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ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करना

आऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।

मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरी

कह दूं मैं, बस रोक दे वो शोर करना।

पंक्तियों के बीच पढ़ना आ गया है

भूल बैठा हूं मैं अब इग्नोर करना।

ये नजर अब आपसे हटती नहीं है

बंद करिए तो नयन चितचोर करना।

याद बचपन की न जाती है जेहन से

अब अखरता खुद को ही मेच्योर करना।

आज को जैसे वो जीना भूल बैठे

बस उन्हें धुन अपना कल सेक्योर करना।

जिंदगी घेरा बनाकर छोड़ देती

उम्र भर हम सीखते चौकोर करना।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Samar kabeer on July 12, 2024 at 6:25pm

जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, मज़ाहिया ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'याद कर इतना न दिल कमजोर करनास

इस मिसरे में 'कर' शब्द वाक्य विन्यास को कमज़ोर कर रहा है,इसकी जगह "रख" शब्द उचित होगा, ग़ौर फ़रमाएँ ।

'कह दूं मैं, बस रोक दे वो शोर करना'

इस मिसरे का वाक्य विन्यास मुझे ठीक नहीं लगा, उचित लगे तो यूँ कर सकते हैं:-

'कह रहा हूँ रोक दे तू शोर करना'

'याद बचपन की न जाती है जेहन से'

इस मिसरे में सहीह शब्द "ज़ह्न" 21 है,,उचित लगे तो यूँ कर लें:-

ज़ह्न से जाती नहीं बचपन की यादें'

बाक़ी शुभ-शुभ ।

Comment by जयनित कुमार मेहता on July 11, 2024 at 9:16am

आदरणीय मिथिलेश जी, सादर नमस्कार! अच्छी ग़ज़ल हुई है। ख़ूब मुबारकबाद आपको। एक जिज्ञासा है - क्या ज़ेहन का वज़न 122 लिया जा सकता है?

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 2, 2024 at 5:55pm

आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 31, 2024 at 1:16am

आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 31, 2024 at 1:15am

आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर

Comment by Shyam Narain Verma on April 27, 2024 at 7:34pm
नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर
Comment by Sushil Sarna on April 18, 2024 at 12:26pm
वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी
हार्दिक बधाई

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