Added by manoj shukla on April 28, 2013 at 8:30pm — 12 Comments
बह्र : रमल मुसम्मन सालिम
वक्त ने करवट बदल ली जो अँधेरा छा गया,
आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया,
प्यार के इस खेल में मकसद छुपा कुछ और था,
बोल कर दो बोल मीठे जुल्म दिल पे ढा गया,
बाढ़ यूँ ख्वाबों की आई है जमीं पर नींद की,
चैन तक अपनी निगाहों का जमाना खा गया,
झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,
झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,
तालियों की गडगडाहट संग बाजी सीटियाँ,
देश का नेता हमारा…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on April 28, 2013 at 4:17pm — 16 Comments
गाँव के कच्चे घरों में…
ContinueAdded by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 28, 2013 at 11:26am — 22 Comments
Added by manoj shukla on April 27, 2013 at 9:00pm — 11 Comments
एक लड़की पगली सी -
खड़ी रहती हर सुबह छ्त पर अकेली,
कभी बालों को सँवारती,
होंठों में कुछ गुनगुनाती रहती.
सूरज जब दहलीज पर आता
दे जाता आभा रेशम सी,
सुनहरी किरणों से नहाती औ’
खुशियों से झूम झूम जाती.
एक लड़की भोली सी -
टहलती हुई छ्त पर भरी दोपहर
बालों को फूलों से सजाती,
पवन का झोंका आता ठहर-ठहर
डोल जाती वह कोमलांगिनी
शर्माती, हुई जाती कुछ सिहर-सिहर.
हँसती, कभी मुसकाती एक लड़की -
भोला बचपन गया, कब आया यौवन
समझ न…
Added by coontee mukerji on April 27, 2013 at 12:05pm — 10 Comments
नारी तुम स्तुति की देवी हो!
मां वसुधा सी प्यारी तुम,
संस्कृति की श्रध्दा देवी हो।
नारी तुम प्रगति प्रदर्शक हो!
कर में वीणा-सुरधारा तुम,
चंचलमय मृदुला देवी हो।
नारी तुम धैर्य-बलशालिनी हो!
अबला सीता क्षमा दान तुम,
मां शक्ति की दुर्गा देवी हो।
नारी तुम राधा सी प्यारी हो!
मीरा बाला सी अनुरागिनी तुम,
सती सावित्री सी देवी हो।
नारी तुम देश की कीर्ति हो!
सच्चे माने में इन्दिरा तुम,
भारत-सौभाग्य की…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 27, 2013 at 7:37am — 20 Comments
आधी रात के सपने देकर
तुम मुझको बहला देते हो
जब चाहे जी
अपना लेते हो
जब चाहे जी
ठुकरा देते हो
कैसे लिखूं
तुमको पतियां
तुम वादे
झुठला देते हो
आधी रात के ................
या देवी का
जयघोष तो करते
फिर क्योंकर
चुभला देते हो
अपने छत पर
बाग लगाकर
कलियों को
दहला देते हो
आधी रात के ................
कहती हूं जो
तुमको…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on April 26, 2013 at 2:41pm — 17 Comments
सरकारी नौकरी
काश दो दिन दफ़्तर लगता ,
होती छुट्टी पाँच दिन,
खाते खेलते,सोते घर में
मौज मनाते पाँच दिन ।
बच्चे रोते भाग्य पर,
पर पत्नी खुश हो जाती,
हाथ बटाएगा काम में,
यह सोच मंद मुस्कुराती।
आ जाती तनख्वाह एक…
ContinueAdded by akhilesh mishra on April 26, 2013 at 12:45pm — 10 Comments
| दहाड़ते चलो सभी रण में , मारो दुश्मन को ललकार | |
| आगे बढ लक्ष्मी बाई सा , रोको इनका अत्याचार | |
| मानव ना ये दानव सा हैं , करते पशुवो सा व्यवहार | |
| रोने धोने का काम नहीं , देख करो इनका संहार | … |
Added by Shyam Narain Verma on April 26, 2013 at 11:38am — 5 Comments
Added by Vindu Babu on April 26, 2013 at 11:03am — 17 Comments
नियम : ३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति प्रत्येक चरण में .
प्रणय पवन बह, रस मन बरसत
बढ़त लहर जस, तन मन गद गद
चमक दमक बस, चलत नगर घर
पग पग हर पल, रहत मदन मद
मन भ्रमर चलत, उड़त गगन तक
इत उत भटकत, उठत बहत रह
प्रणय ललक वश, बहकत सम्हरत
चरफर महकत, चटक मटक रह
- बृजेश नीरज
Added by बृजेश नीरज on April 26, 2013 at 10:25am — 10 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on April 26, 2013 at 12:01am — 8 Comments
Added by manoj shukla on April 25, 2013 at 10:52pm — 14 Comments
मुझे लिखना है
Added by ajay sharma on April 25, 2013 at 10:00pm — 4 Comments
भर्त्सना के भाव भर, कितनी भला कटुता लिखें?
नर पिशाचों के लिए, हो काल वो रचना लिखें।
नारियों का मान मर्दन, कर रहे जो का-पुरुष,
न्याय पृष्ठों पर उन्हें, ज़िंदा नहीं मुर्दा लिखें।
रौंदते मासूमियत, लक़दक़ मुखौटे ओढ़कर,
अक्स हर दीवार पर, कालिख पुता उनका लिखें।
पशु कहें, किन्नर कहें, या दुष्ट दानव घृष्टतम,
फर्क उनको क्या भला, जो नाम, जो ओहदा लिखें।
पापियों के बोझ से, फटती नहीं अब ये धरा
खोद कब्रें, कर…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on April 25, 2013 at 10:00pm — 67 Comments
परेशां है समंदर तिश्नगी से
मिलेगा क्या मगर इसको नदी से
अमीरे शहर उसका ख़ाब देखे
कमाया है जो हमने मुफलिसी से
…
ContinueAdded by वीनस केसरी on April 25, 2013 at 10:00pm — 12 Comments
सदियों रहा गुलाम है ये आम आदमी
Added by ajay sharma on April 25, 2013 at 9:30pm — 8 Comments
नेतागिरी का कीड़ा - व्यंग्य
इस बार चुनाव लड़ने की
हमने भी ठानी है,
हमारे अंदर नेतागिरी का कीड़ा है
यह बात हमने अभी…
ContinueAdded by Usha Taneja on April 25, 2013 at 6:30pm — 22 Comments
|| मै बरगद का पेड ||
मै बरगद का पेड सयाना, चिरस्थिर खडा था आँगन मे ।
कितने मौसम आते जाते, देखे है मैने जीवन मे ।
सदीया बीती नदिया रीति, वो गाँवो का शहर बन जाना ।
अब मै डरा सहमा सा खडा हुआ हू, इन कंक्रीटो के वन मे
वो बडॆ प्यार से अम्मा बाबा का, मुझे धरा मे रोपना ।
वो खुद के बच्चो जैसा मेरा, लाड प्यार से पाल पोसना ।
वो पकड के मेरी बाहो को, मुन्ना मुनिया का झुला झुलना
वो चढ के मेरे कंधो पर, कटी…
ContinueAdded by बसंत नेमा on April 25, 2013 at 12:30pm — 11 Comments
वर्तमान समय में हमारे बच्चों को मनोरंजन के अनेक साधन उपलब्ध हैं। इनमे सबसे प्रमुख है टी . वी . जिस पर प्रसारित होने वाले कार्टून बच्चों को बेहद पसंद आते हैं। पर बच्चे इनसे क्या सीखते हैं यह सोंच का विषय है।
कई कार्टून चरित्र जो बच्चों में बहुत लोकप्रिय हैं जैसे स्पाइडरमैन, बैटमैन, बेन टेन इत्यादि। बच्चे इन चरित्रों से बहुत…
ContinueAdded by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on April 25, 2013 at 11:30am — 7 Comments
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