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युधिष्ठिर के पाँसे...काव्य

कहा दुशाशन छः मामा जी, मामा छः ले आये

देख युधिष्ठिर मौन बैठकर, मन ही मन पछताये

चलो हुआ क्या आखिर जो मै, दाँव हार ये जाँऊ

हो सकता अबकी मै जीतूँ आगे खेल बढाऊँ

यही सोचकर धर्मराज ने, आगे खेल बढाये

लेकिन भैनों के मामा ने, फिर से छः ले आये

-----

क्या जाने अंधे काकाजी, शाशन किसे थमायें

जीत गया दुर्योधन से तो, राज सहज पा जायें

उनके मन से उस पांसे का, लेकिन मन ना मिलता

पूर्व चलें जो धर्मराज तो, पश्चिम पांसा चलता

अगर छोड दें बाजी आधी, गया हाथ… Continue

Added by manoj shukla on April 21, 2013 at 9:22pm — 14 Comments

प्रेम के मोती

प्रेम के मोती

नमवायु के शुष्क, जमे कण 

धरती की गर्माहट भरी 

सतह पर 

हो जाते हैं जब इकट्ठे 

तो बन जाते हैं कोहरा |

फिर यही कोहरा 

अस्त-व्यस्त कर देता है

जन जीवन को ,

धीमा कर देता है 

जिन्दगी की रफ़्तार को,

कारण बनता है

कई चिरागों के बुझने का,

साक्षी बनता है 

हृदय स्पर्शी चीत्कारों का|

वापिस भी मोड़ देता है 

आगे बढे हुए

कई क़दमों को,

धुंधला कर…

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Added by Usha Taneja on April 21, 2013 at 3:36pm — 18 Comments

हमने कौरव के हाथों पांचाली दी !

ग़ज़ल -

इस दुनिया ने जब भी कमाई काली दी ,

मेरे अंतरमन ने  मुझ  …

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Added by Abhinav Arun on April 21, 2013 at 1:58pm — 18 Comments

तत् त्वम् असि

हम हैं कौन, हमारी वास्तविक पहचान क्या है, क्या हम महज हाड़ मांस से बने शरीर मात्र हैं या इससे भी अलग हमारी कोई पहचान है।

ये प्रश्न सृष्टि के…

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Added by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 21, 2013 at 11:30am — 8 Comments

ये दिल आज भी मचलता है तुम्हारे लिए

ये दिल आज भी मचलता है तुम्हारे लिए।

अश्कों का दरिया बहता है तुम्हारे लिए।।

मैं जी नहीं पा रही हूँ तुमसे अलग होकर,

सीने में एक दर्द पिघलता है तुम्हारे लिए।।

जाने क्यों मैं आज भी ज़िंदा हूँ तुम्हारे बिन,

मैं आख़िर मर क्यों नहीं जाती तुम्हारे लिए।।

तू मेरी ज़िन्दगी,मेरी जान,मेरा सब कुछ है,

ये साँस आज भी चलती है सिर्फ़ तुम्हारे लिए।।

ताउम्र रहेगा तेरा इंतज़ार मुझको मेरे साथी,

मरकर भी ये आँखें खुली रहेंगी…

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Added by Savitri Rathore on April 20, 2013 at 11:30pm — 10 Comments

आखिर हम क्या हो गये ( कविता )

बचपन में हम कागज की नाव बनाया करते थे

पानी में उसे तैराया करते थे

कागज के हेलिकाप्टर उड़ाया करते थे

रेत के घर बनाया करते थे

निर्जीव गुड्डे- गुड्डियों की शादी रचाया करते थे

तितलियाँ प्यारी लगतीं थीं

वस्तुएं जिज्ञासा पैदा

करतीं थीं

बचपन का उमंग था

हौंसलों में दम था

यह आशंका नहीं थी

कि कागज की नाव डूबती है या नहीं

हेलिकाप्टर उड़ता है या नहीं

रेत का घर टिकता है या नहीं

तितलियाँ सहचर होती हैं या नहीं

ज्यों ज्यों हम बड़े… Continue

Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 20, 2013 at 8:08pm — 11 Comments

दहशत |

चलो  मुसाफिर  देख लो , कहाँ होगा गुजार |
ना दे सहारा कोई   , फिर से करो विचार |
खंजर मारें  पेट में , दूर से  मेहमान |
 देख  चिच्लाते चीखते, खुश हों  बेईमान |
अब  किस पर यकीन करे,…
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Added by Shyam Narain Verma on April 20, 2013 at 3:07pm — 3 Comments

आ भी जा इक पल को कभी यूँ भी

"ख्यालों से मेरे उतर आये सामने तू कभी

थम जाये ये वक़्त भी ,उस पल को वहीँ

आ भी जा इक पल को कभी यूँ भी…

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Added by Kedia Chhirag on April 20, 2013 at 10:57am — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
आँखों देखी

आंखों देखी

बात फ़रवरी 1986 की है. भारत का पाँचवा वैज्ञानिक अभियान दल अंटार्कटिका में अपना काम समाप्त कर चुका था. शीतकालीन दल के सभी 14 सदस्य भारतीय अनुसंधान केंद्र “ दक्षिण गंगोत्री ” में पहुँच चुके थे. इस दल को अगले एक वर्ष तक यहीं रहना था. ग़्रीष्मकालीन दल के करीब सब अभियात्री 15 किलोमीटर दूर खड़े जहाज “ एम.वी. थुलीलैण्ड “ में थे. मौसम बेहद खराब हो जाने की वजह से एक दो वैज्ञानिक जहाज में नहीं पहुँच पाये थे. कुछ और औपचारिकताएँ बाकी थीं...इंतज़ार था मौसम के ठीक होने का. मौसम का आलम यह था…

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Added by sharadindu mukerji on April 20, 2013 at 4:07am — 10 Comments

'हौले हौले बह समीर मेरा लल्ला सोता है '

'हौले हौले बह समीर मेरा लल्ला सोता है '







हौले हौले बह समीर मेरा लल्ला सोता है ,

मीठी निंदिया के अर्णव में खुद को डुबोता है .

हौले हौले बह समीर मेरा लल्ला सोता है !



मखमल सा कोमल है लल्ला नाम है इसका राम ,

मैं कौशल्या वारी जाऊं सुत मेरा भगवान ,

ऐसा सुत पाकर हर्षित मेरा मन होता है !

हौले हौले बह समीर मेरा लल्ला सोता है !



मुख की शोभा देख राम की चन्द्र भी है शर्माता ,

मारे शर्म के हाय ! घटा में जाकर है छिप जाता ,

फिर… Continue

Added by shikha kaushik on April 19, 2013 at 11:09pm — 5 Comments

सफ़र में आँधियाँ तूफ़ान ज़लज़ले हैं बहुत

सफ़र में आँधियाँ तूफ़ान ज़लज़ले हैं बहुत॥

मुसाफ़िरों के भी पावों में आबले हैं बहुत॥

ख़ुदा ही जाने मिलेगी किसे किसे…

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Added by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on April 19, 2013 at 12:30pm — 11 Comments

किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से - वीनस

मुलाकातें हमारी, तिश्नगी से

किसी दिन मर न जाएँ हम खुशी से



महब्बत यूँ मुझे है बतकही से

निभाए जा रहा हूँ खामुशी से



उन्हें कुछ काम शायद आ पड़ा है

तभी मिलते हैं मुझसे खुशदिली से



उजाला बांटने वालों के सदके

हमारी निभ रही है तीरगी से



ये कैसी बेखुदी है जिसमे मुझको

मिलाया जा रहा हैं अब मुझी से



उतारो भी मसीहाई का चोला

हँसा बोला…

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Added by वीनस केसरी on April 19, 2013 at 12:14am — 16 Comments

तू ये ना समझना

तू ये ना समझना , तेरी याद ने रुलाया है ,

तेरी आँख का कोई आँसू है , मेरी आँख से आया है ,



तू ये ना समझना , तेरे खुशबू ने बुलाया है ,

हवा का कोई झोंका है , तेरे ज़िस्म को छू के आया है ,…

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Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 18, 2013 at 11:00pm — 7 Comments

कहीं पे चीख होगी और कहीं किलकारीयाँ होंगी ( सलीम रज़ा रीवा )

कहीं  पे  चीख होगी और कहीं किलकारीयाँ  होंगी !
अगर हाकिम के आगे भूख और लाचारियाँ होंगी  !!
अगर हर दिल में चाहत हो शराफ़त हो सदाक़त हो !
मुहब्बत  का  चमन होगा ख़ुशी की क्यारियाँ  होंगी !!…
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Added by SALIM RAZA REWA on April 18, 2013 at 9:30pm — 18 Comments

कैसी जिंदगी ..लघु कथा / कुशवाहा

कैसी जिंदगी   ..लघु कथा / कुशवाहा 
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समाज उत्थान , समाज सेवा ऐसा नशा है कि जिसे लग गया तो लग  गया . छूटेगा जीवन के साथ . यही हाल पुष्पा जी का है. वैसे तो उनका निश्चित समय है क्षेत्र में जाने का. पर कोई सूचना मिली या कोई फरियादी द्वार पर आ गया तो फिर क्या डाली चप्पल पैर  में और कंधे पर शाल या चदरा ,निकल पडी सेवा करने को. घर में बने, आश्रम, ही  कहिये का अलग काम तो है ही. अगर उनसे कोई पूँछ ले दीदी इतना खर्चा कैसे उठाती  हैं, क्या…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2013 at 6:23pm — 5 Comments

नवरात्र...कैसा ..लघु कथा / कुशवाहा

नवरात्र...कैसा  ..लघु कथा / कुशवाहा 
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अब आपके कर्म अच्छे थे कि बड़े  अधिकारी  बन गए या देश में  रसूखदार पदवी पा गए. इससे हम क्यों जलें कि आपको जब परिवार में शादी ब्याह, जीना मरना हो, मंदिर दर्शन करना हो  तो लगा लिया ग्रह जनपद या पास के क्षेत्र का भ्रमण. निरीक्षण का निरीक्षण और सरकारी  सुविधाओं के साथ निजी कार्य भी निपटाया, यानी कि एक पंथ दो काज. दामाद जैसी खातिरदारी सो अलग.स्टाफ तो निजी नौकर है भले ही वो सरकारी…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2013 at 4:45pm — 15 Comments

नारी उत्थान

नारी उत्थान 

महिलाओं की स्थिति में निरंतर सुधार

ऐसा कहते टीबी टीवी, अखबार

ऐसी ख़बरों का संकलन

कथनी करनी का आकलन 

"महिला आरझन आरक्षण बिल की बात संसद मै उठाई "

"महिला की सरेआम पिटाई 

नारी देवीतुल्य जननी

दहेज़ के…
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Added by Dr.Ajay Khare on April 18, 2013 at 4:30pm — 9 Comments

नवरात्र ..लघु कथा

नवरात्र ..लघु कथा 
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शर्मा जी की यूँ तो आदत बहुत खाने की है, बुराई एक है  अपने खाने में से वो किसी को पूंछते  नहीं कि भैया जी थोडा सा आप भी खा लो. धार्मिक इतने कि कार्यालय कभी प्रातः साढ़े ग्यारह से पहले नहीं आते और चार बजे कार्यालय छोड़ देते . कारण पूछो तो बताते कि पूजा पर बैठते हैं.

नवरात्र में वे फलाहार कार्यालय कैम्पस के बाहर लगे फलों के ठेले पर करते . सो नित्य की भांति वे फलाहार करने गए. पीछे पीछे मैं भी गया…
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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 18, 2013 at 4:00pm — 19 Comments

हास्य घनाक्षरी

भारी भरकम काया,है बड़ी विचित्र माया ,

खुद खाती ठूसकर ,मुझपे चिल्लाती है !

हुआ वजन सौ किलो ,फिर भी दम ना लेती ,

गुंडई तो देखो इसे ,डाइटिंग बताती है !!

खर्राटे जब लेती है,मानो भूकंप आ गया ,

पड़ोसियों की भी तब ,नींद टूट जाती है !

अपने को…

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Added by ram shiromani pathak on April 18, 2013 at 4:00pm — 18 Comments

सभी के दिल मे बसना चाहता है

लो पत्थर इश्क़ करना चाहता है
मेरी मानिंद जलना चाहता है

लगा के हौसलों के पर युवा अब
बड़ी परवाज़ भरना चाहता है

फलक में जा भुला बैठा जो सबको
ज़मीं पर क्यूँ उतरना चाहता है

सहारे की ज़रूरत है उसे क्या
जो गिर के अब सँभलना चाहता है

बना हमदाद दुनिया में वही जो
सभी के दिल मे बसना चाहता है

संदीप पटेल "दीप"

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 18, 2013 at 2:57pm — 7 Comments

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