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All Blog Posts Tagged 'गीत' (163)

आओ मिलकर चमन सजायें -आशुतोष

नवबर्ष पर हार्दिक शुभकामनाये 

आओ मिलकर चमन सजायें

गीत नए फिर मिलकर गायें

कुमकुम रोली से रंग धरती

दर पर वन्दनवार लगाये

जान दे रहे हैं सरहद पर

आज भारती के जो लाल

उनके सीने हैं फौलादी

उन्हें डराएगा क्या काल

मुल्क पड़ोसी को अब आओ

हम उसकी औकात दिखाएं

आओ मिलकर चमन सजायें

गीत नए फिर मिलकर गायें

अश्क बहाने से होती

तौहीन शेर दिल वीरों की

अश्कों से बलिदान…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on January 1, 2017 at 1:38pm — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
लेकिन आगे कैसे बढ़ लें? - (गीत) - मिथिलेश वामनकर

नई नई कुछ परिभाषाएँ, राष्ट्र-प्रेम की आओ गढ़ लें।

लेकिन आगे कैसे बढ़ लें?

 

मातृभूमि के प्रति श्रद्धा हो, यह परिभाषा है अतीत की।

महिमामंडन, मौन समर्थन परिभाषा है नई रीत की।

अनुचित, दूषित जैसे भी हों निर्णय, बस सम्मान करें सब।

हम भारत के  धीर-पुरुष हैं,  कष्ट सहें, यशगान करें सब।

चित्र वीभत्स मिले जो कोई,

स्वर्ण फ्रेम उस पर भी मढ़ लें।

 

मर्यादा के पृष्ट खोलकर, अंकित करते भ्रम का लेखा।

राष्ट्रवाद का कोरा डंका, निज…

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Added by मिथिलेश वामनकर on December 31, 2016 at 11:30pm — 23 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
जल रहें हैं गीत देखो (गीत) - मिथिलेश वामनकर

वेदना अभिशप्त होकर,

जल रहें हैं गीत देखो।

 

विश्व का परिदृश्य बदला और मानवता पराजित,

इस धरा पर खींच रेखा, मनु स्वयं होता विभाजित ।

इस विषय पर मौन रहना, क्या न अनुचित आचरण यह ?

छोड़ना होगा समय से अब सुरक्षित आवरण यह।

कुछ कहो, कुछ तो कहो,

मत चुप रहो यूँ मीत देखो।

वेदना अभिशप्त होकर,

जल रहें हैं गीत देखो।

 

मन अगर पाषाण है, सम्वेदना के स्वर जगा दो।

उठ रही मष्तिष्क में दुर्भावनायें,  सब भगा…

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Added by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2016 at 11:00am — 18 Comments

तुमको गीतों में ढाला तो ये कागा भी कुहक उठा- पंकज द्वारा गीत

तेरा नाम लिखा जो प्रियतम,पन्ना पन्ना महक उठा।

तुझको गीतों में ढाला तो, ये कागा भी कुहक उठा।।



मेरे शब्दों में खालीपन, एक उदासी छाई थी।

मुर्दों से बिछते कागज़ पर, मरघट सी तन्हाई थी।।



तेरा रूप उकेरा जब तो, कोहेनूर सा दमक उठा।

तुझको गीतों में ढाला तो, ये कागा भी कुहक उठा।।1।।



मैं तो ठहरा एक बावरा, इस उपवन उस उपवन भटका।

ढूँढा तुझको यहाँ वहाँ, पर माया वाले जाल में अटका।।



तेरा रूप सुमन जो महका, मन का पंछी चहक उठा।

तुझको गीतों में ढाला… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on December 2, 2016 at 4:30pm — 17 Comments

जब बात समझ में आएगी- गीत

देखो तुम भी गुनगुनाओगे जब बात समझ में आएगी

देखो तुम भी मुस्कुराओगे जब बात समझ में आएगी



कोई भी अकेला कैसे करे, इस अंधियारे से सबको दूर  

तुम साथ चले ही आओगे, जब बात समझ में आएगी



गर लक्ष्य बड़ा  हो जीवन में, देनी  पड़ती है क़ुरबानी

खुशियों के दीप जलाओगे, जब बात समझ में आएगी



हर काम सही से हो जाए, क्यूँ  रखते लोगों से उम्मीद

अपने भी फ़र्ज़ निभाओगे, जब बात समझ में आएगी



इस वक़्त अगर ना बन पाए इस तब्दीली का इक हिस्सा 

आगे चलकर…

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Added by विनय कुमार on November 17, 2016 at 3:32pm — 8 Comments

गीत -''ये तो मोहब्बत नहीं !

तेरी ज़िद है तू ही सही ;

मेरी अहमियत कुछ नहीं ,

बहुत बातें तुमने कही ;

मेरी रह गयी अनकही ,

ये तो मोहब्बत नहीं !

ये तो मोहब्बत नहीं !!

.......................................

हुए हो जो मुझ पे फ़िदा ;

भायी है मेरी अदा ,

रही हुस्न पर ही नज़र ;

दिल की सुनी ना सदा ,

तुम्हारी नज़र घूरती ;

मेरे ज़िस्म पर आ टिकी !

ये तो मोहब्बत नहीं !

ये तो मोहब्बत नहीं !!

..................................

रूहानी हो ये सिलसिला ;

ना इसमें हवस को मिला…

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Added by shikha kaushik on August 9, 2016 at 9:27pm — 3 Comments

गीत- ये है पुलिस की नौकरी,

२२१२ २२१२ २२१२ २२१२



ये है पुलिस की नौकरी, ये है पुलिस की नौकरी ।

कानून की ये टोकरी, ये है पुलिस की नौकरी ।



मुजरिम को पकडे तो कहे कुछ लोग अत्याचार है।

गर चुप रहे तो कहते है करती पुलिस व्यापार है।

जब मस्तियों में गाँव हो या नींद में होता शहर।

ऐ दोस्तो वे हम ही है जो जागते आठों पहर।

सोने का या फिर खाने का यां वक्त कुछ निश्चित नहीं।

हो जुर्म कितना भी मगर हम है तो तुम चिंतित नहीं

फिर भी हमें है लाख तानें और हजारों बात है।

हर फर्ज पूरा कर… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on March 5, 2016 at 2:38pm — 2 Comments

राह हमें उत्कर्ष की, नित दिखला नववर्ष......

दोहा छंद आधारित गीत

================

मन सहिष्णु भटके नहीं,

लेकर भाव अमर्ष

राह हमें उत्कर्ष की, नित दिखला नववर्ष.....

 

झाँक रही दीवार से,

खूंटी ओढ़े  गर्द

साल मुबारक हो नया,

कहता मौसम सर्द

जंत्री नूतन साल की, करती ध्यानाकर्ष

 

लौटें लेकर सुदिन सब,

उत्सव औ त्यौहार

मिलना जुलना हो सहज,

सरल भाव व्यवहार

जाति धर्म के नाम पर, हो न कभी संघर्ष

 

गीत छंद कविता गजल,

ललित कलेवर…

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Added by Satyanarayan Singh on December 23, 2015 at 9:00pm — 12 Comments

है देशों में वो देश महान,अपना प्यारा हिंदुस्तान (देशभक्ति गीत)

छोड़ शहर की रौनक,जिसके

गाँव में बसते प्राण।

जिसकी पावन धरती ने है

जने वीर संतान।

जिसकी गौरव-गाथा का

करे विश्व गुणगान।



है देशों में वो देश महान।

अपना प्यारा हिन्दुस्तान।।



सूरत से भी ज़्यादा उनकी

होती सीरत प्यारी।

हृदय में जिनके बहती है

करुणा जग की सारी।

वक़्त पड़े तो रणभूमि में

जौहर दिखलाती नारी।



अत्याचार को देख के जिनके

दिल में उठता है तूफ़ान।।



राजतंत्र को मिटा जिन्होंने

गणतंत्र हमें…

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Added by जयनित कुमार मेहता on December 13, 2015 at 9:30pm — 6 Comments

गीत - कितना तुझको याद किया.( बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’)

श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुझको याद किया|

भूल गई मैं सारे जग को, फिर भी तेरा नाम लिया|

यादों में तेरी मुरली वाले, जीवन यूँ ही गुजार दिया,

श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुझको याद किया|

 

देख के तेरी भोली सूरत हम भी धोखा खा ही गए,

मोहन तेरी मीठी-मीठी बातों में हम आ ही गए,

हार गए जीवन में सब फिर भी तेरा नाम लिया

श्याम हमारे दिल से पूछो, कितना तुझको याद किया|

 

करती हूँ कोशिश मैं मोहन याद हमेशा तुम आओ,

रह नही सकती…

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Added by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 19, 2015 at 8:30pm — 2 Comments

हर द्वारे पर दीप जलाएं (गीत)

हर द्वारे हम दीप जलाएं, उत्सव की हो शाम सदा

झूम झूम कर खूब नाचता, जंगल में है मोर सदा |

 

क्षण भंगुर ये जीवन अपना,

कर्म करे से सधता सपना |

रोने से क्या कुछ मिल पाए ?

आओ सब मिले हाथ मिलाएं, काम बाँटते रहे सदा,

हर द्वारे हम दीप - - - - - - - -

 

आतंक का मिल करे सामना,

रहे न ह्रदय में हीन भावना |

सबके सुख के दीप जलाएं

सब मिल डर को दूर भगाएं, ह्रदय भरे विश्वास सदा 

हर द्वारे हम दीप - - - - - -- -…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 16, 2015 at 8:30pm — 6 Comments

जीवन पथ पर..//गीत!

जीवन पथ पर चारो ओर फैला हुआ बस प्यार हो

आशाओँ का हमारी ऐसा एक संसार हो!

-

जाति-धर्म का न भेदभाव जहां हो

मानवता का बस बर्ताव वहां हो,

रहेँ हम सब मिलकर ऐसा एक घर-बार हो

...आशाओँ का हमारी ऐसा एक संसार हो!

-

स्वयं को समझेँगे जब एक समान

तभी बनेँगे हिन्दु,मुस्लिम,सिक्ख महान,

सब धर्मोँ की लागी एक कतार हो

...आशाओँ का हमारी ऐसा एक संसार हो!

-

जहां प्रेम हो पूजा, प्रेम जीवन हो

तन,मन,धन सब इसे अर्पण होँ,

सत्य,अहिँसा और प्रेम जीवन… Continue

Added by Abid ali mansoori on November 5, 2015 at 1:23pm — 11 Comments

हल चलाना जानता हूँ (गीत)

है कला,मिट्टी से मैं,

सोना उगाना जानता हूँ।

पुत्र हूँ किसान का,

मैं हल चलाना जानता हूँ।।



ताप से दिनकर के मैं

तपकर कभी पिघला नहीं

रोक सकती हैं नहीं

मुझको मचलती भी बयारें



प्रात हो या रात,रहता

मैं सदा ही मस्तमौला

बरखा मूसलाधार चाहे

हलकी-फुल्की हों फुहारें



काल के भी गाल से,

मैं लौट आना जानता हूँ..!



लहलहाती है फसल जब

मैं ख़ुशी से झूमता हूँ

संग मेरे झूमते हैं

प्रकृति के सब नज़ारे



ये… Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on October 2, 2015 at 7:40pm — 9 Comments

अगर पूर्वजों के सहारे न होते .

अगर रंग - बिरंगे ये नारे न होते.
तो फिर हम भी इतने बेचारे न होते .
बस बातों के मरहम से भर जाते शायद .
अगर ज़ख्म दिल के करारे न होते .
भला किसकी हिम्मत सितम ढा सके यूँ .
अगर हम जो आदत बिगाड़े न होते .
कहीं ना कहीं से तो शह मिल रहा है .
निर्भया के बसन यूँ उतारे न होते .
मिट जाती  कब की  ये रस्मोरिवाज़ें .
अगर पूर्वजों के सहारे  न होते .
  
मौलिक और अप्रकाशित
सतीश मापतपुरी

Added by satish mapatpuri on September 20, 2015 at 10:00pm — 3 Comments

हिन्दी चमक रही है / गीत

भारत के अंबर पर देखो

सूर्य सी हिन्दी चमक रही है

माँ भारती के उपत्यका में

खुशबू बनकर महक रही है

 

विभिन्न प्रांतों का सेतुबंधन

सरल सर्वजन सर्वप्रिय है

दक्षिण से उत्तर पूर्व पश्चिम

दम दम दम दम दमक रही है

 

संस्कारों की वाहक हिन्दी

सभी भाषाओं में यह गंगा

प्रगति पथ पर नित आरूढ़ ये

पग नवल सोपान धर रही है

 

यूरोप अमेरिका ने माना

है यह भाषा समर्थ सक्षम

हम भारतियों के दिल में…

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Added by Neeraj Neer on September 14, 2015 at 7:59am — 6 Comments

मैं नदिया के पार क्षितिज के पास मिलूँगा

मैं नदिया के पार क्षितिज के पास मिलूंगा।

यादों की फुलवारी में बन सांस मिलूंगा।।



पास नहीं हम दोनों लेकिन सपने तो हैं।

जब सोचोगी मैं बनकर एहसास मिलूंगा।।



काजल की रेखाएं बनकर मैं आँखों में।

घुंघरू की आवाज़ें बनकर मैं पावों में।

प्रथम किरण के संग तेरी अरदास करूंगा।

यादों की फुलवारी में बन सांस मिलूंगा।।



तेज धूप से तुझे बचाता बादल बनकर।

रिमझिम रिमझिम झरता हुआ सा सावन बनकर।

प्रिय तुझसे मैं तो बनकर बरसात मिलूंगा।

यादों की फुलवारी… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 12, 2015 at 1:04pm — 2 Comments

हम "पत्थर" भी पूजे जाते

आ जाते इक बार अगर जो

तुम हमको भी चूमे जाते।

कई शिलाएं देव हुई हैं

हम "पत्थर" भी पूजे जाते।।



राहों में बेजान पड़े हैं

अपनी गति को ढूंढ रहे हैं।

कभी इधर तो कभी उधर को

राहों में बस घूम रहे हैं।।



अपने सुर्ख गुलाबी वाले

मुझमें रंग जो भरके जाते।

कई शिलाएं देव हुई हैं

हम "पत्थर" भी पूजे जाते।।1।।



ये तन है पर प्राण नहीं है

सांस का कुछ भी पता नहीं है।

दिल तो है पर शांत बहुत है

जीवित हूँ यह एक भ्रान्ति… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 21, 2015 at 10:06pm — 15 Comments

बहुत ज़रूरी है

तेरी आँखों की पलकों का, उठना बहुत ज़रूरी है।

इस चेहरे पर प्रेम पत्र है, पढना बहुत ज़रूरी है।।



कितनें सपनें इन आँखों नें, बुन रक्खे हैं तेरे लिए।

इन आँखों का हर इक पन्ना, खुलना बहुत ज़रूरी है।।



इस सीनें में जो इक दिल है, सरगम कोई सुनाता है।

धड़कन की इस मधुर राग को, सुनना बहुत ज़रूरी है।।



मेरे अधरों पर सदियों की, प्यास नें रेखाएं खींची हैं।

मधु सिंचन कर रेखाओं का, मिटना बहुत ज़रूरी है।।



इस बस्ती का घना अँधेरा, अपने चाँद को ढूंढ रहा… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 21, 2015 at 7:27pm — 11 Comments

सकल धरा पर तेरे रूप का ग्रन्थ लिखूँ

जितनी सुन्दर तुम हो उतने, सुंदर सुंदर छन्द लिखूँ।

जी करता है सकल धरा पर, तेरे रूप का ग्रन्थ लिखूँ ।।



झुकी निगाहें बिखरे गेसू, मन का मौसम सरस हुआ।

जी करता बस देखूँ देखूँ, तेरी छवि का दरश हुआ।।



रिमझिम बरस रहे सावन की, शीतल शीतल बूँद लिखूँ।

जी करता है सकल धरा पर, तेरे रूप का ग्रन्थ लिखूँ।।1।।



टपक रहीं बालों से बूँदें, धुली हुई इक पुष्पलता सी।

खुले अधर पर ठहरी बूँदें, जगी अभीप्सा यहाँ ख़ता की।।



बेसुध कर दे मन को पल में, ऐसी तुझे सुगंध… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 15, 2015 at 11:24am — 10 Comments

वीरो की धरती....

देश भक्ति गीत...01

-----------------------------------------------

वीरो की धरती में हूँ जन्मा

कायरता न करनी है

नब्ज में है खून वीरों का

रक्षा इसकी करनी है

-------------------------------------------------

न्योछावर हो जाना है हँस

तिरंगा हांथों में लिए

वीरो की क़ुरबानी की अब

लाज हमें ही रखनी है

--------------––---------------------------

वीरो की धरती में हूँ जन्मा

कायरता न करनी है…

Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on August 13, 2015 at 9:30am — 2 Comments

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