों रहा है माधव. पिताजी की लाठी से डर कर मैं स्कूल जाना छोड़ सकता हूँ तो नदी बहना क्यों नहीं छोड़ सकती है ?” ----------- मौलिक और अप्रकाशित
मोर जानत मा ये मंच मा छत्तीसगढ़ी के पहिली टिप्पणी आपमन करे हौ. मन हा परसन होगे भाई. गीत रुचिस, मोर भाग खुलगे.
बने छतीसढ़ी गीत लिखे हवौ भैय्या अरुण निगम जी , आपमन ला मोर डहन ले झारा झारा बधई हवे !! हमर भांखा के मान घलो बढ़ाय हवौ , ओखरो बर बधई लेवौ !!
मया चिरई : अरुण कुमार निगम
(छत्तीसगढ़ी गीत)
जुग-जुग के नाता पल-छिन मा
मिट जाय कभू छुट जाय कभू
पल-छिन के नाता जुग-जुग के
बन जाय कभू, बँध जाय कभू |
कभू चीन्हत-चीन्हत चीन्है नहिं
कभू अनचीन्हे चिन्हारी लगय
कभू अइसन चीन्हा मिल जावय
नइ जिनगी भर मिट पाय कभू |
कभू हाँसत-हाँसत रोवय मन
कभू रोवत-रोवत हाँसे लगय
चंचल मन के का बात कहवँ
उड़ जाय कभू रम जाय कभू |
कभू अइसन अचरिज हो जाथे
भागे नहिं पावै कहूँ कती
ये मया चिरई बड़ अजगुत हे
बिन फाँदा के फँस जाय कभू ||
(मौलिक व अप्रकाशित)
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
[शब्दार्थ -
मया चिरई = प्रेम चिरैय्या, कभू = कभी, चिन्हारी = पहचान, अइसन = ऐसा, चिन्हा = निशानी, अजगुत = आश्चर्यजनक, कहूँ कती = किसी ओर]
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