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२१२२/२१२२/२१२२
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खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके
साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१।
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चूड़ियाँ खनकें हिना का रंग हँसता
स्वप्न सजनी के सभी गुलज़ार करके।२।
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चाँद का पथ तक रहीं बेचैन आँखें,
लौट आओ कह स्वयं उपहार करके।३।
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रूठना पलभर मनाना उम्रभर को
प्यार में सजनी ने यूँ इकरार करके।४।
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मान अम्बर क्यों न जाये रीझने को
जब रिझाती हो धरा शृंगार करके।५।
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भर दिवस उपवास कर माँगी दुआ…
Posted on October 9, 2025 at 7:23pm — 2 Comments
Posted on September 25, 2025 at 5:02pm — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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जिनकी ज़बाँ से सुनते हैं गहना ज़मीर है
हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर है।१।
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जब सच कहे तो काँप उठे झूठ का नगर
हमको तो सच का ऐसे ही गढ़ना ज़मीर है।२।
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सत्ता के साथ बैठ के लिखते हैं फ़ैसले,
जिनकी कलम है सोने की, मरना ज़मीर है।३।
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ये शौक निर्धनों का है, पर आप तो धनी,
किसने कहा है आप को, रखना ज़मीर है।४।
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चलने लगी हैं गाँव में, बाज़ार की हवा,
पनपेंगे ज़र के…
Posted on September 3, 2025 at 9:15pm — 4 Comments
२१२/२१२/२१२/२१२
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घाव की बानगी जब पुरानी पड़ी
याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१।
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झूठ उसका न जग झूठ समझे कहीं
बात यूँ अनकही भी निभानी पड़ी।२।
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दे गये अश्क सीलन हमें इस तरह
याद भी अलगनी पर सुखानी पड़ी।३।
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बाल-बच्चो को आँगन मिले सोचकर
एक दीवार घर की गिरानी पड़ी।४।
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रख दिया बाँधकर उसको गोदाम में
चीज अनमोल जो भी पुरानी पड़ी।५।
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कर लिया सबने ही जब हमें आवरण
साख हमको सभी की बचानी…
Posted on September 1, 2025 at 5:30pm — 5 Comments
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।
सादर आभार आदरणीय
अपने आतिथ्य के लिए धन्यवाद :)
मुसाफिर सर प्रणाम स्वीकार करें आपकी ग़ज़लें दिल छू लेती हैं
जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी
प्रिय भ्राता धामी जी सप्रेम नमन
आपके शब्द सहरा में नखलिस्तान जैसे - हैं
शुक्रिया लक्ष्मण जी
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