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बगैर बादल के आ बरस जा तू इश्क़ की कुछ फुवार कर दे

1212, 212, 122, 12 12, 212, 122

बगैर बादल के आ बरस जा तू इश्क़ की कुछ फुवार कर दे

है एक अर्से से प्यासी धरती बढ़ा ले क़ुर्बत बहार कर दे

बहुत बड़ा है शहर ये दिल्ली यहाँ के चर्चे बहुत सुने हैं

हमें तो अपना ही गांव प्यारा तू लाख इसको सुधार कर दे

बदल रहे हैं घरों के ढांचे सभी के अपने अलग है कमरे

पुराने बर्तन नए हुए हैं तू भी बदल जा कनार कर दे

क़मर से कह दो ठहर के निकले कि दीद उनका अभी हुआ है

नहीं भरा उनसे दिल हमारा ख़ुदा क़मर को बुख़ार कर…

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Added by Dimple Sharma on June 13, 2020 at 5:30pm — 6 Comments

ग़ज़ल ( अभी जो है वही सच है....)

(1222 1222 1222 1222)

अभी जो है वही सच है तेरे मेरे फ़साने में

अबद तक कौन रहता है सलामत इस ज़माने में

तड़पता देख कर मुझको सड़क पर वो नहीं रूकता

कहीं झुकना न पड़ जाए उसे मुझको उठाने में

गले का दर्द सुनते हैं वो पल में ठीक करता है

महारत भी जिसे हासिल है आवाज़ें दबाने में

किसी दिन टूट जाएँगी ये चट्टानें खड़ी हैं जो

लगेगा वक़्त शीशे को हमें पत्थर बनाने में

अजब महबूब है मेरा जो पल में रुठ जाता है

महीने बीत…

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Added by सालिक गणवीर on June 13, 2020 at 2:00pm — 12 Comments

"नियति "

आस छोड़ी न थी,
न,प्रयास बौने थे,
जीतना कहाँ
संभव होता
हम
नियति के हाथों के,
खिलौने थे।
ओढे, बिछाए,
तह लगाकर
रख दिए
हमारी इच्छाओं के
ही तो,बिछौने थे।

अन्विता ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Anvita on June 13, 2020 at 1:10pm — 2 Comments

गीत -आचरण आदर्श के गायब हुए, विपदा बड़ी है

क्रोध तम मद-लोभ ईर्ष्या में पड़ा संसार सारा

आचरण आदर्श के गायब हुए, विपदा बड़ी है।।

छोड़ अन्तस का शिवालय भ्रम मनुज लाने चला है

शोर के गहरे तमस में मौन को पाने चला है

पास उसके आत्म दर्पण है नहीं जो राह रोके

जी रहा है वह स्वयं की जिन्दगी में कण्ट बोके

सत्य है नेपथ्य में बस मूर्खता मन में अड़ी है

आचरण आदर्श के गायब हुए, विपदा बड़ी है।।

मस्त सब हैं छोड़कर सिद्धांत सारे सभ्यता के

मन अपाहिज वस्त्र चिथड़े किंतु साधक भव्यता के

जब पलट के…

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Added by नाथ सोनांचली on June 12, 2020 at 7:00pm — 4 Comments

प्रेमियों केे प्रेम केे निशान बन गए (पूरी ग़ज़ल)

वो फख्र से जुदा हुए अनजान बन गए

प्यार का क़तल किया दीवान बन गए (1)

देते कभी थे इश्क़ में जन्मो के वास्ते

वो चार रोज़ में ही बेगान बन गए (2)

वादों की और इरादों की लम्बी कतार थी

फहरिस्त उन इरादों के अरमान बन गए (3)

अक्सर वफ़ा की कसमें जो खाते थे बार बार

कल तोड़ के कसम वो बेईमान बन गए (4)

महफ़िल कभी जिनके लिए हमने सजाई थी

आज उनकी महफ़िलों के महमान बन गए (5)

एहसास जिनकी कश्ती में महफूज़ था हमें

साहिल…

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Added by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 12, 2020 at 10:18am — 12 Comments

ऐरावत

आज ऐरावत की मौत हुई तो कोप जताने आया हूँ

जन्म से पहले प्राण गए हैं रोष दिखाने आया हूँ

आया हूँ मैं ये प्रण लेकर संताप नहीं ये कम होगा

धोखे से मनु ने प्राण हरे जो लड़ने का न दम होगा

मानव कितना नीच जीव है कहता खुद को सबसे ऊपर

अ हिंसा का भाषण देकर हाथ उठाता मूक जीव पर

दम्भ तुझे किस बात का मानव तू क्यों इतना है इतराता

तेरे खेल की आग में जलकर झुलस गई गज की माता

कैद रहा है तीन माह से क्या…

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Added by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 11, 2020 at 8:33pm — 2 Comments

अक्स

थक गया हूँ झूठ खुद से और ना कह पाऊंगा

पत्थरों सा हो गया हूँ शैल ना बन पाऊंगा

देखते है सब यहाँ पे अजनबी अंदाज़ से

पास से गुजरते है तो लगते है नाराज़ से

बेसबर सा हो रहा हूँ जिस्म के लिबास में

बंद बैठा हूँ मैं कब से अक्स के लिहाफ में

 

काटता है खलीपन अब मन कही लगता नहीं

वक़्त इतना है पड़ा के वक़्त ही मिलता नहीं

रात भर मैं सोचता हूँ कल मुझे कारना है क्या

है नहीं कुछ हाथ मेरे सोच के डरना है क्या

टोक न दे कोई मुझको मेरी इस…

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Added by AMAN SINHA on June 11, 2020 at 3:30pm — 2 Comments

कच्चे आमों जैसा खट्टा कभी शहद सा होता जीवन (१०९ )

एक गीत

----------------

कच्चे आमों जैसा खट्टा

कभी शहद सा होता जीवन |

***

पाया जीवन है जिसने भी

पल पल देनी पड़े परीक्षा |

कैसे भी हालात किसी के

जीवन की मत करें उपेक्षा |

करते अगर भ्रूण की हत्या

या करते हत्या अपनी तुम

पाप हमेशा कहलायेंगे

न्याय करेगा अगर समीक्षा |

अपनी नादानी के कारण

क्यों करते खिलवाड़ मनुज तुम

मिटटी के सम ठोकर मारो

क्या…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 10, 2020 at 11:30pm — 9 Comments

ग़ज़ल

1212 1122 1212 22

यूँ उसके हुस्न पे छाया शबाब धोका है ।।1

मेरी नज़र ने जिसे बार बार देखा है ।।



वफ़ा-जफ़ा की कहानी से ये हुआ हासिल।

था जिसपे नाज़ वो सिक्का हूजूर खोटा है ।।2

उसी के हक़ की यहां रोटियां नदारद हैं ।

जो अपने ख़ून पसीने से पेट भरता है ।।3

खुला है मैकदा कोई सियाह शब में क्या ।

हमारे शह्र में हंगामा आज बरपा है ।।4

निकल पड़े न किसी दिन सितम की हद पर वो ।

जो अश्क़ मैंने अभी तक सँभाल रक्खा है…

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Added by Naveen Mani Tripathi on June 10, 2020 at 9:06pm — 6 Comments

प्रेमियों केे प्रेम केे निशान बन गए

मिलते वहीँ थे घाट पे करते थे गुफ़्तगू
तेरे बगैर घाट भी वीरान बन गए

उस पार रेत से जो हमने घर बनाए थे
वो प्रेमियों केे प्रेम केे निशान बन गए

अक्सर बिताईं शामें हमने विश्वनाथ में
अब पूजते हैं उनको वो भगवान् बन गए

चर्चे हमारे इश्क़ के गलियों में खूब थे
ख़बरों में थे कभी अभी गुमनाम बन गए

किस मोड़ पर ये इश्क़ हमको लेके आ गया
जलकर तुम्हारे प्यार में शमशान बन

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 10, 2020 at 11:23am — 7 Comments

कहीं दिल टूटना देखा कहीं दिलदारी देखी है(१०८ )

(1222 *4 )

.

कहीं दिल टूटना देखा कहीं दिलदारी देखी है

कहीं ख़ुशियों की फुलवारी कहीं ग़म-ख़्वारी देखी है

**

नशा देखा कभी ज़र का कभी नादारी देखी है

कभी मस्ती कभी हमने मुसीबत भारी देखी है

**

कभी तल्ख़ी कभी आँसू हसद के दौर अपनों के

मरासिम को निभाते वक़्त दुनियादारी देखी है

**

अधूरे रह न जाएँ ख़्वाब…

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Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 10, 2020 at 1:00am — 14 Comments

दोहा गज़ल एक प्रयास :

दोहा गज़ल एक प्रयास :

साथी सारे स्वार्थ के, झूठे सारे नात,

अवसर एक न चूकते, देने को आघात।

नैनों से ओझल हुआ, आज लाज का नीर, 

संस्कारों की हो गई, भूली बिसरी बात। 

साँझे चूल्हों के नहीं, दिखते अब परिवार ,

बिखरे रिश्ते फ़र्श पर, जैसे पीले पात। 

बूढ़े बरगद की नहीं, अब आंगन में छाँव, 

बूढ़ी आँखों से सदा , होती है बरसात। 

कैसा कलयुग आ गया, अपने देते दंश,

जर्जर काया की हुई, आहट हीन…

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Added by Sushil Sarna on June 9, 2020 at 10:59pm — 6 Comments

तू ही तू है

एक नज़्म

अरकान-2212, 2212, 2212

दिल-ए-दरीया आब में तू ही तू है

हर इक लहर-ए-नाब में तू ही तू है

मौसम शगुफ़्ता है मुहब्बत में देखो

लाहौर ते पंजाब में तू ही तू है

हर इक वुज़ू पे हर दफ़ा मांगा तुझे

मेरी दुआ से याब में तू ही तू है

पकड़े हुए हूं आज तक दस्तार को

ख़ुर्शीद में महताब में तू ही तू है

हासिल कहाँ मुझको मेरे महबूब तू

फिर भी मेरे हर ख़्वाब में तू ही तू है

भीगी हुई पलकों का दामन छोड़ कर

बढ़ते हुए सैलाब में तू ही…

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Added by Dimple Sharma on June 9, 2020 at 7:05pm — 18 Comments

ग़ज़ल ( कितनी सियाह रातों में.....)

( 2212 122 2212 122)

कितनी सियाह रातों में हम बहा चुके हैं

ये अश्क फिर भी देखो आंँखों में आ चुके हैं

गर आके देख लो तो गड्ढे भी न मिलेंगे

हाँ,लोग काग़ज़ों पर नहरें बना चुके हैं

अब खिलखिला रहे हैं सब लोग महफ़िलों में

मतलब है साफ सारे मातम मना चुके हैं

वो ख़्वाब सुब्ह का था इस बार झूठ निकला

ता'बीर के लिए हम नींदें उड़ा चुके हैं

अब पाप का यहाँ पर नाम-ओ-निशांँ नहीं है

सब लोग शह्र के अब गंगा नहा चुके…

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Added by सालिक गणवीर on June 9, 2020 at 4:00pm — 9 Comments

मास्क(लघुकथा)



' हां, ठीक हूं सविता।' मास्क के अंदर से आवाज आई।

' अच्छा चल बता,अब तेरे वो कैसे हैं?' सविता की मास्क ने चुटकी ली,क्योंकि शालू हमेशा अपने पति की शिकायत करती रहती थी।कभी कभी तो वह अपने निः संतान होने का दोष भी पति के मत्थे मढ़ देती।पति का दिन रात अपने ऑफिस के काम में तल्लीन रहना एक अच्छा सा बहाना भी था।भला एक थका मांदा मर्द पत्नी को औलाद क्या देगा? खा - पी के पड़ रहेगा।ऐसे क्या भला औलाद आसमान से टपकेगी?वह यही सब सोचती और अधिकतर सविता को यह सब…

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Added by Manan Kumar singh on June 8, 2020 at 4:00pm — 4 Comments

ये जो कुछ ख़्वाब पाल बैठे हैं (ग़ज़ल)

ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू'अ

2122 / 1212 / 22

ये जो कुछ ख़्वाब पाल बैठे हैं

जान आफ़त में डाल बैठे हैं [1]

दिल से हम को निकाल बैठे हैं

देखिए पुर-मलाल बैठे हैं [2]

कह चुके हैं हमें वो जाने को

फिर भी देखो मजाल बैठे हैं [3]

बढ़ गए आगे सब हुनर वाले

हम यहीं बे-कमाल बैठे हैं [4]

अब ज़रूरत नहीं सलाहों की

हम तो सिक्का उछाल बैठे हैं [5]

मेरे और उनके दरमियाँ जाने

कितने ही माह-ओ-साल बैठे हैं…

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Added by रवि भसीन 'शाहिद' on June 8, 2020 at 12:30pm — 13 Comments

गेहूँ रहा अलीक न यूँ ही गुलाब से

२२१/२१२१/१२२१/२१२



मारा करे हैं  लोग  जो गम को शराब से

लाते खुशी को देखिए कितने हिसाब से।१।

**

खुशबू है भारी भूख पे सुनते जहान में

गेहूँ रहा  अलीक  न  यूँ  ही  गुलाब से।२।

**

लाता नहीं है होश भी अपने ही साथ क्यों

शिकवा है हमको एक ही यारो शबाब से।३।

**

साधी है हमने यूँ नहीं हर एक तिश्नगी

गुजरा है अपना दौर भी यारो सराब से।४।

**

उनको तो कुर्सी चाहिए पापों की नींव पर

मतलब न रखते आज भी सेवक सवाब…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2020 at 11:11am — 2 Comments

कभी मनाते भी नहीं

ग़म के आंसू पी लेते हैं जताते भी नही

सताना सह लेते हैं वो सताते भी नहीं

रूठना आदत है उनकी कोई उनसे सीखे

गर हम रूठ जाएं तो कभी मनाते भी नहीं

इश्क़ में अश्क़ का नशा बहुत गहरा होता है

ज़ाम अश्क़ का हो तो अर्क मिलाते भी नहीं

मेरे दिल की बात तो अक्सर कह देता हूँ मैं

उनके भीतर का ज़लज़ला वो बताते भी नहीं

उनके नूर केे दीदार का इंतज़ार कब से है

साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी…

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Added by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 8, 2020 at 10:19am — 4 Comments

ग़ज़ल ( दूर की रौशनी से क्या कहते..)

(2122 1212 22)

दूर की रौशनी से क्या कहते

था अंधेरा किसी से क्या कहते

जगमगाती सियाह रातों में

दर्द की चांदनी से क्या कहते

सारा पानी किसी ने रोका था

बेवजह हम नदी से क्या कहते

सामने उसके गिड़गिड़ाए थे

उसके खाता-बही से क्या कहते

अब वो हैवान बन गया तो फ़िर

हम उसी आदमी से क्या कहते

पी गए ख़ूं भी लोग सहरा में

आलमे-तिश्नगी से क्या कहते

तेरी गलियाँ तुझे मुबारक हो …

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Added by सालिक गणवीर on June 7, 2020 at 4:30pm — 7 Comments

बेख़ौफ़ हम

कहा रूक जा सब ने, बेख़ौफ़ हम
चले गांव जल्दी से बेख़ौफ़ हम

कहीं एक विधवा अकेले खड़ी
खड़े साथ उसके ले बेख़ौफ़ हम

हटा ले ये चादर मेरे शव से तू
जला दे या दफ़ना दे, बेख़ौफ़ हम

अरे क्या कहें साँप हम पे गिरा
डरे थे सभी बस थे, बेख़ौफ़ हम

हमें रेत का घर सरल सा लगा
समन्दर कि लहरों से, बेख़ौफ़ हम

वो पीछे से मारे ,हुनर उनका था
खड़े सामने उनके, बेख़ौफ़ हम

डिम्पल शर्मा
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dimple Sharma on June 7, 2020 at 2:36pm — 10 Comments

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