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लूटकर लोथड़े माँस के
पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त
डकारकर कतरा - कतरा मज्जा
जब जानवर मना रहे होंगे उत्सव
अपने आएंगे अपनेपन का जामा पहन
मगरमच्छ के आँसू बहाते हुए
नहीं बची होगी कोई बूॅंद तब तक
निचोड़ने को अपने - पराए की
बचा होगा केवल सूखे ठूॅंठ सा
निर्जिव अस्थिपिंजर ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Posted on July 29, 2025 at 3:57pm
पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।
युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।
घुसें समझ कर सौड़ , सौड़ काँटों का बिस्तर ।
लालच के वश होत , स्वर्ग सा जीवन बदतर ।
खाते सब 'कल्याण', भाग्य का नभ थल जलचर ।
जब देते भगवान , नहीं फिर लगता पलभर ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Posted on July 24, 2025 at 2:22pm
धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।
जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।
जर्रा - जर्रा नींद में , ऊँघ रहा मदहोश।
सन्नाटे को चीरती, सरसर बहती वात।
मेघ चाँद को ढाँपते , ज्यों पशमीना शाल।
परिवर्तन संदेश दे , चमकें तारे सात।
हूक हृदय में ऊठती, ज्यों चकवे की प्यास।
छत पर छिटकी चाँदनी, बेकाबू जज़्बात।
बिजना था हर हाथ में, सभी सुखी थे
झोल।
गलियों में ही खाट पर, सोता था देहात।
दिनभर…
ContinuePosted on July 14, 2025 at 8:30pm — 3 Comments
दोहा सप्तक
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चिड़िया सोने से मढ़ी, कहता सकल जहान।
होड़ मची थी लूट लो, फिर भी रहा महान।1।
कृष्ण पक्ष की दशम तिथि, फाल्गुन पावन मास।
दयानंद अवतार से, अंधकार का नास।2।
टंकारा गुजरात में, जन्में शंकर मूल।
दयानंद बन बांटते, आर्य समाज उसूल।3।
जोत जगाकर वेद की, दिया विश्व को ज्ञान।
त्याग योग संस्कार ही, भारत की पहचान।4।
कहा वेद की भाष में, श्रेष्ठ गुणों को धार।
लक्ष्य…
ContinuePosted on February 23, 2025 at 3:30pm — 3 Comments
आद.सुरेश कुमार जी ,आपकी कविताओं में खूबसूरत बहाव है.सहजता है जो हर पाठक से सहज में जुड़ जाती है.
आदरणीय
सुरेश कुमार 'कल्याण' जी,
सादर अभिवादन,
यह बताते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में विगत माह आपकी सक्रियता को देखते हुए OBO प्रबंधन ने आपको "महीने का सक्रिय सदस्य" (Active Member of the Month) घोषित किया है, बधाई स्वीकार करें | प्रशस्ति पत्र उपलब्ध कराने हेतु कृपया अपना पता एडमिन ओ बी ओ को उनके इ मेल admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध करा दें | ध्यान रहे मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई है |
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सादर ।
आपका
गणेश जी "बागी"
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